के सी पाठक
सुल्तानपुर,नवसत्ता:डॉक्टर्स डे विशेष की इस सीरीज में हमने ज़िला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक सुरेश चन्द्र कौशल से उनकी ज़िंदगी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से जानने चाहे तो उन्होंने बताया,बचपन में गरीबी देखी।गरीब सामाजिक परिवेश से जुड़े हुए पिता जी किसान थे और मेरा पालन-पोषण बड़े पिताजी ने किया।उसी गरीबी को देखते हुए और बड़े पिताजी के अच्छे संस्कार से मैंने समाज के लोगों को निस्वार्थ भाव से सेवा करने की ठानी और मेरे परिवार ने मुझे यह शिक्षा दी कि समाज के लिए तुम्हें कुछ करना है जो कि मेरे लिए प्रेरणास्रोत बनी l मेरी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा कानपुर और हरदोई जनपद से रही। एमबीबीएस के लिए 1979 में गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज कानपुर में एडमिशन लिया।सन 1984 में एमबीबीएस पास हुआ।बाद में महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज झांसी से मैंने एनेस्थिसिया में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। सन 1990 में मैंने प्रांतीय चिकित्सा सेवा को ज्वाइन किया l जनपद सीतापुर में पीएचसी अधीक्षक और बलरामपुर हॉस्पिटल लखनऊ में अधीक्षक पद से लेकर विभिन्न जनपदो में कार्यरत रहते हुए दोबारा बलरामपुर हॉस्पिटल लखनऊ में मैंने अपनी सेवा दी। इसके पश्चात नवंबर 2020 में सुल्तानपुर जनपद में मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के रूप में अपनी सेवा दे रहा हूं। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के समय 31 दिसंबर को 17 वर्ष की अवस्था मांगी गई थी जबकि इसके पूर्व मेडिकल कॉलेज में हमेशा जुलाई में 17 साल की अवस्था मांगी जाती थी। मेरी किस्मत थी कि मैं 17 वर्ष का 31 दिसंबर को ही हो रहा था। अगस्त में मेरा एडमिशन हुआ था जिसको लेकर वहां पर बहुत विरोध किया गया कि अभी ये 17 वर्ष का नहीं हुआ तो इसका एडमिशन कैसे हो गया।बाद में टेक्निकल पॉइंट को समझते हुए मेरा एडमिशन हुआ। यह बात भूलती नहीं है मेरे शिक्षक गण बहुत अच्छे थे। पढ़ाई में इंग्लिश मीडियम होने से थोड़ा दिक्कत का सामना करना पड़ा क्योंकि मैं हिंदी मीडियम से था और वहां पढ़ाई इंग्लिश मीडियम में होती है।मगर शिक्षकों की अच्छी पढ़ाई और अच्छे संस्कार से मैंने मेहनत से पढ़ाई की और एमबीबीएस को पास किया। मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान हमारे एक शिक्षक टंडन जी की बात नहीं भूलती। जब हम ओटी में थे तो वह एक लाठी लेकर के चले आए और उसे पकड़ कर चल चल कर बताया कि इस केस में मरीज ऐसा चलेगा इस केस ने ऐसा चलेगा। जिससे हंसी भी आयी और बहुत अच्छी शिक्षा भी मिली। एनेस्थेटिक होने के कारण कई बार कई मरीजों को एनैस्थिसिया देना पड़ता था जिसे लेकर थोड़ा टेंशन होती थी।मगर पेशेंट को सकुशल ठीक-ठाक देखकर ही संतुष्टि भी होती थी।जब कोई मरीज अच्छा होकर अपने घर चला जाता था तो और भी संतुष्टि होती थी l
भावी पीढ़ी जो डॉक्टर बनना चाहती है उसके लिए क्या संदेश है,यह पूछे जाने और वह कहते हैं,नीट की तैयारी करने वाले बच्चे जो डॉक्टर बनना चाहते हैं उनके लिए मेरा संदेश है कंपटीशन का जमाना तो है लेकिन वह इससे घबराए नहीं। एक एक लाइन को लिखें और एक एक लाइन का मतलब समझें।
मौजूदा कोरोना के हालात को लेकर पूछे जाने पर डॉक्टर कौशल कहते हैं,कोरोनाकाल में शासन के आदेश से संपूर्ण ओपीडी को पूर्ण रूप से संचालित कर दिया गया है। मगर यह देखकर दुख होता है कि लोगों में अभी भी भ्रांतियां फैली हुई है कि कोरोनावायरस खत्म हो गया है।यह याद रहे कि कोरोनावायरस की एक लहर खत्म हुई है न कि कोरोना।सभी को मास्क और सैनिटाइजर के साथ सामाजिक दूरी का पालन करते हुए कोविड-19 प्रोटोकॉल का अवश्य पालन करना चाहिए।वरना यह करोना कब भयानक रूप फिर से ले ले कुछ कहा नही जा सकता, क्योकि केस कम हुए है कोरोना नही l