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कान्हा उपवन गौशाला नस्ल सुधार से होगी आत्मनिर्भर

गौशाला में आठ उन्नत नस्ल के सांड रख गौवंश के नस्ल सुधार पर चल रहा काम

पहली बार किसी गौशाला में इस तरह का शुरू हुआ है अनूठा प्रयोग

झांसी,नवसत्ता: निराश्रित गौवंशों के संरक्षण के लिए झांसी के राजगढ़ में बने कान्हा उपवन गौशाला ने नस्ल सुधार को लेकर अनूठी योजना पर काम शुरू किया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा के बाद झांसी नगर निगम के अफसरों ने गौशाला में नस्ल सुधार पर प्रयोग शुरू किया है. इससे दुधारू नस्ल के गौवंश से एक ओर जहां गौशाला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकेंगे वहीं, दूसरी ओर दुग्ध उत्पादकता बढ़ने पर गौवंशों को निराश्रित छोड़ देने की प्रथा में भी कमी आएगी.

निराश्रित गौवंशों के संरक्षण के लिए बना कान्हा उपवन

झांसी के राजगढ़ में कान्हा उपवन गौशाला का संचालन जनवरी 2020 में शुरू हुआ था. गौशाला में वर्तमान समय में लगभग 650 से अधिक निराश्रित गौवंश संरक्षित हैं. गौशाला का प्रबंधन झांसी नगर निगम करता है. गौशाला में अधिकांश देशी नस्ल की गाय हैं, जो आमतौर पर 1.5 लीटर से 3 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती हैं.

कम दुग्ध उत्पादकता और इनके चारे-भूसे पर अधिक खर्च होने के कारण लोग इन्हें निराश्रित छोड़ देते हैं. इन गौवंशों की नस्ल सुधार और गौशाला की आर्थिक आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से गौशाला में अनुदान के आधार पर उत्कृष्ट नस्ल के 8 सांड मंगाए गए हैं. इनमें से तीन सांड साहिवाल, दो सांड गिर और तीन सांड हरियाणा नस्ल के हैं. इस प्रयोग पर कुछ समय पूर्व काम शुरू हुआ है और उम्मीद जताई जा रही है कि दो वर्ष में परिणाम सामने आने लगेंगे.

प्रयोग सफल होने के बाद आत्मनिर्भर हो सकेंगे गौशाला

नगर निगम झांसी के नगर पशु कल्याण अधिकारी डॉ. राघवेंद्र सिंह बताते हैं कि पशुपालकों के पास वर्तमान में जो गाय की नस्लें हैं, वे बेहद कम दूध देती हैं. इस कारण लोग गौवंश को निराश्रित छोड़ देते हैं, जिसे इस क्षेत्र में अन्ना प्रथा के नाम से जाना जाता है. ये सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर आकर समस्या का कारण बनते हैं. सरकार ने इन निराश्रित पशुओं को संरक्षण देने के उद्देश्य से कान्हा उपवन जैसे स्थल बनाये हैं.

इन संरक्षित पशुओं के खाद्यान्न पर बजट खर्च होता है. इसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यमंत्री की ओर से लगातार प्रेरित किया जा रहा. इसी प्रेरणा के परिप्रेक्ष्य में यहां तीन भारतीय उच्च नस्ल के 8 सांड मंगाए हैं. इनसे जो बछिया पैदा होंगी, उनकी उत्पादक क्षमता कम से कम 8 से 10 लीटर की होगी. आम लोगों को यह नीलामी प्रक्रिया के तहत दी जाएंगी, जिससे गौशाला की एक सुनिश्चित आय होगी.

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