नीरज श्रीवास्तव
लखनऊ,नवसत्ता: राजस्थान की कांग्रेस शासित सरकार द्वारा राज्य कर्मचारियों की पुरानी पेंशन करने के ऐलान ने यूपी का सियासी पारा और बढ़ा दिया है। चौथे चरण के मतदान के बीच हुए ऐलान ने जहां विपक्षी दल के समर्थक खासे उत्साहित हैं वहीं सत्तारूढ़ भाजपा साफ तौर पर दबाव में नजर आ रही है। अभी यूपी में तीन चरण का चुनाव शेष है। ऐसे में सत्ता में आने पर पुरानी पेंशन बहाल करने का वादा करने वाली समाजवादी पार्टी को सीधे तौर पर इसका फायदा मिलता नजर आ रहा है।
उत्तर प्रदेश के तेरह लाख राज्यकर्मी पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर बीते सात सालों से आंदोलनरत हैं। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उनके वोट की ताकत को पहचाना और सपा का घोषणा पत्र जारी होने से पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अखिलेश यादव ने ऐलान किया था कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनते ही पुरानी पेंशन व्यवस्था फिर से लागू कर दी जाएगी। अखिलेश ने ऐसा करके प्रदेश के तकरीबन 13 लाख कर्मचारियों व शिक्षकों व उनके परिवार को साधने की कोशिश की थी।
माया के वादे पर भरोसा नहीं जमा पाये राज्यकर्मी
अखिलेश यादव के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने भी घोषणा की थी कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनती है तो प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल कर दी जाएगी। हालांकि, मायावती को सत्ता की लड़ाई से बाहर माना जा रहा है। ऐसे में उनके इस ऐलान का फायदा बीएसपी को मिलेगा, इस पर संदेह है। बीजेपी की ओर से पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने का वादा नहीं किया गया है। ऐसे में सपा ही है, जो इस वादे को फैसले में तब्दील करने की दावेदार है। अगर शिक्षक और सरकारी कर्मचारी इस मुद्दे पर लामबंद होते हैं तो इससे सपा को फायदा मिल सकता है। अशोक गहलोत ने राजस्थान में बहाली का ऐलान किया है तो इस दावेदारी में कांग्रेस भी शामिल हो गई है। हालांकि, कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश में हाशिये पर है और उसके सत्ता तक पहुंचने की संभावना भी संदिग्ध है।
सपा को मिल सकता है फायदा
ऐसे में माना जा रहा है कि यूपी चुनाव में लाखों शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों को प्रभावित करने वाली पेंशन व्यवस्था का मुद्दा काफी असरदार साबित हो सकती है। प्रदेश में सपा और बीजेपी के बीच लड़ाई मानी जा रही है। ऐसे में इस मुद्दे को लेकर अगर कर्मचारियों और शिक्षकों का तबका वोट देने का मूड बनाता है, तो यह सीधे तौर पर अखिलेश यादव के पक्ष में जा सकता है। पुरानी पेंशन की मांग को लेकर काफी समय समय से आंदोलनरत अटेवा के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने राजस्थान सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि आने वाले समय में हर सरकार को पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करनी होगी। श्री बंधु प्रदेश के राज्यकर्मियों को पुरानी पेंशन बहाल करने वालों के पक्ष में मतदान करने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं।
क्या थी पुरानी पेंशन व्यवस्था
बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने अपने शासनकाल के दौरान अप्रैल 2005 के बाद सरकारी नियुक्तियों के लिए पुरानी पेंशन व्यवस्था को बंद कर दिया था। इसकी जगह पर उन्होंने नई पेंशन योजना लागू की थी। उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार थी। केंद्र सरकार ने नई पेंशन योजना लागू की थी लेकिन इसे राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं किया था। इसके बावजूद धीरे-धीरे अधिकतर राज्यों ने अपना लिया। कहा जाता है कि सरकारी कर्मचारी पेंशन योजना को समझ नहीं पाए थे और उन्हें ऐसा लगा था कि यह योजना रिटायरमेंट के बाद उन्हें पुरानी पेंशन योजना से ज्यादा लाभ देगी। पिछले कुछ सालों से कर्मचारियों ने नई पेंशन योजना का विरोध करना शुरू कर दिया था।
सीएम गहलोत ने लागू की पुरानी पेंशन स्कीम
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थानवासियों को बड़ा तोहफा दिया है। सीएम गहलोत विधानसभा में साल 2022-23 का बजट पेश किया। इसी बीच उन्होंने अपने बजट में घोषणा की कि प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू होगी। 1 जनवरी 2004 के बाद की नियुक्तियों को भी मिलेगा। प्रदेश में दस हजार नए होमगार्ड की भर्ती होगी। मानदेय कर्मियों के मानदेय में 1 अप्रैल 2022 से 20 प्रतिशत वृद्धि की घोषणा की गई है।
वहीं पुरानी पेंशन योजना लागू होने के बाद रिटायर्ड होने पर अब कर्मचारियों को पूरी पेंशन मिलेगी। अंशदायी पेंशन योजना खत्म होगी और 2004 से पहले वाली पुरानी पेंशन प्रणाली फिर से बहाल होगी। इसमें वेतन की आधी पेंशन मिलेगी। नए पेंशन सिस्टम में कर्मचारी को खुद पैसा कटवाना होता था।