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जल जीवन मिशन घोटालाःप्रमुख सचिव अनुराग श्रीवास्तव के खिलाफ लोकायुक्त से शिकायत

राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन नहीं है पंजीकृत सोसायटी
जल निगम की स्वीकृत दरों से 30-40 प्रतिशत ज्यादा हैं एसडब्ल्यूएसएम की दरें
बिना एस्टीमेट के ही बांट दिए गए टेंडर
टीपीआई और पेयजल कार्यों के लिए ऊपर से ही कंपनियों का चयन

संजय श्रीवास्तव

लखनऊ,नवसत्ताः राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन में व्याप्त भ्रष्टाचार और घोटालों के हो रहे खुलासे के बीच विभाग के प्रमुख सचिव अनुराग श्रीवास्तव के खिलाफ जांच के लिए लोकायुक्त से शिकायत की गई है। सोसायटी पंजीकरण नहीं कराए जाने और बिना एस्टीमेट के ही टेंडर वेंडर तय किए जाने और अन्य राज्यों की तुलना में अधिक दरों पर टीपीआई का कार्य करने से मिशन को हजारों करोड़ की चपत लगी है। गाइड लाइन और शासनादेशों को दर किनार कर मनमाने ढंग से कंपनियों को लाभ पहुंचाकर मिशन के अधिकारियों ने की मोटी कमाई। इन्हीं विषयों को साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत कर लोकायुक्त से जांच की गुहार लगाई गई है।

शिकायतकर्ता ने लिखित रूप से शपथ देकर साक्ष्यों के साथ जो प्रपत्र सौंपे हैं उनमें राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन को एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत नहीं कराये जाने के आरटीआई से मांगे गए जवाबों को संलग्न किया है। जिसमें साफ तौर पर राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन को रजिस्ट्रार चिट्स फंड एंड सोसायटीज ने अपने अभिलेखों में एक सोसायटी के रूप में दर्ज नहीं पाये जाने का लिखित जवाब दिया है।
कन्नौज अमरोहा और फतेहपुर के अधिषाशी अभियंताओं के उन पत्रों का हवाला देकर ये बताया गया है कि किस तरह से जल निगम की स्वीकृत दरों से 30 से 40 प्रतिशत की ज्यादा दरों पर कंपनियां उनसे एस्टीमेट बनाने का दबाव बना रही हैं। इनकी चिट्ठियों से पता चलता है कि अधिषाशी अभियंताओं की अनुबंध करने की सीमा महज एक करोड़ तक की ही है जबकि योजनाओं का एस्टीमेट 2 करोड़ से ऊपर का बन रहा है ऐसे में वो अनुबंध कैसे करें, इंजीनियर आकाश जैन ने तो अपने पत्र में यहां तक लिखा है कि जो काम जिला पेयजल समितियों को करने थे मसलन ठेकेदारों कंपनियों का चयन वो सब ऊपर से ही राज्य पेयजल मिशन ने ही तय करके भेज दिए तो फिर जिला समितियों को अनुबंध करने का क्या औचित्य। यही नहीं लागत पर 10 प्रतिशत और 5 प्रतिशत एससी एसटी गांव पंचायतों से वसूलने को लेकर भी स्पष्ट दिशा निर्देश मांगे गए हैं।

कुल मिलाकर जिस तरह से ठेकेदारों कंपनियों के चयन और कामों को बिना एस्टीमेट के ही दोगुने से ज्यादा की दरों पर बांटने से मिशन को हजारों करोड़ की चपत लगाई गई है। अब जाहिर सी बात है कि मिशन के आला अफसरों ने अगर जानबूझकर ठेकेदारों और कंपनियों को आउट ऑफ वे फायदा पहुंचाया हैं तो खुद भी मोटी कमाई की होगी। लोकायुक्त से उपरोक्त बिंदुओं पर जांचकर मिशन को क्षति पंहुचाने वाले दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई किए जाने की मांग की गई है।

 

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