प्रयागराज,नवसत्ता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूरे प्रदेश के विद्यालयों में पढऩे वाले बच्चों की संख्या का रिकॉर्ड मांगा है. कोर्ट ने विद्यालयों की खस्ता हालत और शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भी सरकार से जानकारी तलब की है. यह आदेश चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने नंदलाल की जनहित याचिका पर दिया है. याचिका पर अधिवक्ता महेंद्र कुमार शुक्ल ने बहस की.
याची का कहना है कि खराब शैक्षणिक स्तर और विद्यालयों की खस्ता हालत के कारण अभिभावक अपने बच्चों को परिषदीय विद्यालयों में नहीं भेज रहे हैं. जिसके कारण छात्र संख्या शून्य हो गई है. कोर्ट ने इस स्थिति पर नाराजगी जताते हुए प्रदेश सरकार से पूछा है कि पूरे प्रदेश में कितने ऐसे विद्यालय हैं जिनकी छात्र संख्या शून्य है या एक छात्र भी नहीं है.
याचिका में प्रयागराज के दारागंजस्थिति उच्च प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालय सहित कई विद्यालयों का मामला उठाया गया है. याची का कहना है कि एक पूर्व माध्यमिक विद्यालय में वर्तमान में एक भी छात्र नहीं है और अध्यापक कार्यरत हैं. इसी प्रकार से अन्य परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा का स्तर काफी खराब है. याचिका में कहा गया है कि खंड शिक्षा अधिकारी नगर क्षेत्र की जांच में यह तथ्य सामने आया है कि कई अध्यापकों को कक्षा चार स्तर की भी अंग्रेजी नहीं आती है. हिंदी भी शुद्ध नहीं लिख पाते है. तो एक विद्यालय की साइंस की अध्यापिका को बाक्साइट का फॉर्मूला तक नहीं पता है.
कई शिक्षकों ने कोई भी शैक्षणिक कार्य ही नहीं किया है. इसी प्रकार से नगर के एक विद्यालय के अध्यापक पर कंपोजिक ग्रांट के 50 हजार रुपये के गबन का आरोप है. एक अन्य अध्यापिका पर भी 25 हजार रुपये के गबन का आरोप है. पुस्तकें क्रय करने के लिए जारी धनराशि के दुरुपयोग का भी आरोप है. जबकि कई विद्यालय ऐसे सामने आए हैं जिनमें मिड डे मील नहीं बनता या बनता भी है तो बेहद घटिया क्वालिटी का बनता है.