Navsatta
खास खबरमुख्य समाचार

राममंदिर निर्माण का राजमाता सिंधिया ने रखा था भाजपा में प्रस्ताव

  • अधूरा कहा जाएगा राममंदिर आंदोलन जिनके बिना
    राजमाता के कहने पर आडवाणी ने शुरू की थी रामरथ यात्रा

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ, नवसत्ता : – अयोध्या में राममंदिर निर्माण आंदोलन में यदि राजमाता विजयराजे सिंधिया को शामिल न किया जाए तो पूरा आंदोलन अधूरा कहा जाएगा। उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद उन्होंने घोषणा की थी कि ‘‘अब वह बिना किसी अफसोस के मर सकती हैं, क्योंकि उन्होंने अपना सपना सच होते देखा है।’’ 1988 में जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यपरिषद की बैठक हुई अयोध्या में राममंदिर मंदिर निर्माण के लिए राजमाता विजयाराजे सिंधिया पहली बार प्रस्ताव लेकर आईं थीं। इसी प्रस्ताव के बाद राम मंदिर मुद्दा भाजपा के प्रमुख एजेंडे में शामिल हो गया। राजमाता विजयराजे सिंधिया भाजपा की संस्थापक सदस्य थीं और उनके प्रस्ताव के बाद ही रथ यात्रा का आयोजन किया गया था।

छह दिसंबर 1992 की कारसेवा के दौरान भी अयोध्या में राजमाता विजयराजे सिंध्यिा ने अपनी अहम भूमिका निभाया। अयोध्या के रामकथा कुंज के मंच से राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने भी कारसेवकों को संबोधित किया था। उनको बाबरी विध्वंस मामले का आरोपी बनाया गया था। सिंधिया राजघराने की गिनती देश के समृद्ध और शक्तिशाली राजपरिवारों में होती थी. लेकिन अपने ममतामयी स्नेह से वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय रहीं। राममंदिर आंदोलन के दौरान वह अकेली महिला नेत्री हुआ करती थी। कहा जाता है कि उमाभारती और ऋतम्भरा को राजनीति में लाने का श्रेय राजमाता विजय राजे सिन्धिया को ही जाता है। कांग्रेस की सरकारों में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ उनके मतभेद हुआ करते थें। जिस कारण वह जनसंघ में शामिल हो गयी। इसके बाद धीरे धीरे राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ विहिप और दुर्गावाहिनी आदि संगठनों से जुड़ती चली गयी। अयोध्या आंदोलन के दौरान उन्हे कई बार गिरफ्तार किया गया। कारसेवा के लिए अयोध्या आते समय उन्हे झांसी के पास गिरफ्तार कर माता टीला गेस्ट हाउस में रखा गया था।

6 अप्रैल 1980 को जब भारतीय जनता पार्टी की मुम्बई में स्थापना हुई तो संस्थापक सदस्यों में राजमाता विजयराजे सिंधिया का नाम प्रमुख रूप से शामिल था। जनता पार्टी टूटने के बाद जब पूर्ववर्ती जनसंघ के नेताओं को आर्थिक दिक्कतें पैदा हुई तो राजमाता सिंधिया ने स्थापना में पूरी आर्थिक मदद की। राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने भाजपा की स्थापना में मदद की थी और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था। तब अध्यक्ष के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी को चुना गया और लालकृष्ण आडवाणी, सिकंदर बख्त और सूरज भान को महासचिव बनाया गया।

12 अक्टूबर 1919 को राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म सागर के राणा परिवार में हुआ था। विजयाराजे सिंधिया के पिता महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन जिला के डिप्टी कलेक्टर थे। उनकी माता विंदेश्वरी देवी थीं। विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम लेखा दिव्येश्वरी था। 21 फरवरी 1941में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से विवाह हुआ। पति की मृत्यु के बाद वह राजनीति में सक्रिय हुई और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना संसदीय क्षेत्र से सांसद रहीं। 25 जनवरी 2001 में उन्होंने अंतिम सांस लीं।

भारतीय जन संघ तथा भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता व संसद के दोनों सदनों की सदस्य रहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी का सार्वजनिक जीवन जितना प्रभावशाली था, व्यक्तिगत जीवन में उन्हें उतनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
विजयाराजे सिंधिया और एक उनके एक मात्र पुत्र और कांग्रेस नेता रहे माधव राव सिंधिया के बीच संबंध बेहद खराब थे। निधन के बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया की दो वसीयतें सामने आई थीं। एक 1985 और दूसरी 1999 की। वसीयत विवाद को लेकर कोर्ट में चला गया।

संबंधित पोस्ट

नीट में धोखाधड़ी का आरोपी है केजीएमयू का छात्र

navsatta

घोटाले पर जलशक्ति विभाग के प्रमुख सचिव अनुराग श्रीवास्तव समेत तीन को लोकायुक्त की नोटिस

navsatta

एनएसई की पूर्व सीईओ चित्रा रामकृष्ण के घर पर आयकर विभाग की छापेमारी

navsatta

Leave a Comment