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वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल का डेटा उजागर करने की याचिका, सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस

नई दिल्ली,नवसत्ता: सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल और पोस्ट वैक्सीनेशन डेटा को सार्वजनिक करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन लगाने के लिए विवश करने पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार किया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो याचिका पर नोटिस जारी कर रहा है, लेकिन टीकाकरण को लेकर लोगों के मन में भ्रम पैदा नहीं करना चाहता। कोर्ट ने कहा, क्योंकि वैक्सीन संशय पहले से ही समस्या पैदा कर रहा है। देश वैक्सीन की कमी से लड़ रहा है, टीकाकरण जारी रहे और हम इसे रोकना नहीं चाहते हैं। कोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और वैक्सीन निर्माताओं को नोटिस जारी किया और सभी से चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है।

बता दें कि बाल चिकित्सक डा. जैकब पुलीयल ने कोर्ट में यह याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि आईसीएमआर समेत सभी अंतरराष्ट्रीय निकायों का नियम है कि वैक्सीन डेटा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक रूप से डेटा जारी किए जाने पर विशेषज्ञ उस पर गौर करते हैं। उन्होंने कहा, हम यह नहीं कह रहे हैं कि टीकाकरण को रोक दिया जाए, लेकिन ट्रायल के डेटा को पब्लिक डोमेन में लाया जाना चहिए।

कोर्ट ने कहा कि सबसे अधिक शिक्षित व्यक्तियों में भ्रम है, क्योंकि स्वतंत्र विशेषज्ञों ने वैक्सीन या परीक्षण के आंकड़ें नहीं देखे हैं। भूषण ने कोर्ट में यह भी दावा किया कि पिछले एक महीने में कोविड टीकों की वजह से 3,000 लोगों की मौत होने की खबर मिली है। उन्होंने यह भी कहा कि कोविड-19 के बाद शरीर में पैदा होने वाली एंटीबॉडी, वैक्सीन से बनने वाली एंटीबॉडी के मुकाबले बहुत बेहतर होती और विभिन्न प्रायोगिक संस्थानों ने यह स्पष्ट किया है।

बता दें कि याचिका में कहा गया है कि लोगों को आवश्यक सेवाओं तक पहुंचने के लिए शर्त के रूप में कोविड वैक्सीन लगाने के लिए मजबूर करना असंवैधानिक है। साथ ही वैक्सीन के मामले में सरकार ने अनिवार्यता नहीं रखी है और वैक्सीन लगाने वाले को खुद निर्णय लेना है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि निजी संस्थानों की ओर से कर्मचारियों को बाध्यता क्यों है?

जस्टिस एल नागेश्वर रॉव ने सुनवाई करते हुए कहा कि देश में 50 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। आप क्या चाहते हैं कि वैक्सीनेशन कार्यक्रम को बंद कर दिया जाए। देश में पहले ही वैक्सीन हेसिसटेंसी चल रही है। कोर्ट ने कहा कि इस याचिका से उन लोगों में भ्रम पैदा होगा, जिन्होंने वैक्सीन लगवा रखी है। कोर्ट ने कहा, डब्ल्यूएचओ का भी कहना है कि लोगो में वैक्सीन लगवाने को लेकर शंका रहती है, अगर हम इस तरह की याचिका दाखिल करते हैं तो लोगों में और शंका पैदा होगी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार करते हुए केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है।

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