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निजी स्कूल संचालको की भी सुनो सरकार…

राय अभिषेक
 

रायबरेली, नवसत्ता : शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले स्कूल और मदरसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं| एक साल से लॉकडाउन के चलते बंद हुए स्कूल फिर न खुल सके| इन संस्थानों का दूसरा सत्र भी बिना शैक्षिक गतिविधि के चल रहा है| सभी शैक्षिक संस्थानों में सन्नाटा पसरा है, केवल आवश्यक ऑफीशियल कामकाज के लिए ही कर्मचारी परिसर में जाते हैं| सरकार ने ऑनलाइन क्लास तो शुरू कर दी थी लेकिन वह कितनी प्रभावी है, संस्थानों के संचालकों और शिक्षकों के क्या हालात हैं, यह जानने के लिए नवसत्ता ने जिले के शैक्षिक संस्थानों का रुख किया तो यहां हालात बद से बदतर नज़र आए|

जिले में निजी मान्यता प्राप्त लगभग 1500 शिक्षण संस्थान है| इनमें शहरी क्षेत्र के ही लगभग 200 संस्थानों की इमारतें वीरान हैं| शहरी क्षेत्र का ही आकलन करें तो औसत 500 बच्चे प्रति संस्थान के हिसाब से लगभग एक लाख बच्चे और प्रति अध्यापक 50 बच्चो की दर से लगभग दो हज़ार शिक्षक घर पर बैठ गए है| संस्थानों के सारे संसाधन और वाहन बंद पड़े हैं और बिना किसी उपयोग के ख़राब होने की कगार पर हैं| आमदनी है नहीं पर मासिक खर्चा वही है, चाहे स्टाफ की तनख्वाह हो या इमारत का रखरखाव| ऑनलाइन क्लासेज चल रही हैं लेकिन छात्रों और उनके अभिवावकों की इस प्रक्रिया में रूचि न के बराबर है जबकि इसी पर छात्रों का पठन पाठन निर्भर कर रहा है| चौकाने वाली स्थिति यह भी है कि ऑनलाइन शिक्षा के बावजूद लगभग 70 प्रतिशत बच्चों के अभिवावक मासिक फीस नहीं दे रहे हैं। उनका तर्क है कि अगर बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है तो फीस किस बात की?

बात अगर मदरसों मकतबों की करें तो जिले में आलिया स्तर (10वीं क्लास तक) के 35 से 40 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं, गैर मान्यता प्राप्त धारा 30(अ) के तहत 100 से 150 मदरसे और मकतब हैं जिनमे लगभग 20000 छात्र इस्लामी तालीम लेते हैं| जिले में 3 मदरसे ऐसे है जिनको सरकारी अनुदान प्राप्त है| मान्यता प्राप्त मदरसों में मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत 3 शिक्षक होते है जिनकी पिछले 4-5 सालों से तनख्वाह नहीं मिली है और कुछ दिन पहले 2016 का वेतनमान मिला है| लॉकडाउन के समय पिछले एक वर्ष से इन मदरसों का संचालन पूरी तरह से ठप्प पड़ा है और हिफ़्ज़ कुरान का पाठ्यक्रम पूरी तरह से बंद है|

एक निजी स्कूल के संचालक अनिमेष श्रीवास्तव ने बताया कि ये दूसरा सत्र चल रहा है और सभी स्कूल पूरी तरह से बंद हैं। इससे सबसे ज्यादा बच्चो के शिक्षण और बौद्धिक विकास पर असर पडा है| क्लासरूम की पढाई और ऑनलाइन पढाई में अंतर है, अनुशासन की कमी और घर पर रहने के तनाव से लगभग हर छोटा बड़ा बच्चा जूझ रहा है| फीस आ नहीं रही और टीचर्स को पेमेंट्स करनी है, हम अपने टीचर्स जोकि 10-15 साल से हमसे जुड़े है, उनको हम कैसे हटाएं? हम कैसे मैनेज कर रहे हम ही जानते है| आठवीं तक के स्कूल तो बंद होने की कगार पर खड़े हैं| हमारा इनफ्लो पूरी तरह से बंद है और हमें बिल, इएमआई, इएसआईसी, ईपीएफओ, तनख्वाह वगैरह सब वहन करना ही करना है| संसाधन बर्बाद होते जा रहे है वाहन पूरी तरह से ख़राब होते जा रहे है| कुल मिला कर आमद बंद है तो खर्चा कहाँ से होगा और अगर स्कूल नहीं खुले तो बच्चे कहाँ से आएंगे? आज किसी भी स्कूल की इमारत चाहे कितनी भी बुलंद हो पर है सब खस्ता हालत में ही|

मुहम्मद मुअव्विज़ जोकि इस समय 8 मदरसों की जिम्मेदारी निभा रहे है, का कहना है कि हर शैक्षिक संसथान चाहे वो किसी भी बोर्ड या स्तर के हो, इस लॉकडाउन में नुक्सान हुआ है| मदरसों में पढने वाले लगभग 90% बच्चे गरीब तबके के आते है जिनको ऑनलाइन क्लासेज मुहैय्या नहीं की जा सकती| इ-पाठशाला एक लिंक मदरसा बोर्ड के पाठ्यक्रम में ऑनलाइन क्लास के लिए जोड़ दिया गया परन्तु मदरसा बोर्ड के पाठ्यक्रम को शामिल नहीं किया गया| उस पाठ्यक्रम को हमने सिर्फ 10% बच्चो को पढाया लेकिन हमारे पाठ्यक्रम के न होने की वजह से हम उन्हें भी नहीं पढ़ा सकते| बच्चो के रोज़ के नियमो का अनुपालन न होने की वजह से उनके शैक्षिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास बहुत प्रभावित हुआ है| मदरसों में तालीम देने वाले शिक्षक वास्तव में भुखमरी की कगार पर हैं और सुनवाई कही नहीं है|

ग्रीन ग्लोब पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल ऋतु अग्निहोत्री बताती हैं,हमारा प्रयास है कि विषम परिस्थितियों में भी बच्चों को शिक्षा मिलती रहे।सतत शिक्षा मिलते रहने का एकमात्र उपाय ऑनलाइन शिक्षा है।वह कहती हैं दुर्भाग्य यह है कि आर्थिक रूप से टूट चुके अभिभावक इस खर्चीले साधन को वहन करने की स्थिति में नहीं हैं।दूसरा कारण यह भी है कि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराते ही उन्हें स्कूल की फीस देनी पड़ती है जो उनकी सामर्थ्य से बाहर है। ऐसे में निजी स्कूल संचालकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।स्कूलों के बिजली बिल,गाड़ियों की इएमआई और रखरखाव का खर्च पहले जैसा ही है। उधर अभिभावकों से फीस न मिल पाने के कारण स्कूलों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है।

 

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