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आसान नहीं है प्रियंका की राह,लगाना होगा ‘बड़ा’ दांव

संजय श्रीवास्तव

लखनऊ,नवसत्ता: प्रियंका का यूपी दौरा क्या पंजे में जान ला पायेगा, आने वाले 2022 के चुनाव में क्या पार्टी घुटनों के बल से पैरों के बल खड़ी हो पाएगी, क्या जनता के मन में कांग्रेस को वोट करने का कोई नजरिया बन पाएगा। इन तमाम सवालों के बीच प्रियंका जिस तरह लखनऊ आईं और गांधी प्रतिमा पर मौन अनशन पर बैठीं, इससे बीजेपी से नाराज चल रहे लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता वजह बीजेपी सोच वालों के लिए गांधी व्यावहारिक रूप से उनके आदर्श नहीं है।  हां यदि प्रियंका वाड्रा गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण करके बगल ही पटेल और अंबेडकर की प्रतिमा पर भी माल्यार्पण करतीं और पटेल या आंबेडकर की मूर्ति के पास ही मौन अनशन करतीं तो पिछड़ें और दलित वोटरों पर इसे सेंधमारी के मायने बताया जाता।

इस खबर के जरिए मीडिया के रास्ते पिछड़ों और दलितों के दिलों दिमाग में कुछ छेद जरूर किया जा सकता था, जो कम से कम जातिगत कैंडिडेट के पक्ष में वोट बटोरने में मदद कर सकता था, जिलाध्यक्षों और जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं से मिलना भी फायदेमंद हो सकता है, जिन जिलों की कमान युवाओं के हाथ में है उनसे जमीनी हकीकत के साथ पार्टी को बूथ स्तर पर फिर से जिंदा करना पड़ेगा कार्यकर्ता को भरोसा दिलाना पड़ेगा कि पार्टी उनके हर हित का ख्याल रखेगी साथ ही हर विधानसभा पर धर्म जाति के आधार पर मजबूत वोटबैंक वाले कैंडीडेट को चुनना होगा, हर जिले  से एक-एक कैंडिडेट का जाति धर्म के साथ संतुलन भी देखना पड़ेगा, साथ ही युवा और तेज तर्रार महिलाओं को भी शहरी क्षेत्रों से चुनाव मैदान में उतारना विरोधियों के बीच कड़ी चुनौती पेश करना होगा। प्रियंका को ये भी देखना होगा कि बाहरी पार्टियों से आए लोग रोहिग्यां ना साबित हों जो पार्टी में अपना जीवन भर का सबकुछ लुटा चुके हों उन्हें ही पार्टी से बाहर जाने पर मजबूर ना कर दें। ऐसे मौकापरस्तों में एक नाम कांग्रेसियों के बीच चर्चा में है वो है नसीमुद्दीन सिद्दीकी का जो बीएसपी में रहकर मोटा माल कमाए और वहां से निकाले जाने पर पहले बीजेपी और सपा में घुसने की कोशिश करते रहे जब वहां दाल नहीं गली तो ऐन केन कांग्रेस में घुसे और घुसते ही कुछ मठाधीशों की मदद से मीडिया जैसे महत्वपूर्ण विभाग के इंचार्ज बन बैठे, अब मीडिया को साधकर वो पार्टी के बड़े नेताओं से लेकर प्रियंका को भी साधने में लग गए हैं।

प्रियंका को ऐसे लोगों से सावधान रहना होगा जो माया के ना हुए वो प्रियंका के कैसे हो सकते है। लखीमपुर जाकर प्रियंका ने पिछड़ों खासतौर पर यादवों को कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश तो की ही है, मुसलमानों के साथ ही बीजेपी से ब्राह्मणों के नाराज धड़े को भी साधने की जुगत भिड़ानी होगी, बाकी टिकट बंटवारे पर जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी साझेदारी वाली माया स्कीम पर भी फोकस करना पड़ेगा। आखिर में वाकई अगर कांग्रेस को यूपी से अपने 30 साल के वनवास को खत्म करना है और दोबारा सरकार में वापसी करनी है तो फि उस ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना होगा जिसका जिक्र कांग्रेसी ही नहीं दबी जुबान से दूसरी पार्टियों के लोगबाग और जनता के बीच में भी तेजी से हो रहा है, और हो भी क्यों ना बीजेपी से नाराज लोग विपक्ष में जब चेहरा तलाशते हैं तो उन्हें माया और अखिलेश में भी उतना भरोसा नहीं दिखता लिहाजा वो एक ऐसे चेहरे को चाहते हैं जिसमें कम से कम जनता को भरोसा और विश्वास दिलाने की ताकत हो कि अगले पांच साल वो बीजेपी से बढ़िया काम करके दिखाएंगी, तो वो ब्रह्मास्त्र है वो नाम जो आने वाले चुनाव का सबसे बड़ा नारा बन सकता है, नारा ही नहीं सरकार भी बना सकता है …………वो है “अबकी बार प्रियंका सरकार “………….इसके लिए सोनिया राहुल को तैयार होना पड़ेगा प्रियकां को खुद पर दांव लगाने के लिए एक बड़ी चुनौती स्वीकार करनी होगी, पूरी पार्टी में इस नारे से जो जान आएगी वो दूसरों की जान आफत में डालने का काम करेगी और प्रियंका के नाम पर पार्टी इतने वोट बटोरने में कामयाब हो सकती है कि भले ही बहुमत के आंकड़े तक ना पहुंचे लेकिन दूसरों के भी सरकार बनाने के सपने पर पानी फिरा सकती है।

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