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जलीय कृषि तालाबों में मत्स्य विकास के लिए मीठे पानी को संरक्षित करें: देवर्षि रंजन

रमाकांत बरनवाल 

सुलतानपुर, नवसत्ता:- जनपद निवासी देवर्षि रंजन जिन्होंने मत्स्य महाविद्यालय आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या से मत्स्य विज्ञान में स्नातक तथा मत्स्य पालन महाविद्यालय डा  राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय ढोली मुजफ्फरपुर बिहार से एक्वा कल्चर में परास्नातक की डिग्री हासिल कर वर्तमान में राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो लखनऊ में यंग प्रोफेशनल के रूप में कार्यरत हैं जिनके साथ मत्स्य विभाग में सुश्री उमा प्रियंका वर्मा भी सक्रियता से लगी हुई तथा उत्तर प्रदेश  में जलीय कृषि उत्पादन बढ़ाने की रणनीतियों पर अपने विचार रखते हुए *नवसत्ता संवाददाता* के साथ अपना विचार साझा किया व बताया कि उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक आबादी वाला और चौथा सबसे बड़ा राज्य है जो अन्य राज्यों की तुलना में अंतःस्थलीय मछली पालन में तीसरे स्थान पर आता हैं। 

उक्त ने कहा कि समुद्री उत्पादन लगभग स्थिर है इसलिए अतिरिक्त मछली उत्पादन को अंतःस्थलीय जल से प्राप्त करना पड़ता है, विशेष रूप से मीठे पानी की जलीय कृषि के माध्यम से। देश में मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए सरकार हाल ही में प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना तथा राज्य में मुख्यमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना शुरू किया है। देश या राज्य में किसी भी योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए उर्पयुक्त रणनीतियाँ बहुत आवश्यक हैं। इसलिए आज का यह लेख उत्तर प्रदेश में जलीय कृषि उत्पादन बढ़ाने की रणनीतियों पर आधारित है।

उन्होंने अपनी प्रमुख रणनीतियों के सम्बन्ध में बताया कि-

1. उत्तर प्रदेश सरकार को चयनित किसान मत्स्य बीज उत्पादकों को गुणवत्तापूर्ण ब्रूड  स्टॉक प्रदान करने के लिए और गुणवत्तापूर्ण मछली बीज उत्पादन के लिए उपर्युक्त  मछली प्रजातियों का ब्रूड बैंक स्थापित करने का नीतिगत निर्णय लेना चाहिए।

2. मौजूदा जलीय कृषि  तालाबों की औसत उत्पादकता स्तर को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक मीठे पानी की जलीय कृषि पद्धतियों को अपनाना चाहिए ।

3. कुशल उत्पादन के लिए विभिन्न प्रणालियों में सुसंस्कृत होने के लिए अच्छी तरह से मानकीकृत प्रजातियों के साथ गहन जलीय कृषि  प्रौद्योगिकियों  को अपनाने की आवश्यकता है।

4. प्रौद्योगिकियों को व्यापक रूप से  अपनाने को बढ़ावा देने के लिए सभी संबंधित हितधारकों को शामिल करते हुए व्यवस्थित प्रदर्शन कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।

5. राज्य में बड़ी संख्या में पंचायत जल निकायों का कम उपयोग किया जा रहा है, जिन्हें चरणबद्ध तरीके से वैज्ञानिक जलीय कृषि  के तहत लाया जाना चाहिए।

6. क्षमता निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए और अधिक संख्या में किसानों को वैज्ञानिक जलीय कृषि  पर विशिष्ट प्राद्यौगिकी मॉड्यूल पर प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और साथ ही सभी जिलों  में पर्याप्त प्रशिक्षण अवसंरचना विकसित की जानी चाहिए।

7. राज्य  में उचित बुनियादी सुविधाओं की कमी है जैसे- मछली और शेलफिश हैचरी, मिट्टी-जल  गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाएं, रोग निदान प्रयोगशालाएं आदि। अतः सभी  महत्वपूर्ण जलीय कृषि संचालन वाले जिलों में उपरोक्त  प्रयोगशाला स्थापित करने की सलाह दी जानी चाहिए।

8. घरेलू  मछली की खपत को आमतौर रूप  से बढ़ावा दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह  मछली के सतत उत्पादन को सुनिश्चित करने में मदद करेगा ।

9. जलीय कृषि  में सतत विकास के लिए नीति समर्थन, प्राद्यौगिकी  हस्तांतरण, प्रभावी संसाधन उपयोग, बाजार संपर्क, फसल के बाद उत्पाद प्रसंस्करण आदि को अपनाने के लिए उचित रणनीतियों से जुड़ना, और निम्नलिखित रणनीतियों को अपनाना चाहिए।

10. निर्यातोन्मुखी उद्यमिता  विकास को बढ़ावा देने के लिए उच्च क्षमता वाली प्रजातियों जैसे झींगा पालन, सजावटी मत्स्य पालन और मीठे पानी में मोती की खेती जैसे  मिशन मोड योजनाएं लागू की जानी चाहिए।

11. क्षेत्र की गतिशीलता के अनुरूप प्रभावी शासन संरचना के लिए संस्थागत सुधारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

12. योजना के कार्यान्वयन में मजबूत प्रभाव मूल्यांकन ढांचे के साथ-साथ योजना कार्यान्वयन प्रक्रिया की परिचालन दक्षता बढ़ाने के लिए आवश्यकता आधारित अनुसंधान अध्ययन की गुंजाइश भी शामिल की जानी चाहिए।

उक्त समस्त बातें उत्तर प्रदेश में यंग प्रोफेशनल द्वितीय के रूप में कार्यरत देवर्षि रंजन व सुश्री प्रियंका वर्मा ने व्यक्त करते हुए मत्स्य पालन पर विशेष बल देते हुए ध्यान आकर्षित किया।

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