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पंगेसियस मछली पालन की बढ़ रही लोकप्रियता: देवर्षि रंजन

 

सुलतानपुर , नवसत्ता  :– राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो लखनऊ के यंग प्रोफेशनल द्वितीय के पद पर कार्यरत परास्नातक देवर्षि रंजन ने मछलियों की खेती विषयक जानकारी देते हुए नवसत्ता दैनिक समाचार पत्र को बताया कि उत्तर प्रदेश में बहुत प्रकार की मछलियों की खेती की जा रही  है परन्तु  पंगास मछली जिसको आमतौर की भाषा में बैकर, बैखी, प्यासी और अन्य कई नामों से जाना जाता है उसकी खेती और लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

उक्त के सम्बन्ध में देवर्षि रंजन ने बताया कि इस मछली को किसान इस लिए ज्यादा पसंद कर रहे  हैं क्योंकि यह कम समय में तैयार होकर ज्यादा मुनाफा देती हैं और राज्य के कई जिलों में इसकी खेती बहुतायत से की जा रही है जो आजमगढ़, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, बलरामपुर, चंदौली, रायबरेली, बाराबंकी, लखनऊ, वाराणसी, आदि में प्रमुखता से प्रचलित है।  इन मछलियों का बीज़ राज्य में आमतौर पर पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश से आता हैं। किसानों को इस मछली पालन में रोग और ठीक ठाक दाम न मिल पाने से घाटे का सामना भी करना पड़ता हैं।

पंगास गर्म वातावरण की मछली है जिसकी वृद्धि के लिए 22-30 डिग्री सेल्सियस तापमान काफी अच्छा रहता है व कम तापमान पर इसकी वृद्धि कम हो जाती है और रोग के प्रभाव दिखने लगते हैं। सर्दियों में ऊमाइसिटीज नामक रोग से किसानों को बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है व बताया एक बार यह रोग किसी तालाब में आ जाता है तो मछलियों को बचाना मुश्किल हो जाता है और कुछ ही दिनों में पूरी मछलियां मर जाती हैं। हालाँकि इस रोग से बचने के लिए बाज़ारो में बहुत सारी दवाएं भी उपलब्ध हैं और इसके विपरीत जब तापमान ठीक रहता है तो इस मछली में कुछ हद तक जीवाणु के रोग भी दिखने को मिल जाते हैं, जोकि बाज़ारों में उपलब्ध दवा से ठीक हो जाता है।

उन्होंने पंगेसियस मछली के बारे में भी जानकारी दिया व बताया कि यह मीठे पानी की एक कैटफ़िश है, जो दुनिया की आठवीं सबसे सबसे ज्यादा पाली जाने वाली मछली जो शल्क रहित व सिर छोटा, मुंह बड़ा, शरीर पर काली लकीरें और आंखे बड़ी होती है तथा इस मछली में  दो जोड़ी  बार्वेल्स (मूँछ) पाए जाते हैं और यह सर्वाहारी  है तथा 6 से 8 माह में 800 से 1000 ग्राम की हो जाती है।बताया कि यह मछली वायुश्वासी होती है, और कम घुलित ऑक्सीजन वाले गंदे पानी में भी लम्बे समय तक रह सकती है और रोग निरोधक क्षमता अन्य मछलियों की अपेक्षाकृत अधिक होने के साथ इसके शरीर मे काँटे कम होते है जिस वजह से लोग इसे खाने और प्रसंस्करण में ज्यादा पसंद करते हैं।

पंगेसियस (पंगास) मछली को पालते समय पूरक आहार के रूप में दिये जाने वाले प्रतिदिन के भोजन को एक ही बार में न दें बल्कि उसे बाँट कर 3-4 बार अलग अलग समय पर दें, ऐसा करने से भोजन की बर्बादी कम  तथा मछलियों की वृद्धि ज्यादा होगी व महीने में 3-4  बार पूरक आहार नहीं देना चाहिए इससे मछलियों की पाचन शक्ति में भी वृद्धि होती है व कहा कि सर्दी या गर्मी के दिनों में पानी की अदला बदली आवश्यक है तथा समय-समय पर जाल चलाते रहना चाहिए इससे मछलियों की वृद्धि अच्छी होती हैं व मछलियों को संरक्षित करने के लिए तालाब में समय-समय पर उचित मात्रा में चूने का प्रयोग ज़रूर करें, इससे बीमारियों के संक्रमण का खतरा कम हो जाता है और जरूरत से ज्यादा मछलियों को भोजन न दें जिससे अमोनिया और नाइट्राइट जैसे जहरीली गैसों से  मछलियों को बचाया जा सकता है

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