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हमने कोरोना को ऐसे दी मात

राय अभिषेक

 

लखनऊ, नवसत्ता: तूफ़ान चाहे कितना भी भयंकर क्यों न हो लेकिन अगर जीतने और जीने का जज्बा बना रहा और तूफान को पार करने का दृढनिश्चय हो तो उसे पार भी किया जा सकता है यही कहना है हमारे आज के प्रकाशन में:

 

डर के आगे जीत है: देव कुमार सिंह

औरय्या स्थित भारत सरकार के उपक्रम गेल में कार्यरत देव कुमार सिंह ने अपने एक महीने की कोरोना से जंग के अनुभव को साझा करते हुए बताया कि पिछले महीने 6 अप्रैल 2021 को मुझे बुखार हुआ और 7 अप्रैल 2021 को रैपिड एंटीजेन टेस्ट में मै पॉजिटिव पाया गया| मुझे होम आइसलेशन की सलाह दी गई और जो चिकित्सीय परामर्श का पूर्णतः अनुपालन किया| 5 दिन बाद मेरा बुखार थोडा कम हुआ, इस दौरान मुझे बुखार के अलावा कोई और समस्या नहीं थी| 6 दिन मुझे फिर से तेज़ बुखार हुआ जिसके बाद डॉक्टर से बात की तो उन्हीने थोड़ी दवाइयां बदली| उसके 2 दिन बाद मेरा ऑक्सीजन लेवल कम होना शुरू हुआ और छाती में भारीपन महसूस हुआ जिसके बाद मुझे घर पर ऑक्सीजन उपलब्ध करा दिया गया और मै ठीक महसूस करने लगा| स्थिति सुधरती देख मुझमे भी आत्मविश्वास बढ़ने लगा और डॉक्टर के हिसाब से एक दो दिन में सब ठीक होना था| लेकिन अगले दिन ही मेरी ऑक्सीजन 88 हो गई और भारीपन भी  बढ़ गया| मेरे डॉक्टर्स ने तुरंत मुझे कानपुर भेजने का निर्णय लिया| लेकिन कानपुर के रास्ते में दुर्भाग्य से एम्बुलेंस की ऑक्सीजन ख़त्म हो गई और मुझे निर्णय लेना था कि वापस औरय्या जा कर ऑक्सीजन लू या फिर कानपुर पहुँच कर इलाज शुरू करू और मैंने कानपुर जाने का निर्णय लिया क्यूंकि मुझे ऑक्सीजन से ज्यादा दवाइयों की जरूरत थी| मैं शांति पूर्वक लेट कर गहरी साँसे लेनी शुरू कर दी जिससे कि मेरे शरीर का ऑक्सीजन लेवल बना रहे| कानपुर में मुझे एक अस्पताल के अस्थायी वार्ड में जगह मिली जहाँ सीलेंडर से ऑक्सीजन दी जा रही थी| मुझे तुरंत ऑक्सीजन सपोर्ट पर रख दिया गया जिससे पहली रात ठीक गुजर गई लेकिन अगली रात करीबन 2-3 बजे जब मेरी नींद खुली तो मेरा ऑक्सीजन सीलेडर खली था और मेरा ओक्सीमीटर ऑक्सीजन लेवल 50 दिखा रहा था| घबराहट तो हुई परन्तु मैं उल्टा लेट कर गहरी सांस लेना शुरू कर दिया जिसके बावजूद मेरा ऑक्सीजन लेवल गिरते गिरते 35 तक चला गया| मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी और गहरी सांस लेना जारी रखा जिसकी वजह से  मेरा लेवल फिर से बढ़ कर 45 से 55 तक के बीच में हो गया| मैंने अपने आप को शांत रखा जिससे की मेरे शरीर की ऑक्सीजन बर्बाद न हो और फोन पर रिसेप्शन पर बात की जिसके 5-10 मिनट बाद मुझे ऑक्सीजन मिली| उसके अगले दिन फिर ऑक्सीजन ख़त्म हो गई, अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी थी, छोटे छोटे सीलेंडर में ऑक्सीजन दी जा रही थी जिसमे आधे घंटे तक का वक़्त लग रहा था| उसके अगले दिन रात 3-4 बजे के आसपास मेरा ऑक्सीजन सीलेंडर ख़त्म हो गया और उस समय मेरा ऑक्सीजन लेवल 65 था| मैंने नर्सिंग स्टाफ के पास जा कर उन्हें जगाने की कोशिश की लेकिन वे गहरी नींद में होने के कारण नहीं उठे| मैंने वापस आकर बेड पर उल्टा लेट कर सांस लेना शुरू किया जिससे मेंरा ऑक्सीजन 65 से 75 के बीच हो गया और इससे मेरा आत्मविश्वास और बढ़ गया| मेरे बगल के बेड के पेशेंट ने जा कर नर्सिंग स्टाफ को जगाया और डेढ़ घंटे बाद मुझे ऑक्सीजन की सप्लाई मिली| मैंने कभी भी डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और अपने आत्मविश्वास से ही मैंने पूरे इलाज के दौरान लगभग रोज़ हुई ऑक्सीजन की समस्या से पार पाया और अंततः 10 मई को वापस घर आ गया| मैं आप सबसे यही कहना चाहूँगा कि ऑक्सीजन की कमी के चलते घबराने की जरूरत नहीं है, जितना आप शांत रहेंगे उतना ही आप अपने शरीर की ऑक्सीजन को बचा पाएंगे| यदि आप घबरा गए तो आपके शरीर की ऑक्सीजन बहुत तेज़ी से ख़त्म होगी जैसा की इस समय ज्यादातर मसलो में देखा जा रहा है| कोरोना को हम हरा सकते है हर हाल में हरा सकते है|


मै परेशान तो बहुत हुई थी, परिवार के सहयोग से ही ठीक हुई हूँ: दीपानिका

लखनऊ की मूल निवासी और अभी नई दिल्ली में मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत 22 वर्षीय दीपानिका ने नवसत्ता को बताया कि 6 जनवरी 2021 को मै दिल्ली से लखनऊ अपने भाई के बर्थडे पर आई थी और उसी दिन मुझे खाने का स्वाद फीका लगने लगा था| 7 जनवरी की सुबह मुझे सूघने में समस्या शुरू हुई जिसके बाद मैंने तुरंत अपने को एक अलग कमरे में आइसलेट कर लिया था| 7 जनवरी को शाम को मेरे पूरे परिवार का आरटीपीसीआर कोविड टेस्ट हुआ और सभी लोग रैपिड टेस्ट में नेगेटिव थे| चूँकि मुझे असहज महसूस हो रहा था इसलिए मै अलग कमरे में ही रह रही थी| 8 जनवरी की सुबह मुझे अचानक थकान और खांसी की समस्या शुरू हो गई थी| उसी रात मेरे पास कण्ट्रोल रूम से कॉल आई कि मेरा आरटीपीसीआर पॉजिटिव आया है जिसको सुनने के बाद मै बहुत ज्यादा घबरा कर अपने कमरे में ये सोच कर रोने लगी कि मेरी वजह से घर में बाकी लोग भी इन्फेक्टेड हो गए होंगे और इसी टेंशन में मुझे बुखार भी हो गया| मम्मी पापा के समझाने और ये बताने पर कि बाकी सभी लोग नेगेटिव है मुझमें थोड़ी सी हिम्मत बंधी| अगले दिन मेरा स्वाद बिल्कुल ही चला गया| जब घर, परिवार, ननिहाल सभी जगह से मुझे हिम्मत बढाने वाली कॉल आने लगी तब मुझे लगा की संक्रमित होने में मेरी कोई गलती नहीं हैक्यूंकि मैंने कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन कभी कही नहीं किया था| हालाँकि मेरे परिवार के कुछ सदस्यों ने मुझ पर गुस्सा भी किया, जैसे मेरी ही गलती की वजह से संक्रमण घर में आया है पर बाद में उन्हीने भी मेरा साथ दिया| इस बीच में मुझे शरीर में बहुत ज्यादा दर्द होने लगा और मेरा चलना फिरना भी लगभग बंद हो गया था| लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी, समय पर दवाइयां और खाना लेती रही और अपने म्यूजिक के शौक को ज़िंदा रखा, हर समय वो सब कुछ करती थी जिससे मुझे ख़ुशी मिले और जब भी मन घबराता था तो मै हर उस व्यक्ति से विडियो कॉल करती जिसके साथ बात करने में मुझे अच्छा लगता था| सही मायने में मेरे ठीक होने में मेरे घर परिवार का बहुत बड़ा योगदान रहा| इसी उतार चढ़ाव के साथ 21 जनवरी को मेरा टेस्ट नेगेटिव हुआ जिसके बाद मैंने अपने को एक हफ्ते तक और आइसोलेट रखा| मैं सबसे यही कहूँगी की अगर आप संक्रमित हो तो जितना ज्यादा हो सके अपने को सकारात्मक रखे और अपने को खुश रखने का प्रयास करे|

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