Navsatta
ऑफ बीटखास खबरचर्चा में

छुट्टा पशुओं का एकमात्र समाधान है जीवामृत आधारित फैमिली फार्मिंग: श्याम बिहारी

फैमिली फार्मिंग अपनाओ, छुट्टा पशुओं से निजात पाओ

संजय श्रीवास्तव

लखनऊ,नवसत्ता: आखिर खेती-किसानी को लेकर सार्थक चर्चा क्यों नहीं, जब फैमिली प्लानिंग अंजाम तक पहुंच सकती है तो फिर फैमिली फार्मिंग को आगे बढ़ाने में क्या दिक्कत. ‘एक गाय एक किसान’ के लक्ष्य को साधते हुए अगर जीवामृत आधारित जैविक या यूं कहें कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाए तो गोबर और गोमूत्र के वृहद संकलन के लिए गांवों में समस्या बने छुट्टा पशुओं को भी लोग बाड़े में रखने लगेंगे, इससे ना सिर्फ उनकी समस्या खत्म हो जाएगी, बल्कि लोगों के बीच उनकी उपयोगिता भी बढ़ जाएगी. गांवों में फार्मर प्रोडक्टिव कंपनियां बनेंगी और किसान उपभोक्ता से सीधे जुड़ेंगे.

इस खेती से ना सिर्फ लोगों को कम लागत में शुद्ध और स्वास्थ्यप्रद अनाज सब्जी फल मिलेगा बल्कि रोजगार के नए-नए अवसर भी बढ़ेंगे और वो भी बिना किसी सरकारी प्रयास के,

नवसत्ता के साथ फैमिली फार्मिंग पर विस्तार से चर्चा की, किसान समृद्धि विद्यापीठ अम्बावाय झांसी के फाउंडर श्याम बिहारी गुप्ता और मुरादाबाद की आईएफटीएम विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर और जीवामृत पर शोध कर रहे डॉक्टर हिमांशु त्रिवेदी ने……

बीते 27 सालों से खेतों की मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ाने और कम पानी वाले क्षेत्रों में बहुफसली खेती को प्रमोट करने की दिशा में काम कर रहे श्याम बिहारी गुप्ता बताते हैं कि वो खुद बुंदेलखंड के झांसी से आते हैं. पूरे बुंदेलखंड में पानी ही सबसे बड़ी समस्या है पीने के लिए भी और खेती के लिए भी. कुओं और पंपिंग सेटों के जरिए ही पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र में बहुधा खेती के प्रयास किए जाए हैं, पथरीली जमीन और सख्त मिट्टी की वजह से कम क्षेत्रों में ही खेती की जाती है.
किसानों की मंशा होती है कि किसी तरह एक पानी से होने वाली फसलों को ही उगाया जाए, इसीलिए बुंदेलखंड में कठिया गेहूं बहुतायत में उत्पादित होता है और उसका दलिया देश विदेश में बड़े चाव से खाया जाता है, बाकी दलहन की भी खेती जमकर की जाती है हां सरसों का उत्पादन कम होता है, कुछ क्षेत्रों में अच्छे किस्म के चावल की भी खेती होती है जिसमें बांदा कर्वी के बीच होने वाला परसन चावल काफी प्रसिद्ध है.
श्याम बिहारी गुप्ता ने बुंदेलखंड के भौगोलिक और प्राकृतिक संसाधनों पर वृहद शोध करने के बाद पाया कि यहां कम पानी और बिना केमिकल पेस्टीसाइड्स के इस्तेमाल से होने वाली खेती को अगर बढ़ावा दिया जाए तो कम कीमत की अच्छी और शुद्ध सेहतमंद पैदावार की जा सकती है. बस यहीं से इन्होंने एक किसान एक गाय का फार्मूला निकाला जिससे ना सिर्फ किसान को दूध मिल सके बल्कि गाय के गोबर और गोमूत्र में बेसन और गुड़ मिलाकर जैविक खाद भी तैयार की जा सके.
डॉक्टर हिमांशु बताते हैं कि इस जैविक खाद को बनाने के लिए भी सभी चीजें बिलकुल शुद्ध ही होती हैं और इसको बनाने में भी मात्र 3 दिन का समय लगता है. मतलब ये कि जो गोबर की खाद महीनों सड़ाने के बाद मिल पाती है उससे भी बड़े कम मात्र 3 दिन में ही जीवामृत खाद बनकर तैयार हो जाती है और चूंकि यह लिक्विड फार्म में होती हैं लिहाजा इसे खेतों में डालने से पानी की अतिरिक्त जरूरत भी नहीं पड़ती. जीवामृत आधारित खेती में पानी का सिर्फ 25 प्रतिशत ही खेतों को चाहिए होता है.
वजह गोबर गोमूत्र बेसन और गुड़ के साथ पानी की मात्रा भी पर्याप्त तौर पर मिली होती है. श्यामबिहारी और हिमांशु की मानें तो जीवामृत के जरिए होने वाली खेती को कीट पतंगों से बचाने के भी बेहतर शोध किए गए हैं और कारगर उपायों को अमल में लाया जा रहा है. ये सभी फार्मेशन पूरी तरह से देशी और जैविकता पर आधारित हैं जिससे किसान को अपने खेत में केमिकल या पेस्टीसाइड्स को नहीं छिड़कना पड़ता.
इस चर्चा के दौरान श्याम बिहारी और डॉक्टर हिमांशु ने हमारे कुछ तीके सवालों के जवाब भी बखूबी दिए, मसलन कि यदि जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा तो सरकार की तरफ से किसानों को फ्री में दी जा रही डीएपी और यूरिया का क्या होगा, क्या केमिकल और फर्टिलाइजर कंपनियों को बंद कर देना चाहिए और यदि ऐसा होता है तो बेरोजगारी भी बढ़ेगी फिर उससे कैसे निपटेंगे, और गावों में पानी की समस्या के साथ ही मौजूदा समय में छुट्टा जानवरों का बड़ा मुद्दा है जिसकी वजह से मैदानी इलाकों में दलहन की फसलें लगभग शून्य हो गई हैं.
इन सवालों के जवाब में श्याम बिहार और डॉक्टर हिमांशु ने बताया कि उन्होंने जिस प्रकार जीवामृत विधा की खेती को बताया है उसमें पानी की लागत बहुत ही कम है और पानी के लिए मौजूदा सरकार भी सार्थक पहल कर रही है सरकार की कई नदियों के पानी को तमाम नहरों से जोड़ने की दिशा में काम हो रहा है बुंदेलखंड में इस तरह का काम जोरों पर है, जिससे सिंचाई की समस्या का हल हो रहा है यही नहीं मिशन जल जीवन के जरिए लोगों को पीने का स्वच्छ पानी भी पाइप के जरिए नल से जल देने का काम भी युद्धस्तर पर चल रहा है.
उन्होंने आगे बताया कि उनकी जो फार्मर प्रोडक्टिव कंपनी के जरिेए किसानों के साथ ही उपभोक्ताओं को सीधे जोड़ने की जो कवायद की जा रही है, उससे किसान जैविक खेती से जो फसले उगाएगा उसे उपभोक्ता सीधे उससे ले सकेंगे. यही नहीं किसान खेत के आसपास ही छोटी छोटी औद्योगिक इकाइयां लगाकर आटा मसाला दालें तेल तैयार करेगा और शुद्ध रूप में वो उपभोक्ता को मिलेगा.
इस तरह से किसान खेत का चाहे मालिक हो या बटाईंदार वो कहीं ना कहीं तमाम प्रोडक्ट्स का उत्पादक भी होगा और प्रमोटर भी साथ ही जब गावों में ही उत्पादन और प्रोडक्शन होने लगेगा तो लोगों को रोजगार के लिए गांव से निकलकर शहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी मतलब गांव में ही रोजगार उपलब्ध होने लगेगा. बिना किसी सरकारी प्रयास के बेरोजगारी को कम करने की दिशा में ये कदम ना सिर्फ सराहनीय है बल्कि तरक्की के रास्ते भी खोलता है.
मौजूदा समय में सरकार के सामने मुंहबाए खड़ी छुट्टा पशुओं की समस्या के भी परमानेंट समाधान की दिशा में भी फैमिली फार्मिग का कोई तोड़ नहीं. श्याम बिहारी बताते हैं कि जीवामृत के उत्पादन के लिए गोबर और गोमूत्र की आवश्यकता होगी जो सिर्फ एक गाय से ही नहीं पूरी होगी, लिहाजा जब गोबर और गोमूत्र की उपयोगिता जीवामृत के जरिए बढ़ेगी तो लोग अपने छुट्टा जानवरों को अपने बाड़े में ही बांधना शुरू करेंगे, उन्हें चारा भी भरपूर खिलाएंगे और सेवा भी करेंगे वजह मेवा भी तो लेना है मतलब उनका जितना गोबर और गोमूत्र इकट्ठा होगा. उससे जीवामृत का उत्पादन बढ़ेगा और वो खेतों में जाकर मिट्टी के उपजाऊपन को बढाएगा.
श्याम बिहारी बताते हैं कि प्रदेश में मौजूदा मसय में 1 करोड़ 90 लाख गोवंश हैं और 2 करोड़ 60 लाख किसान हैं जिनके खातों में सरकार साल के 6 हजार रूपए किसान सम्मान निधि के रूप में जमा कराती है. अब अगर गोबर और गोमूत्र की उपयोगिता समझ में आ गई तो सरकारी आंकड़ो के मुताबिक ही एक गाय एक किसान स्कीम को लेकर 70 लाख गोवंश की जरूरत पड़ेगी. अब अगर इसी फार्मूले पर चला जाए तो हो गई न छुट्टा जानवरों की समस्या से परमानेंट निजात. श्याम बिहारी बताते हैं कि जिस गति से देश में खेतों के अंदर केमिकल और पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल हो रहा है. उससे मिट्टी का उपजाऊपन खत्म हो रहा है .
यही वजह है कि एक फसल के बाद दूसरी फसल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए डीएपी और यूरिया की मात्रा भी बढ़ती जा रही है. अर्थात खेतो की मिट्टियां मृतप्राय हो रही हैं और अगर प्राकृतिक तरीके से जीवामृत आधारित जैविक खेती को बढ़ावा नहीं दिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब खेत तो होंगे पर मिट्टी मर चुकी होगी, फिर हम चाहे जितना खाद पानी डालें. उसकी कोख से कुछ उपजेगा नहीं.

संबंधित पोस्ट

देसी निवेशकों को साधने कल मुंबई पहुचेंगे सीएम योगी

navsatta

अतीक-अशरफ हत्या मामले की जांच करेंगे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति, तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन

navsatta

बीस हजार करोड़ की सौगात, पीएम मोदी बोले-आने वाले समय में जम्मू कश्मीर विकास की नई गाथा लिखेगा

navsatta

Leave a Comment