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सौरव-बीसीसीआई प्रकरण के बाद बंगाली क्षेत्रीयता फिर उभरी, भाजपा कठिन स्थिति में

नई दिल्ली, नवसत्ताः  क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष पद से सौरव गांगुली के हटाये जाने के प्रकरण के बाद बंगाली क्षेत्रीय एक बार फिर से उभरकर सामने आयी है और मौजूदा मामले में तृणमूल कांगेस (टीएमसी) सबसे अधिक फायदे में नजर आ रही है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में मजबूत स्थिति हासिल कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस मामले में कुछ कठिन स्थिति में नजर आ रही है। वर्ष 1983 की विश्व कप विजेता टीम के सदस्य रोजर बिन्नी को गांगुली की जगह बीसीसीआई का 36वां अध्यक्ष चुना गया है।

हालांकि, बीसीसीआई की वार्षिक आम सभा (एजीएम) आईसीसी के चुनाव पर बिना किसी चर्चा के संपन्न हो गई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह को लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए बीसीसीआई सचिव के रूप में फिर से चुना गया। हालांकि, गांगुली का बाहर निकलना एक नियमित घटनाक्रम के रूप में अछूता नहीं रहा है और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने बीसीसीआई अध्यक्ष पद से उनके ‘‘हटाये जाने’’ पर आश्चर्य व्यक्त किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप की मांग की, ताकि उन्हें आईसीसी के अध्यक्ष पद लिए चुनाव लड़ने की अनुमति दी जा सके।

बनर्जी ने गांगुली को न केवल बंगाल, बल्कि पूरे देश का गौरव बताया और कहा कि इस मामले को राजनीतिक या बदले की भावना के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। तृणमूल नेता एवं सांसद सौगत राय ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह टीएमसी के लिए जीत की स्थिति है। अगर गांगुली को आईसीसी चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाती है, तो हम कह सकते हैं कि टीएमसी की मांग के कारण भाजपा को आखिरकार इसे स्वीकार करना पड़ा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर उन्हें अनुमति नहीं दी गई तो यह साबित हो जाएगा कि भाजपा बंगाल-विरोधी है और हमारे प्रतिष्ठित लोगों में से एक (गांगुली) का अपमान कर बंगाली गौरव को ठेस पहुंचाएगी।’’ तृणमूल ने बांग्ला निजेर मेयेकेई चाय (बंगाल अपनी बेटी चाहता है) का चुनावी नारा गढ़कर बंगाली क्षेत्रीयता को हवा दी थी और इसका इस्तेमाल 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए किया था। तृणमूल ने पहले गांगुली के बीसीसीआई से बाहर होने को ‘‘राजनीतिक प्रतिशोध’’ का परिणाम करार दिया था और भाजपा पर पूर्व भारतीय कप्तान को ‘‘अपमानित करने की कोशिश’’ करने का आरोप लगाया था, क्योंकि भगवा पार्टी गांगुली को अपने बैनर तले लाने में विफल रही थी।

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