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डॉक्टर्स डे विशेष:जानिए अपने डॉक्टर के अनसुने किस्से,मिलिए रायबरेली में प्रख्यात सिमहंस अस्पताल के संस्थापक डॉक्टर मनीष चौहान से

राय अभिषेक

ब्रेन के काफी पार्ट्स एक्सीडेंट में डैमेज हो चुके थे या खो चुके थे। लखनऊ भेजने के अलावा मेरे पास कोई चारा नही था। क्योंकि उस सर्जरी के लिए हमारे पास संसाधन नही थे। उसके साथ वालों ने सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दिया और कहीं भी जाने से मना कर दिया। मैंने तुरंत एक आदमी को एक्सीडेंट की जगह जा कर मिसिंग पार्ट्स ढूढने को कहा,और तुरंत न्यूरो सर्जन,प्लास्टिक सर्जन को बुलाया। जो पार्ट्स मेरा कर्मचारी लेकर आया वो बिल्कुल खराब हो चुका था। फिर हमने उस पेशेंट के शरीर से हड्डी निकाल कर रात भर ऑपेरशन करते हुए उसके ब्रेन को रिपेयर किया और उसकी 11 दिनों तक देखभाल यही की। 15 साल बीत गए इस घटना को, आज भी अगर उस शख्स को कुछ भी होता है तो वो यहीं आता है इलाज के लिए।

रायबरेली,नवसत्ता:डॉक्टर्स डे स्पेशल की इस श्रंखला में आपको मिलवाते हैं जिले के प्रख्यात सिमहंस अस्पताल के संस्थापक डॉक्टर मनीष चौहान से। खुद के डॉक्टर बनने से लेकर सिमहंस अस्पताल की स्थापना तक के पीछे की प्रेरणा के बारे में हमने पूछा तो वह बताते हैं, मुझे न्यूरो डॉक्टर बनने की प्रेरणा मेरे स्व० पिताजी से मिली थी। मैं उस समय बाहर था और यहां उच्च रक्तचाप की वजह से उन्हें न्यूरो की समस्या शुरू हुई। जब लखनऊ में सीटी स्कैन कराया गया तो उनके ब्रेन में ब्लॉकजेस डिटेक्ट हुई,जिन्हें बाद में बचाया न जा सका। वैसे भी मुझे न्यूरो साइंस में ज्यादा रुचि थी और इस घटना से मैंने न्यूरो डॉक्टर बनने का संकल्प ले लिया था। यूक्रेन के वीनित्सा स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करके एक साल दिल्ली के ओपोलो हॉस्पिटल में रेजिडेंट रहा।बाद में क्लेट पास करके स्कॉटलैंड में रेजीडेंसी करके मास्टर्स इन न्यूरोलॉजी की डिग्री हासिल की। फिर इंडिया आकर मैने दिल्ली के आरएमएल,ओपोलो और विमहन्स हॉस्पिटल में अनुभव लिया। उसके बाद रायबरेली में जहां सिमहंस हॉस्पिटल है इसी जगह पर एक दुकान में सबसे पहले लोन लेकर सीटी स्कैन की मशीन लगाई और क्लिनिक शुरू कर दी।

मेडिकल की पढ़ाई के दौरान के कुछ किस्से हमने जानने चाहे तो डॉक्टर मनीष बताते हैं,कॉलेज टाइम में बहुत सारी इंटरेस्टिंग बातें होती है पर यूक्रेन में एक ऐसी घटना घटी थी जिसने मेरे जीवन की सोच को बदल दिया। हुआ यूं कि हम 3 स्टूडेंट्स की नाइट ड्यूटी लगती थी, ज्यादातर स्टूडेंट्स की तरह हमारा भी कैजुअल एप्रोच था। एक रात काफी सीरियस पेशेंट आया तो हम लोगो ने उसे कैसुअली देख कर दवाएं दी और अपने रूम में आ गए। जब उसकी हालत बिगड़ने लगी तो हमारी एक प्रोफेसर डॉ. सराकोवा को बुलाया गया। उन्होंने केस संभाल लिया। उन प्रोफेसर ने हम लोगों सीख देते हुए कहा था,हमारे प्रोफेशन में कैजुअल एप्रोच की बिल्कुल भी जगह नही है,हमे हर एक मरीज को निजी तौर पर समय देना चाहिए,उसकी पूरी स्थिति का सही आंकलन करके ही इलाज़ शुरू करना चाहिए।उन्होंने कहा,पढ़ाई सबकी एक ही होती है पर सफलता आपकी सोंच और आपके एप्रोच पर निर्भर करती है।उस रात का वह कथन मेरे लिए गुरुमंत्र बन गया।

सिमहंस के अस्तित्व में आने का ज़िक्र करते हुए डॉक्टर मनीष ने बताया,देश विदेश का अनुभव लेकर जब रायबरेली में सिमहंस क्लीनिक शुरू किया तो मेरे साथ सिर्फ दो स्टाफ था। मेरी ज़िंदगी का पहला केस मुझे हमेशा याद आता है जब एक ब्रेन अटैक का मरीज आया जो बहुत ही गरीब था। अनुभव के आधार पर मैं इलाज करने में सक्षम था लेकिन बेड या कोई अन्य सुविधा न होने के कारण मैं उसे रेफर करना चाह रहा था। जब उसके परिवार वाले नही माने तो मैंने पांच दिन तक खुद उसका इलाज उसी छोटी सी क्लीनिक में एक फोल्डिंग बेड पर लिटा के किया और वो स्वस्थ भी हुआ। वहाँ से उसकी दुआ लगी और मैं धीरे धीरे सफलता की सीढ़ी चढ़ने लगा।
डॉक्टर मनीष आगे बताते हैं,सबसे ज्यादा क्रिटिकल केस में से एक, मेरे पास एक रात ऊंचाहार से बाइक एक्सीडेंट का आया था। पेशेंट लगभग खत्म ही था,उसके सर के दो टुकड़े हो गए थे, ब्रेन बाहर आ गया था और ब्रेन के काफी पार्ट्स एक्सीडेंट में डैमेज हो चुके थे या खो चुके थे। लखनऊ भेजने के अलावा मेरे पास कोई चारा नही था। क्योंकि उस सर्जरी के लिए हमारे पास संसाधन नही थे। उसके साथ वालों ने सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दिया और कहीं भी जाने से मना कर दिया। मैंने तुरंत एक आदमी को एक्सीडेंट की जगह जा कर मिसिंग पार्ट्स ढूढने को कहा,और तुरंत न्यूरो सर्जन,प्लास्टिक सर्जन को बुलाया। जो पार्ट्स मेरा कर्मचारी लेकर आया वो बिल्कुल खराब हो चुका था। फिर हमने उस पेशेंट के शरीर से हड्डी निकाल कर रात भर ऑपेरशन करते हुए उसके ब्रेन को रिपेयर किया और उसकी 11 दिनों तक देखभाल यही की। 15 साल बीत गए इस घटना को, आज भी अगर उस शख्स को कुछ भी होता है तो वो यहीं आता है इलाज के लिए।
डॉक्टर मनीष कहते हैं,हम इमानदारी से अपना काम करते जा रहे हैं,ईश्वर का आशीर्वाद और लोगों का साथ मिल रहा है।एक क्लीनिक से शुरू हुआ सफर आज एक अस्पताल तक पहुंचा है,आगे देखते हैं कहाँ तक जाते हैं।

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