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स्टेशन पर समानांतर सरकार चला रहे रेल अधिकारी, पार्ट- 2

माल भाड़े की आय का मात्र 30 फीसदी रेल खजाने में, शेष 70 फीसदी का होता है बंदरबांट

संवाददाता
मिर्जापुर, नवसत्ता: स्थानीय रेलवे स्टेशन पर देश के विभिन्न स्थानों से आयातित एवं निर्यात किए जाने वाले कीमती सामानों पर भारी-भरकम टैक्स लायबिलिटी का हव्वा खड़ा करते हुए यहां पार्सल घर को चला रहे बाहरी व्यक्तियों द्वारा राजस्व संग्रह की विभिन्न एजेंसियों से सांठगांठ करते हुए व्यापारियों से रेलवे द्वारा निर्धारित माल भाड़े के अलावा पांच गुना अतिरिक्त धनराशि वसूलने के पश्चात सामान की वास्तविकता तथा उसका वास्तविक मूल्य छिपाते हुए खुलेआम आंखों में धूल झोंकते हुए फर्जी आधार कार्ड लगाकर सामानों को गंतव्य तक भेजने के पश्चात अनधिकृत ढंग से हुए भारी भरकम आय का आपस में बंदरबांट किया जाता है.

ज्ञातव्य है कि यहां का मशहूर पीतल का बर्तन, होजरी, रेडीमेड गारमेंट्स, कॉस्मेटिक्स, विभिन्न कास्ठ औषधियों तथा किराना के सामानों के अलावा ताजे फल, सब्जियां व पीतल के स्क्रैप इत्यादि की बुकिंग के इन सामानों पर भारी भरकम टैक्स की लायबिलिटी केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए जाने के बावजूद पार्सल घर में दिन-रात मौजूद रहने वाले बाहरी व्यक्तियों द्वारा रेलवे द्वारा निर्धारित माल भाड़े के अलावा आरपीएफ, जीआरपी, व्यापार कर, आयकर तथा कस्टम्स एंड सेंट्रल एक्साइज विभाग तथा इलाकाई कटरा कोतवाली पुलिस के नाम पर चार सौ रुपए की अतिरिक्त वसूली की जाती है.

इसका पुख्ता प्रमाण इसी बात से है कि खबर प्रकाशित होने के बाद राजकीय रेलवे पुलिस के एक अधिकारी ने पेट पर लात न मारने का अनुरोध करते हुए सिर्फ इतना ही कहा कि मिर्जापुर रेलवे स्टेशन पर पार्सल के अलावा ऊपरी कमाई का साधन और है ही क्या ?

जबकि व्यापार कर तथा कस्टम्स एंड सेंट्रल एक्साइज विभाग के आला अधिकारियों से मामले की शिकायत किए जाने पर उनके द्वारा कभी कर्मचारियों की कमी तो कभी रेलवे का मुहर लगे सामानों को चेक करने का अधिकार नहीं होने का बहाना बनाते हुए बातों को लगातार डाल दिए जाने के चलते दाल में साफ तौर पर काला दिखने लगा है.

जबकि सामानों के बंडलों पर रेलवे की मुहर लगाए जाने की सच्चाई यह है कि पार्सल घर में बैठे बाहरी व्यक्ति द्वारा सीपीएस की मौन सहमति के चलते उनसे पूछे बगैर ही सामानों की मनमाने ढंग से बिल्टी बनाते हुए सीपीएस का सिग्नेचर कराए बगैर ही सामानों को रेलवे की संपत्ति घोषित करने की जल्दबाजी में इन सामानों की वास्तविकता तथा कीमत छिपाते हुए उन बंडलों पर आनन-फानन में मार्का लगा दिया जाता है.

सूत्रों की माने तो माल भाड़े से हुई समस्त आय का मात्र 30 प्रतिशत धनराशि की रेलवे के खजाने में जमा किया जाता है जबकि शेष भारी भरकम धनराशि आरपीएफ, जीआरपी, चीफ पार्सल सुपरवाइजर (सीपीएस), व्यापार कर, आयकर तथा कस्टम्स एंड सेंट्रल एक्साइज व इलाकाई कटरा कोतवाली पुलिस के हिस्से में जाता है.

सूत्र यह भी बताते हैं कि सीपीएस के माध्यम से धनराशि का एक बड़ा हिस्सा रेल मुख्यालय तक भेजा जाने लगा है. इस बात की जांच के बाद ही दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है.

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