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पंजीकरण करा लिया फिर कोई सुध नहीं

राय अभिषेक

रायबरेली, नवसत्ता: पिछले कुछ दिनों से नवसत्ता समाज के अलग अलग वर्गों, जिनकी अपनी अलग अलग स्थिति है, पर अध्ययन करके जमीनी हकीकत अपने पाठको, सम्बंधित विभागों, जिला प्रशासन और शासन के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है और इसी कड़ी में नवसत्ता ने आज जिले के छात्र छात्राओं के भविष्य को सवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संसथान, कोचिंग की तरफ रुख किया तो पाया कि जिले में लगभग 250 छोटे-बड़े कोचिंग सेंटर्स है, जिसमे 90 कोचिंग संगठित तौर पर “रायबरेली कोचिंग एसोसिएशन” के तत्वाधान में क्रियान्वित है| जब हमने इस वर्ग की गहराई में झाँका कि कोरोना काल की पहली लहर से लेकर अब तक की बंदी में कोचिंग संस्थानों पर क्या असर पड़ा तो चौकाने वाले आंकड़े सामने आये| यदि हम पिछले सत्र को भी जोड़ ले तो लगभग 75 लाख रुपये ऐसे विज्ञापन में खर्च हो गए जिसका इस्तेमाल ही नहीं हो पाया, इसके आलावा मासिक किराया, व्यावसायिक बिजली का बिल, स्टाफ को रुके रहने के लिए किया गया भुगतान आदि जैसे खर्च जोड़े तो पहली और दूसरी लहर की बंदी के दौरान, सम्मिलित तौर पर लगभग 10 करोड़ रूपये अस्तित्व को बचाने के लिए खर्च किये जा चुके है और अभी तक अधर में लटके हुए है| यहाँ एक रोचक बात ये भी है कि सत्र शुरू होने से पहले शिक्षा विभाग कोचिंग संस्थान को पंजीकरण के लिए प्रेरित करता है जिसमे ज्यादा से ज्यादा संस्थान पंजीकरण कराते है अभी 2020 के सत्र में लगभग 50 कोचिंग संस्थानों ने पंजीकरण कराया था और छात्रों की क्षमता के हिसाब से औसतन 5 से 20 हजार रूपये का शुल्क जमा किया था| तो कुल मिला कर आमदनी शून्य है, छात्रों का पठन पाठन बंद है लेकिन सरकार के कान में जूं नहीं रेंग रही कि समाज का ये वर्ग किस दिशा में जाये, बैठ कर ताला खुलने का इंतज़ार करे या कोई और काम क्यूंकि पेट तो पालना ही है साहब!!

रायबरेली कोचिंग एसोसिएशन एसोसिएशन के संरक्षक अलोक श्रीवास्तव ने नवसत्ता को ह्रदय विदारक मन से बताया कि किसी भी कोचिंग संस्थान का निदेशक एक शिक्षित व्यक्ति होता है और इसी समाज का हिस्सा होते हुए अपने ही समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान करता  है| सरकार की कोई भी योजनाये आती है, जनउपयोगी प्रदर्शन होता है, आपदा आती है तो हर कोचिंग अपनी क्षमता के हिसाब से उसमे भागीदारी जरूर करती है| अभी इसी लॉकडाउन में हम रोज़ 70 जरूरतमंदो को मिलजुल कर राशन पहुचाते है| हमारी आमदनी पिछले सत्र से बंद है, खर्चे वही है, कोचिंग सेंटर में हो रहे नुकसान का आंकलन करना बाकी है, और भी बहुत सारी समस्याएं है| हमारा परिवार हमें डेढ़ साल से घर में इस अनिश्चितता की स्थिति में बैठे हुए देख रहा है, वे कहे चाहे कुछ भी न कहे परन्तु अन्धकार से भरे भविष्य के बारे सोचकर हमेशा तनावग्रसित रहते है, वही छात्रों के भविष्य को देखकर हमारी स्थिति उस किसान की तरह है जिसके सामने उसकी तैयार की हुई फसल जल रही है और छाती पीटने के अलावा वो कुछ कर नहीं सकता| हमने सरकार को पंजीकरण शुल्क दिया है, सरकार हमको ये बताये कि हमें वे किस रूप में देखते है और एक दिशानिर्देश कोचिंग संस्थानों के लिए तुरंत जारी करे कि हम कब, कैसे अपना काम शुरू करेंगे? आज की स्थिति में तो हम पिता की बचपन में खाई डांट को भी साकार नहीं कर सकते कि “कुछ नहीं करोगे तो यही दुकान खुलवा देंगे”|

आशीष त्रिपाठी जोकि रायबरेली कोचिंग एसोसिएशन के संरक्षक है, ने कहा कि कोचिंग का मालिक इस समय जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है जिस पर न तो सरकार, न शिष्य न मित्रगण का ध्यान है बस हम काचिन चलने वाले ही एक दुसरे के दर्द को समझ सकते है| मैं सभी अभिभावकगण, विद्यार्थी और समाज के सभी वर्ग के समानित लोगो से निवेदन है की हमारी अवस्था पर ध्यान जरूर दे क्यूंकि एक शिक्षक हमेशा से अपना जीवन समाज के उत्थान और निर्माण में आहूत कर देता है और समाज को रूप स्वरुप को सवारने में एक शिक्षक का योगदान हमेशा से अतुल्यनीय और अभूतपूर्व रहा है| मेरी आशा है की हम कोचिंग संचालको और सिक्षाको की आवाज पर आप सभी ध्यान देंगे और हमारे स्थिति को वापस अपनी जगह पर पुनर्स्थापित करने में अपना योगदान देंगे|

रायबरेली कोचिंग एसोसिएशन की पावर कमेटी के प्रमुख अमित शुक्ला ने कहा कि कोविड 19 की पहली लहर के बाद कोचिंग तो बंद है पर बिजली का बिल, मकान का किराया, हाउस टैक्स आज भी चालू है । ऊपर से हर 3 साल पर     हमको रजिस्ट्रेशन भी करवाना पड़ता है| कोचिंग संचालित करने वाला अध्यापक उस समझदार वर्ग का हिस्सा है जो सरकारी नौकरी पाने से वंचित जरूर हुआ पर उसका बौद्धिक स्तर काफी है। ट्रेन बस और जहाज में तो लोग  बगल- बगल बैठ रहे हैं और कोचिंग में दूर-दूर तो फिर कोचिंग संचालकों व अध्यापकों के साथ ही भेदभाव क्यों किया जा रहा है। अनुरोध करूंगा हम सबका 2 साल का बिजली का बिल पूर्णतया माफ किया जाय और मकान के किराए हेतु, अध्यापकों को  उनके जीवन यापन हेतु मुआवजा देने का कष्ट करें ।

आज़मी जमाल जोकि आरसीए के प्रमुख सदस्य है का कथन है कि एक शिक्षक पिछले 2 साल से किस परिस्थितियों से गुजर रहा है सिर्फ वो और उसका परिवार ही जानता है। जहा सरकार ने सभी वर्गो के लिए कुछ न कुछ मदद की है लेकिन हम कोचिंग वालो की लिए कुछ भी नही किया है| हम बिल्डिंग का किराया, बिजली का बिल सब कुछ देना पड़ रहा है किसी भी तरह से कोई भी सुविधा सरकार की तरफ से नहीं मिली। सरकार से अनुरोध है कि जब तक कोचिंग नहीं खुलती है हम लोगों का बिजली का बिल और बिल्डिंग का किराया माफ कराया जाए।

 

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