Navsatta
आस्थाखास खबरदेश

चैत्र नवमी परंपरा : देवी मंदिर में चलती हैं जमकर लाठियां

मथुरा,नवसत्ताः ब्रज में हरेक मंदिर की अपनी अलग एक महिमा है। वैसे बरसाना की लट्ठ व लड्डुओं की होली चिर परिचित अंदाज में मनाई जाती है लेकिन चैत्र के नवरात्र पर्व पर नरी सेमरी देवी मंदिर अपनी अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्धि हासिल की है। दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर मथुरा से करीब 30 किमी दूर स्थित छाता तहसील के नरी सेमरी गांव के मंदिर में जमकर लाठियां चलती हैं। यहां देवी के दर्शन करने के लिए चैत्र शुक्ल नवमी के दिन सैकड़ों श्रद्धालु तलवार, भाले बल्लम लाठी आदि हथियार लेकर आते हैं और जबरन दर्शन कर प्रसाद लूटने का प्रयास करते हैं। बताया जाता है कि एक बार सूर्यवंशी ठाकुर मंदिर पर हमला कर देवी की प्रतिमा उठा ले गए। उनसे प्रतिमा वापस लाने में चंद्रवंशी होने के कारण नरी साखी रहेड़ा और अरवाई के ठाकुरों ने सेमरी नगला देवीसिंह नगला बिरजी और दद्दीगढ़ी के ठाकुरों की खासी मदद की।

बस इसी बात पर वे लोग भी देवी की सेवा-पूजा पर अपना हक जताने लगे। चैत्र शुक्ल नवमी को होने वाली मुख्य पूजा में शामिल होने का उन्होंने कई बार प्रयास किया और उनका यही प्रयास लट्ठ पूजा परम्परा बन गया। चैत्र नवरात्र के नौ दिवस तक यहां बड़ा मेला लगा है जो इस वर्ष भी जारी है तथा इस आयोजन को देखने के लिए देश-विदेश के कई पर्यटक व माता के भक्तों का हुजूम उमड़ता रहा है।

मंदिर के महंत द्वारा बताया कि आगरा का ध्यानू भगत नगरकोट स्थित देवी का बहुत बड़ा भक्त था। वह हर साल देवी के दर्शन करने के लिए वहां जाता था। देवी ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर कोई वरदान मांगने को कहा जिस पर भक्त ने देवी को ही मांग लिया। देवी ने भी एक शर्त रख दी कि वह रास्ते भर पीछे मुड़कर नहीं देखेगा, अगर ऐसा किया तो देवी अंर्तध्यान हो जाएगी।

शर्त मानकर ध्यानू आगे-आगे और देवी पीछे-पीछे चलने लगीं। सेमरी गांव की सीमा में प्रवेश करते ही ध्यानू ने अपनी मन में उमड़ रहे शक को दूर करने के लिए एक बार जो पीछे मुड़कर देखा तो देवी गायब हो गईं और उसे मायूस होकर खाली हाथ घर लौटना पड़ा।
इस घटना के कुछ समय पश्चात सेमरी गांव के बाबा अजीत सिंह उर्फ अजीता को स्वप्न में भान हुआ कि मां माली की एक प्रतिमा गांव के बाहर अमुक स्थान पर दबी हैं। उन्होंने उस स्थान की खुदाई कर देवी की उक्त प्रतिमा निकाली और धूमधाम से उसकी स्थापना करा दी। जब ध्यानू भगत को यह समाचार मिला तो वह प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन देवी की पूजा अर्चना करने के लिए वहां पहुंचने लगा।

लोगों ने देखा कि जब वह मां की आरती करता है तो बड़े-बड़े थालों में रखे दीपकों की लौ आरपार हो जाने के बाद भी उन पर बिछाया गया कपड़ा नहीं जलता। धीरे-धीरे इस चमत्कार का समाचार लोगों में फैलता गया और श्रद्धालुओं की संख्या में प्रतिवर्ष सैकड़ा का इजाफा होता गया। चैत्र शुक्ल तृतीया की आरती का चमत्कार आज भी कायम है।

संबंधित पोस्ट

नेपाल विमान हादसाः यूपी के गाजीपुर के रहने वाले है चारों युवक, पांचवें की पुष्टि बाकी

navsatta

यूनियन बजट 2023 : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त मंत्रालय पहुंची, आज 11 बजे संसद में पेश करेंगी बजट

navsatta

अब पर्यटक और वन्य जीव प्रेमी ‘डॉल्फिन सफारी’ का ले सकेंगे आनंद…

navsatta

Leave a Comment