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चौबीस की लड़ाई पिछड़ों पर सिमट आई

नीरज श्रीवास्तव

लखनऊ,नवसत्ता। बिहार सरकार द्वारा जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद जिस तरह राजनैतिक बयानबाजी शुरू हो गई है उससे साफ है कि आगामी लोकसभा चुनाव का ऐजेंडा पिछड़ों को उनका हक दिलाना ही होगा। सत्तारूढ़ एनडीए जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पिछड़ों के सबसे बडे़ नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करेगी वहीं विपक्षी गठबंधन इंडिया इस रिपोर्ट के जरिये केन्द्र सरकार को घेरते हुए पिछड़ों का आरक्षण बढ़ाने की मांग करेगी। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर भी यह रिपोर्ट गहरा असर डालेगी।

बिहार सरकार द्वारा आज जारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.1 फीसदी है, जबकि पिछड़ा की आबादी 27.12 फीसदी है। दोनों को मिलाकर देखें तो साफ है कि कुल पिछड़ा वर्ग की आबादी 63 फीसदी से ज्यादा है। जो राज्य मे किसी भी सामाजिक समूह के मुकाबले सबसे अधिक संख्या है। इस रिपोर्ट को राज्य में पिछड़ा वर्ग की राजनीति के लिए एक नई शुरुआत के तौर पर भी देखा जा रहा है।

आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले इस रिपोर्ट को जारी करना इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि इंडिया गठबंधन में इस मुद्दे पर मोटे तौर पर आम सहमति है। कांग्रेस और राहुल गांधी लगातार 2024 में सरकार में
आने पर देश में जाति जनगणना करवाने का वादा कर रहे हैं। आज भी उन्होंने रिपोर्ट का स्वागत करते हुए पिछड़ों को उनका हक मिलने की बात दोहराई। इस रिपोर्ट के आने के बाद अब पूरे देश में जातिगत जनगणना कराने की मांग उठेगी। इसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव पर पडे़गा।

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर भी इस रिपोर्ट का खासा असर देखने को मिलेगा। उत्तर प्रदेश में पिछड़ों के आबादी 54 फीसदी मानी जाती है। ऐसे में राज्य के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को चुनाव पूर्व पिछड़ों का हक दिलाने का मुद्दा मिल गया है। स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता पहले से ही 85 बनाम 15 के मुद्दे को जोर-शोर से उठाते रहे हैं। इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद भाजपा बचाव की मुद्रा में नजर आ रही है। जाहिर है चुनाव से पहले पार्टी हिन्दुत्व के मुद्दे पर किसी तरह के विभाजन के लिए तैयार नहीं हैं।

रामजन्म भूमि आंदोलन को शुरूआती दौर से कवर कर रहीं वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता के मुताबिक राम मन्दिर के भव्य उद्घाटन के जरिये भाजपा लोकसभा चुनाव से पूर्व हिन्दू वोटबैंक को एकजुट करने की रणनीति पर काम कर रही थी। ऐसे में यदि इस रिपोर्ट को लेकर पिछड़ी जातियों में आक्रोश बढ़ा तो इसका सीधा नुकसान भाजपा को होगा। वैसे कई राजनैतिक विश्लेषक इस रिपोर्ट को मण्डल पार्ट 2 के तौर पर देख रहे हैं। आने वाले दिनों में इस रिपोर्ट का असर देश व प्रदेश की राजनीति पर कितना पड़ता है यह तो भविष्य के गर्भ में है परन्तु इतना तय है कि 2024 की लड़ाई अब पिछड़ों को हक दिलाने के मुद्दे पर ही लड़ी जाएगी।

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