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कहीं सपा वाली ‘गलती’ तो नहीं दोहरा रही है भाजपा

नीरज श्रीवास्तव
लखनऊ,नवसत्ता : उत्तर प्रदेश में इन दिनों सत्ता के गलियारों में जो दृश्य दिखा दिखाई पड़ रहा है वह 5 साल पहले सपा सरकार के अंतिम दिनों की याद दिला रहा है। सरकार के चार साल पूरे होने के बाद जिस तरह से पूर्व सपा सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव घिरे नजर आ रहे थे ठीक वही स्थिति आज भाजपा सरकार में दिख रही है। आये दिन मुख्यमंत्री से लेकर मिं़त्रयों व प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने की चर्चाओं से पार्टी कार्यकर्ता असमंजस में हैं। पार्टी नेतृत्व ने यदि जल्द ही इसको दूर नहीं किया तो आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

पूर्ववर्ती सपा सरकार के समय यह बात आम थी कि सत्ता के एक नहीं कई केन्द्र हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार इससे इंकार करते रहे परन्तु उनकी और चाचा शिवपाल यादव की आंतरिक खींचतान जिस तरह अंतिम दिनों में सामने आयी उसने कहीं न कहीं पूर्ण बहुमत की सपा सरकार को सत्ता से बाहर करने में प्रमुख भूमिका निभाई। ठीक वैसी ही स्थिति आज भाजपा सरकार में देखने को मिल रही है। विधानसभा चुनाव होने में अब कुछ ही महीने शेष हैं। सरकार के पास काम करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं बचा है। ऐसे में बीते कई दिनों से सरकार व संगठन को लेकर जिस तरह से चर्चाएं चल रहीं हैं उससे पार्टी कार्यकर्ता असमंजस में नजर आ रहा है। पंचायत चुनाव में भाजपा को लगे झटके ने केन्द्रीय नेतृत्व को भी लगने लगा है कि प्रदेश में पार्टी के संगठन व सरकार के स्तर पर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।

यही कारण है कि नेतृत्व के निर्देश पर पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष कल से यहां डेरा जमाये हुए हैं। उनके साथ पार्टी के यूपी प्रभारी राधा मोहन सिंह भी हैं। अपने प्रवास के दौरान कल उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल, क्षेत्रीय अध्यक्षों और पार्टी के महामंत्रियों के साथ बैठक की। इसके बाद उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना से भी कोरोना काल में सरकार के काम का फीडबैक लिया। आज उन्होंने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से अलग से लंबी चर्चा की। नेतृत्व उन्हें चुनाव से पूर्व पिछड़े नेता के तौर पर एक बार फिर प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक श्री मौर्य इसके लिए राजी नहीं हो रहे हैं। बीते चार साल में उनके व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रिश्ते सामान्य नहीं रहे हैं। कई मौकों पर वे अपनी नाराजगी का इजहार भी कर चुके हैं।

प्रदेश की सियासत में एके शर्मा की इंट्री से चर्चाओं को मिला बल

उत्तर प्रदेश की सियासत में पूर्व नौकरशाह व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी ए के शर्मा की इंट्री ने सरकार के कामकाज को लेकर कई तरह की चर्चाओं को जन्म दिया है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक हाईकमान उन्हें सरकार में मजबूत स्थिति में लाना चाहता है ताकि उनके जरिये प्रदेश की नौकरशाही के कामकाज को सुधारा जा सके। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसके लिए तैयार नजर नहीं आ रहे है। उनका तर्क है कि चुनाव पूर्व इस तरह के बदलाव से उनकी सरकार पर असर आयेगा और विपक्ष को उनके चार साल के कामकाज पर सवाल उठाने का मौका मिलेगा। बीते दिनों ए के शर्मा ने मुख्यमंत्री से मुलाकात भी की थी उसके बाद प्रदेश में जल्द मंत्रिमण्डल विस्तार की चर्चा होने लगी थी परन्तु अभी तक जो खबरे निकल कर सामने आ रहीं हैं उसके मुताबिक पार्टी नेतृत्व हो या प्रदेश संगठन किसी ठोस नतीजे पर पहुंचते नजर नहीं आ रहे हैं। पार्टी नेतृत्व जल्द से जल्द इस मामले का पटाक्षेप चाहता है। ताकि वह अपना पूरा ध्यान आगामी विधानसभा चुनाव पर लगा सके।

पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने भी इस बात के संकेत देते हुए सरकार के मंत्रियों, पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों से कहा कि वे कोरोना पीड़ितों के घर जाएं, उनसे मिलें, विश्वास दिलाएं कि बीजेपी और सरकार उनके साथ खड़ी है, अगर उन्हें कोई दिक्कत है तो तत्काल उसका समाधान किया जाए। हालांकि इस सारी कवायद के बावजूद यह माना जा रहा है कि प्रचण्ड बहुमत की सरकार के आखिरी साल में इस तरह की चर्चाओं से पार्टी को आने वाले समय में नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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