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कोविड की तीसरी लहर में बच्चों के खतरे की बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहींःअध्यक्ष, आईपीएचए

लखनऊ,नवसत्ताः कविड-19 महामारी एक महत्वपूर्ण और वैश्विक जन-स्वास्थ्य संकट के रूप में सामने आई है। इसके बीच ‘सूचना’ की एक छिपी हुई महामारी रही, जो कोविड-19 को पहले के प्रकोपों के सामने ‘डिजिटल इन्फोडेमिक’ के रूप में खड़ा करती है। गलत सूचना, दुष्प्रचार, भ्रम फैलाने और इंफोडेमिक पैनडेमिक (बहुत सारी गलत व सही जानकारियों की महामारी) तथा कैसे कोविड-19 महामारी के दौरान इंफोडेमिक ने मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया, हील हेल्थ ने हील-थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के तहत इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। यह आयोजन हील फाउंडेशन, इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन, डीपीयु और माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ जनर्लिज्म एंड कम्युनिकेशन (एमसीएनयुजेसी) की नॉलेज पार्टनरशिप में किया गया।
इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन-हील- थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के दौरान गलत सूचनाओं, दुष्प्रचार और भ्रम फैलाने पर बोलते हुए, नई दिल्ली स्थित एम्स के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और आईपीएचए के अध्यक्ष, डॉ. संजय कुमार ने कहा, “गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार का संयोजन जिसे इन्फोडेमिक कहा जाता है, कोविड-19 महामारी के फैलने के बाद से हो रहा है। गलत सूचना का हालिया उदाहरण यह है कि कोविड की तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित करेगी, यह पूरी तरह से गलत सूचना है, क्योंकि इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। हम देखते हैं कि लोग हाथ में दस्तानें पहन रहे हैं, यह समझते हुए कि यह उन्हें संक्रमण से बचाएगा, लेकिन यह इसमें सहायता नहीं करता बल्कि वायरस के प्रसार का कारण बन सकता है। जैसे कि जब लोग हाथों में दस्तानें पहनते हैं तो वे हाथ नहीं धोते और अन्य सतहों को छूते हैं, ऐसे में वायरस फैलने की संभावना बनी रहती है। लोगों को इंफोडेमिक से दूर रखने के लिए सामुदायिक शिक्षा की आवश्यकता है, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भूमिका महत्वपूर्ण है।”
कोविड-19 के दौरान इंफोडेमिक ने मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित किया पर इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन-हील- थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के दौरान विस्तार से बताते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्युरोसाइंसेस (निमहंस) के सेंटर फॉर साइको-सोशल सपोर्ट इन डिजास्टर मैनेजमेंट के अध्यक्ष, प्रोफेसर के.सेकर ने कहा, ” कोविड के भारत में आने के तुरंत बाद, 95 प्रतिशत लोगों की प्रतिक्रिया मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ दिखा रही थी और 5 प्रतिशत जिन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दी, उनके पास संचार का कोई स्त्रोत नहीं था। हालांकि, मानसिक बोझ धीरे-धीरे कम हुआ, फिर भी कोविड-19 कई लोगों के लिए जटिल बहुआयामी तनाव का स्त्रोत रहा है। कोविड-19 संकट के दौरान, स्वास्थ्य खतरों के विरूद्ध सामुहिक लड़ाई में विश्व भर के लोगों को भय और अनिश्चितता से दूर रखने और एकजुट करने के लिए संचार अपरिहार्य था। संकट के समय अपर्याप्त संचार गंभीर व्यक्तिगत और आर्थिक परिणाम ला सकता है। जहां तक मानसिक स्वास्थ्य के परिणामों का संबंध है, डर और अनिश्चितता कोविड-19 से जुड़ी हुई है। लॉकडाउन तथा सोशल डिस्टेंसिंग के कारण होने वाली उत्तेजना और संत्रास, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच को गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार ने गंभीर और व्यापक बना दिया।”

इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन-हील- थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के दौरान बोलते हुए, नई दिल्ली स्थित जेएनयु के सेंटर ऑफ सोशल मेडिसीन एंड कम्युनिटी हेल्थ के अध्यक्ष, डॉ. राजिब दास गुप्ता ने कहा, “कोविड-19 महामारी के संदर्भ में इंफोडेमिक का वर्णन जानकारी की अधिकता के रूप में किया गया था। लोगों को कुछ सटीक या विश्वसनीय स्त्रोतों से उचित मार्गदर्शन खोजने में मुश्किल होती है, जब उन्हें आवश्यकता होती है। दिलचस्प बात है कि विश्व आर्थिक मंच ने इनके बारे में डिजिटल वाइल्ड फायर (डिजिटल माध्यमों के द्वारा तेजी से फैलने वाली जंगल की आग की तरह) के रूप में पहले ही आगाह किया था। जनवरी के तीसरे सप्ताह में ही कोविड अफवाह की लहरें शुरू हो गईं और दूसरी अफवाह फरवरी के महीने में सामने आई। चारों ओर भ्रम की स्थिति है, और सभी प्रकार के मीडिया सूचनाओं को पंप कर रहे हैं, लेकिन सभी विश्वसनीय नहीं हैं। एक बहुत ही जटिल स्थिति बन गई है, क्योंकि बहुत सारी गतिविधियां चल रही हैं। खतरों के बारें में उचित सूचनाओं का अभाव है।”

इंफोडेमिक पैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन हील- थाय संवाद के 19 वें एपिसोड के दौरान गलत सूचनाओं, दुष्प्रचार और भ्रम फैलाने पर विस्तार से बोलते हुए, डॉ. अमिताव बेनर्जी, प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष, सामुदायिक चिकित्सा, डॉ. डी.वाय पाटिल मेडिकल कॉलेज, पुणे ने कहा, “गलत सूचनाएं भूल-चूक के कारण हो सकती है और दुष्प्रचार का कार्य कुछ दुर्भाग्यपूर्ण निहित स्वार्थों द्वारा हो सकता है। हमें इसके बारे में खुली बहस करने की जरूरत है। सरकारी अधिकारियों और वैज्ञानिकों द्वारा भूल-चूक पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। सार्वजनिकध्जन स्वास्थ्य पेशेवरों को सबसे निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक प्रति-नियुक्ति करने की आवश्यकता है। पारदर्शिता के लिए अच्छी वैज्ञानिक बहस जरूरी है।

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