गरिमा
उन दिनों कॉलेज में वार्षिक खेलकूद की प्रतियोगिता चल रही थी और बहुत से स्टूडेंट्स ने उसके लिए महीनो से काफी मेहनत की थी| मैं बिना किसी तैयारी के उस प्रतियोगिता में भाग लेने पहुच गया और दौड़ में अपना नाम लिखा दिया| एक के बाद एक राउंड में जब मेरा फर्स्ट या सेकंड स्थान आने लगा तो वहां मौजूद प्रोफेसर्स, स्टूडेंट्स आदि के बीच में मेरी पहचान बनी….
रायबरेली,नवसत्ता:डॉक्टर्स डे विशेष सीरीज में आज हम आपको रूबरू कराते है रायबरेली जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ, वीरेंद्र सिंह से| डॉ. वीरेंद्र ने मेडिकल प्रोफेशन में आने का निर्णय 70-80 के दशक में डॉक्टर्स की कमी, उनका समाज के प्रति सेवाभाव और लोगो के बीच एक अलग स्थान को देख कर लिया था| 1982 में मेडिकल की प्रवेश परीक्षा पास करके गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया और वही से एमबीबीएस की पढाई करने के बाद डीसीएच की पढाई भी पूरी करी| पढाई करने के बाद डॉ. वीरेन्द्र ने 25 वर्ष चिकित्सक के रूप में कार्य किया फिर डायरेक्टरेट में अपनी सेवाएं देने के बाद वर्तमान में रायबरेली जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्यरत है|
अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए उन्होंने हमें बताया, कॉलेज लाइफ में स्टूडेंट्स में बहुत से ऐसे छुपे हुए हुनर होते है जिसका पता खुद भी नहीं होता और वे अपने आप उभर के सामने आ जाते है| पढाई के अलावा मुझे सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेलकूद आदि में भाग लेना अच्छा लगता था| वास्तव में पहले साल मैं कॉलेज में डे स्कॉलर था, रैगिंग के डर की वजह से मैं कभी हॉस्टल में नहीं रुकता था।इस वख से मेरे पास अपने सहपाठियों या सीनियर्स का ज्यादा सपोर्ट नहीं रहता था| उन दिनों कॉलेज में वार्षिक खेलकूद की प्रतियोगिता चल रही थी और बहुत से स्टूडेंट्स ने उसके लिए महीनो से काफी मेहनत की थी| मैं बिना किसी तैयारी के उस प्रतियोगिता में भाग लेने पहुंच गया और दौड़ में अपना नाम लिखा दिया| एक के बाद एक राउंड में जब मेरा फर्स्ट या सेकंड स्थान आने लगा तो वहां मौजूद प्रोफेसर्स, स्टूडेंट्स आदि के बीच में मेरी पहचान बनी|
पढाई के बाद जब मेरी पहली पोस्टिंग देवीपाटन में हुई जो उस समय गोंडा जिले में था, वहां ज्वाइन करने के बाद जब मैं सीएमओ के पास कही और पोस्टिंग के लिए गया तो उन्होंने सीधे पूछा कि रहना है या भागना है। मैंने उन्हें कहा कि सर मैं काम करने आया हूँ।उसके बाद उसी जगह मैं साढ़े बारह साल तक रहा| उसके बाद अमेठी में भी साढ़े बारह वर्षो तक कार्यरत रहा| फिर 4 साल डायरेक्टरेट में रहा। उसके बाद रायबरेली जिले में बतौर सीएमओ आ गया| जब मैंने नौकरी की शुरुआत की थी तब चिकित्सीय संसाधन काफी सीमित थे| उस समय बच्चो में टिटनस की समस्या आम थी जिसका इलाज करना बहुत मुश्किल होता था| फिर भी हम लोग सिर्फ अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर उनका इलाज किया करते थे| मैं आज के दौर में सिर्फ एक बात से ही चिंतित हूँ वो है डॉक्टर और मरीज के बीच बढती दूरी| जिसकी कई वजह है पर हम सबको यह प्रयास करना चाहिए की ये दूरियां कम हो और एक अच्छा माहौल बने|