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लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने लिए दो अहम फैसले

नई दिल्ली, नवसत्ताः सुप्रीम कोर्ट ने आज लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए दो अहम फैसले लिए जिसमें एक फैसला महाराष्ट्र में पिछले साल हुई सियासी बगावत का हैं, और दूसरा देश की राजधानी दिल्ली सरकार व उपराज्यपाल पब्लिक ऑर्डर से जुड़ा हैं।
आपको बता दे कि महाराष्ट्र में पिछले साल एकनाथ शिंदे गुट और उद्धव सरकार के बीच हुई बगावत पर अब 11 महीने बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इसे बड़ी बेंच के पास भेज कर मामला टाल दिया है, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में सत्ता के मामले को लेकर यह कहा कि दिल्ली में सरकारी अफसरों पर चुनी हुई सरकार का ही नियंत्रण रहेगा, और उपराज्यपाल पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर सभी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे।

Eknath Shinde seeks dismissal of Uddhav Thackeray camp's pleas; SC affidavit accessed | India News

गौरतलब है, पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत कर दी थी, और बागी विधायकों के साथ बीजेपी के समर्थन से सरकार बना ली थी जिस कारण उद्धव सरकार कमजोर पड़कर गिर गई थी। लेेकिन इसके बाद उद्धव ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी। इसी के साथ शिंदे गुट ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी और उद्धव ठाकरे के मुख्यमं़त्री पद से इस्तीफा देनेे के बाद चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का प्रतीक तीर कमान सौंप दिया था।

जिसके बाद से मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गईं जहां शिंदे गुट के 16 विधायकों ने सदस्यता रद्द करने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, तो वहीं उद्धव गुट ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर, राज्यपाल के शिंदे को सीएम बनने का न्योता देने और फ्लोर टेस्ट कराने के फैसले के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की, इतना ही नहीं उद्धव गुट ने शिंदे गुट को विधानसभा और लोकसभा में मान्यता देने के फैसले को चुनौती दे दी।

जिस पर सुप्रीम कोर्ट कई याचिकाओं को ध्यान में रखते हुए आखिरी सुनवाई के दौरान उद्धव गुट के वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के जून 2022 के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया, जिसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहा गया था। सिब्बल ने कहा था, अगर ऐसा नहीं किया गया तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार को बहाल कैसे कर सकता है, जब सीएम ने शक्ति परीक्षण का सामना करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए जहां उनकी कार्रवाई से एक विशेष परिणाम निकलेगा।

जिसको लेकर अब यह सवाल है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है? क्या विश्वास मत बुलाने के लिए कोई संवैधानिक संकट था? लोकतंत्र में यह एक दुखद तस्वीर है, सुरक्षा के लिए खतरा विश्वास मत का आधार नहीं हो सकता। उन्हें इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था।

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उधर, दूसरी तरफ दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकारों को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव चल रहा था। दिल्ली सरकार का कहना है कि इस मामले में उपराज्यपाल हस्तक्षेप ना करें, और इसी बात को लेकर दिल्ली सरकार ने याचिका लगाई थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था और जनवरी में सुनवाई के दौरान केंद्र ने मामले को बड़ी बेंच के सामने भेजने की मांग की जिसमें केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- मामला देश की राजधानी का है। इसलिए इसे बड़ी बेंच को भेजा जाए, जिसके बाद यह मामला 6 मई 2022 को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया गया था।

वहीं मामले को लेकर पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ‘चुनी हुई सरकार के पास अफसरों पर नियंत्रण की ताकत ना हो, अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर दें या फिर उनके निर्देशों का पालन ना करें तो जवाबदेही का सिद्धांत बेमानी हो जाएगा।‘ कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं। यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में ना चला जाए। हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो। और मामले पर डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली संविंधान पीठ ने 2019 के जस्टिस भूषण के फैसले से भी असहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार के पास ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर से ऊपर के अफसरों पर कोई अधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने मेयर चुनाव में मनोनीत पार्षदों को वोटिंग राइट देने के मामले में भी आम आदमी पार्टी को राहत दी थी। कोर्ट ने कहा था कि नॉमिनेटेड मेंबर्स को वोटिंग का हक नहीं है।सुप्रीम कोर्ट ने मेयर चुनाव में मनोनीत पार्षदों को वोटिंग राइट देने के मामले में भी आम आदमी पार्टी को राहत दी थी। कोर्ट ने कहा था कि नॉमिनेटेड मेंबर्स को वोटिंग का हक नहीं है।

 

 

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