Navsatta
Doctor's Day Specialखास खबर

डॉक्टर्स डे विशेष:जानिए अपने डॉक्टर के अनसुने किस्से,मिलिए एसजीपीजीआई के गैस्ट्रो सर्जन डॉक्टर अशोक कुमार से

गरिमा

मैंने मित्र से कहा सूई तागा लेकर आओ।मैंने आंतों को अंदर करके सूई तागे से उसका पेट सिल दिया।दो तीन दिन में ही वो कबूतर ठीक होकर उड़ने लायक हो गया था। डॉ अशोक कहते हैं,यह मेरे जीवन की पहली सर्जरी थी….

लखनऊ,नवसत्ता:हमारी इस विशेष सीरीज़ में जिनसे आपको मिलवाने जा रहे हैं उनके अनसुने किस्से कइयों की ज़िंदगी बदल सकती है।सोंचने का नज़रिया बदल सकता है और जीवन जीने की कला सिखा सकता है।यह हैं एसजीपीजीआई के गैस्ट्रो सर्जन डॉक्टर अशोक कुमार।हमने डॉक्टर अशोक कुमार से उनके इस पेशे में आने से लेकर और अब तक उनकी ज़िंदगी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से जानने चाहे तो उन्होंने बताया,मैं अत्यंत साधारण परिवार में जन्मा हूँ।चार भाइयों में सबसे छोटा होने के नाते सभी का लाडला था।पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी कि पिता अशिक्षित और माताजी की प्रांरम्भिक शिक्षा भर हुई थी।बाल मन में न जाने कब सर्जन बनने की भावना घर कर गई और ईश्वर की कृपा से यह मुकाम हासिल भी हुआ।मेडिकल की महँगी पढ़ाई और घर की आर्थिक स्थिति दोनो का तालमेल ऐसा नहीं था कि मैं डॉक्टर बनने के लिए सोंचू भी।यही वजह थी कि परिजन चाहते थे मैं कामर्स लेकर पढ़ाई करूँ और ग्रेजुएशन के बाद कहीं अकाउंटेंट वगैरह की नौकरी करके परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में सहयोगी बनूं।लेकिन भाग्य में डॉक्टर बनना लिखा था और मैं बना।उस समय सीपीएमटी परीक्षा के लिए कोचिंग का चलन शुरू हो गया था।मेरे परिवार की सामर्थ्य नहीं थी कि मुझे कोचिंग करवाएं।कहते हैं जहां चाह वहां राह।मैंने कोचिंग तो नहीं ज्वाइन की लेकिन जो मित्र कोचिंग पढ़ते थे उनके घर जाने लगा।उनकी किताबें और कोचिंग के नोट्स से उन्ही के घर पर पढ़ाई करता और उसी से अपने नोट्स बनाता रहता। आखिरकार सीपीएमटी प्रवेश परीक्षा पास कर ली और गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में दाखिला मिला। एमबीबीएस के बाद केजीएमसी में एमएस के लिए दाखिला मिला तो जैसे अरमानों को पर लग गए।केजीएमसी की पढ़ाई मेडिकल प्रोफेशन में कमांडो ट्रेनिंग कही जाती है। यहां से छात्र वैसे ही माना जाता है जैसे भट्टी से तप कर निकला खरा सोना। फिलहाल एसजीपीजीआई लखनऊ में गैस्ट्रो सर्जन एवं एडिशनल प्रोफेसर के तौर पर सेवा दे रहा हूँ।
कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं।यह कहावत डॉक्टर अशोक के उस किस्से से चरितार्थ होती है जिसे बताते हुए वह कहते हैं,मैं नवीं क्लास में था।एक सहपाठी के घर गया था।उनके घर में बहुत से कबूतर पले थे।उन्ही में से एक कबूतर को बिल्ली ने पंजा मार दिया था।बिल्ली के हमले से उसका पेट फट गया और आंतें बाहर आ गईं।मैंने मित्र से कहा सूई तागा लेकर आओ।मैंने आंतों को अंदर करके सूई तागे से उसका पेट सिल दिया।दो तीन दिन में ही वो कबूतर ठीक होकर उड़ने लायक हो गया था। डॉ अशोक कहते हैं,यह मेरे जीवन की पहली सर्जरी थी जिसने परिजनों की सोंच भी मेरे प्रति बदल दी और मैं खुद भी डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित हुआ।
डॉ अशोक ने अपने अनुभव और हमेशा कुछ नया करने के स्वभाव के चलते एसजीपीजीआई में लैप्रोस्कोपी से सर्जरी की शुरुआत की। साथ ही अन्य डॉक्टर्स एवं छात्रों को भी ट्रेनिंग दी।डॉक्टर अशोक कुमार की ही वजह से आज एसजीपीजीआईI लखनऊ में लैप्रोस्कोपी से कैंसर जैसे रोगों का भी आपरेशन होता है।
डॉक्टर अशोक कुमार का ज़िन्दगी को लेकर फलसफा भी अनोखा है।एक तो मेडिकल प्रोफेशन में आने वाले लोगों से उनका कहना है कि निरंतर प्रयास करें सफलता अवश्य मिलेगी।मेडिकल प्रवेश के लिए कोचिंग ही अंतिम विकल्प नहीं है।कहते हैं आज तो बिल्कुल नहीं जब गूगल जैसा हथियार है जहां हर सवाल के जवाब मौजूद हैं।
दूसरा ज़िन्दगी में आने वाले उतार चढ़ाव को लेकर न घबराने के सीख भी वह देते हैं।कहते हैं ज़िन्दगी में ईसीजी की तरह लाइनें ऊपर नीचे हैं तभी तो जीवन है वरना सीधी लाइन तो मौत का संकेत है।

संबंधित पोस्ट

यूपी के जूनियर हाईस्कूलों में 16 अगस्त से शुरू होंगे दाखिले

navsatta

सुल्तानपुर को जल्द मिलेगी जाम की समस्या से निजातः जिलाधिकारी जसजीत कौर

navsatta

टीका उत्सव के पहले दिन छह हजार केन्द्रों पर वैक्सीनेशन

navsatta

Leave a Comment