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नृत्याचार्य लच्छू महाराज की जयंती पर दो दिवसीय नमन कार्यक्रम 31 से

रंगमंच पर वस्त्रों से ही पहचान लिये जाते हैं चरित्र

लखनऊ,नवसत्ता : पौराणिक गाथाओं के किसी भी किरदार को हम आमतौर पर उसके वेश मात्र से पहचान लेते हैं। फिल्म, टीवी फिल्म व धारावाहिकों के संग मंचीय प्रस्तुतियों मे ड्रेस डिजाइन करना अब केवल शौक नहीं, आय-व्यवसाय और शोहरत का जरिया भी बन रहा है। लेखक-रंगनिर्देशक ललित सिंह पोखरिया ने वेशभूषा प्रतिभागियों को डिजाइनिंग सिखाने के साथ डिजाइनिंग के विभिन्न अवयवों की जानकारी देते हुए ऐसी बहुत सी बातें पिछले तीन सप्ताहों में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ऑनलाइन निःशुल्क वेशभूषा कार्यशाला में बतायीं। अकादमी की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत पांच अगस्त से आयोजित इस कार्यशाला का 28 अगस्त सेनानियों के वेश में अकादमी गोमतीनगर परिसर स्थित वाल्मीकि रंगशाला के मंच पर प्रदर्शन करने वाले स्थानीय प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरण के साथ में समारोहपूर्वक ऑनलाइन समापन हो गया।

अकादमी अब अपने कथक केन्द्र के संस्थापक निदेशक नृत्याचार्य पं.लच्छू महाराज की जयंती के अवसर पर 31 अगस्त व पहली सितम्बर को वार्षिक नृत्य कार्यक्रम नमन का आयोजन करेगी। कार्यशाला संचालक लेखक-रंगकर्मी ललित का आभार व्यक्त करने के साथ सभी कार्यशाला प्रतिभागियों को बधाई देते हुए अकादमी सचित तरुण राज ने एक सदी पहले अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध छेड़े चौरी-चौरा एक्शन के संग आजादी की लड़ाई के क्रान्तिवीरों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि कला के किसी भी माध्यम से जुड़ने के लिए अन्य कलाओं के अंगों से परिचित होना कलाकार को विधा विशेष मे पारंगत बनाने में सहायक सिद्ध होती है। कार्यशाला संयोजक अकादमी की नाट्य सर्वेक्षक शैलजाकांत ने बताया कि कंचन, कविता, सौरभ, आकांक्षा तिवारी, विनोद, महर्षि, प्रणव, गौरव, सौरभ, आकांक्षा तिवारी, नित्प्रिया, सचिन, अलका भटनागर, आरती आदि अनेक युवा व उमदराज प्रतिभागी कार्यशाला में शामिल हुए। समापन अवसर पर इन प्रतिभागियों ने स्वतंत्रता सेनानियों के आधार पर अपनी डिजाइन की ड्रेस पहनकर संवाद अदायगी भी पेश की। स्थानीय उपस्थित प्रतिभागी शशांक व युक्ति ने रंगशाला के मंच पर संवाद के साथ प्रदर्शन किया तो अन्य प्रतिभागियों की ऐसी भेजी गयी क्लिपिंग्स में भी क्रान्तिकारियों के दर्शन हुए।

प्रशिक्षक ललित सिंह ने ने पिछले दिनों में भाग लेने वालों को नाटक, नाटक का रचनात्मक दायित्व; अभिकल्पना की आवश्यकता; अभिकल्पना के तत्वों- रंग, रेखाओं, टैक्सचर, आकार और आकृतियों का भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण; रंगों के प्रकार, रंगों का मिश्रण, संयोजन व उनका मनोवैज्ञानिक प्रभाव; अभिकल्पना के आवश्यक गुण; अभिकल्पना के सिद्धान्त, उद्देश्य व आवश्यकता, नाटक व पात्र की व्याख्या, विशिष्ट नाटकों की वेषभूषा अभिकल्पना की संपूर्ण प्रक्रिया इत्यादि के बारे में प्रयोगात्मक ढंग और विस्तार से जानकारी दी।

इस अवसर पर प्रशिक्षक ने बताया कि रंगमंच, टीवी या फिल्म माध्यम में चलती किसी भी कथा में ध्वनि- प्रकाश व्यवस्था, दृश्यबंध या पृठभूमि का दृश्य, आभूषण और चरित्रों की वेषभूषा इत्यादि देश, काल व वातावरण के हिसाब से ऐसे रंग भरती हैं कि प्रस्तुति का प्रभाव दर्शकों पर बढ़ जाता है। अक्सर अनेक चरित्रों को तो हम वस्त्रों से ही पहचान लिये जाते हैं और कई बार कपड़े किरदार की विशेषताओं को सामने रखने में बहुत मददगार बनते हैं। उन्होंने बताया कि ग्रीक रंगमंच में लम्बे ढीले ट्यूनिक्स, लैगिंग, लम्बी आस्तीनों और बेल्ट इत्यादि के प्रयोग की चर्चा करते हुए बताया कि आभूषण, मुखौटे व मेक-अप वेशभूषा के पूरक अंग की तरह इस्तेमाल होते आ रहे हैं। ग्रीक रंगमंच में हरा रंग शोक का प्रतिनिधित्व करता है तो हमारे केरल के कथकलि नृत्य में यह रूपसज्जा में देवत्व का प्रतीक बनकर उभरता है।

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