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पानी के पैसों के प्यासे अफसरःभ्रष्टाचार और घोटालों का जरिया बनीं पानी की योजनाएं

भ्रष्ट नौकरशाही की भेंट चढ़ी स्वजल धारा योजना,1800 करोड़ पानी में डूबा
गांवों में आज भी नहीं मिल रहा स्वच्छ पानी

संजय श्रीवास्तव

लखनऊ,नवसत्ताः गांवों में हर घर नल हर घर जल पहुंचाने वाली जल जीवन मिशन कोई पहली योजना नहीं, इससे पहले की योजना स्वजल धारा कहां विलुप्त हो गई अब तो विभाग वाले भी ठीक से नहीं बता पाते। दरअसल गांवों में पानी मुहैया कराने वाली योजनाएं सिर्फ दोहन का जरिया बनकर ही रह गईं। लोगों को पीने का पानी भले ही ना मिला पर इसके नाम पर मंत्री अफसर करोंड़ो पी गए। साल 2005 से 2009 के बीच 1800 करोड़ की स्वजल धारा कहां लुप्त हो गई कुछ पता नहीं। 2012 में योजना को धारा में लाने के लिए 800 करोड़ का दोबारा एस्टीमेट बना जो पास नहीं हुआ,लिहाजा योजना तो गई खटाई में पर पैसों की पूरी बंदरबांट हो गई।
जल निगम के पूर्व सुपरिटेंडेंट इंजीनियर वाई एन उपाध्याय बताते हैं कि गांव वालों को पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिए ग्राम्य विकास मंत्रालय के अन्तर्गत ग्रामीण जलापूर्ति विभाग को ये जिम्मेदारी सौंपी गईं। इस योजना का नाम स्वजल धारा था जिसका संचालन जिलों के सीडीओ और डीडीओ ने किया। इसमें पैसा ग्राम समिति के माध्यम से खर्च किया गया। करीब हर गांव में मौजूदा दरों के हिसाब से 5-7 लाख एक गांव में खर्च किया गया।
योजना के मुताबिक ग्रामसभा से आंवटित भूमि पर बोरिंग करके छोटे ट्यूबवेल लगाकर 5 हजार से 10 हजार लीटर की ओवर हेड टंकियों के जरिए पानी गांव वालों के घर घर दिया जाना था। पर हुआ ये कि जो प्रधान सीडीओ डीडीओ से सेटिंग वाले थे उन्हें तो यूनिट लगाने का लाभ मिला पर ज्यादातर के गांवों में योजना की बोरिंग तो छोड़िए योजना के लिए ग्रामसभा की जमीन तक आवंटित नहीं हुई। उन्होंने ये भी बताया कि कुछ दबंग प्रधानों ने तो इस योजना की यूनिट अपने घर में ही लगवा ली और अपने पर्सनल इस्तेमाल में उपयोग किए।

तत्कालीन ग्राम्य विकास विभाग के प्रमुख सचिव की तरफ से एक जांच कराई गई और जल निगम से इस योजना को पटरी पर लाने के लिए एस्टीमेट मांगा गया। जल निगम ने करीब 800 करोड़ रूपए की लागत से योजना को फिर से पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव बनाकर राज्य पेयजल मिशन को सौंप दिया। जिसकी शासन स्तर पर स्वीकृति नहीं हुई और योजना धाराशायी हो गई। उपाध्याय बताते हैं कि विभाग के आला अफसरों से लेकर जिलों के सीडीओ डीडीओ और प्रधानो तक ने इस योजना के पैसों की बंदरबांट की।
उन्होंने आगे बताया कि अब अगर स्वजल धारा की बाबत कोई जानकारी मांगी जाए तो मिलनी तक मुश्किल है क्योंकि अब ग्रामीण पेयजल योजना ग्राम्य विकास से निकलकर जलशक्ति मंत्रालय के अधीन हो गई। अब ग्रामीण जलापूर्ति के लिए राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन काम कर रहा है।

इसी मिशन के अन्तर्गत ही जल जीवन मिशन शुरू हुआ जिसका 1 लाख 20 हजार करोड़ का भारी भरकम बजट बनाया गया। इसमें 60 हजार केंद्र और 60 हजार करोड़ राज्य सरकार को देना है। अभी इस मिशन का काम शुरू भर हुआ है सिर्फ टेंडर और वेंडर बांटे गए और टीपीआई के काम भी आवंटित कर दिए गए । बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में प्राथमिकता के तौर पर काम तो शुरू हुआ पर अभी तक किसी भी घर को नल और जल से जोड़ा नहीं जा सका और मिशन हजारों करोड़ के घोटालों की भेंट चढ़ गया है।

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