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रायबरेली में क्या फिर कांग्रेस का होगा जिला पंचायत अध्यक्ष या निर्दलीय की खुलेगी किस्मत

त्रिस्तरीय चुनाव जीतने का दम भरने वाली भाजपा का नहीं चला ग्लैमर

पंकज गुप्ता
रायबरेली,नवसत्ता: रायबरेली में जिला पंचायत सदस्य के चुनाव के बाद अब इस बात की गणित बैठाई जा रही है कि आखिर कौन होगा जिला पंचायत अध्यक्ष (zila panchayat adhyaksh)का दावेदार पार्टियां अपने-अपने कैंडिडेट को चुनाव लड़ाने के लिए पूरी जुगत और गणित बैठा रही हैं।
पिछले कार्यकाल में एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह कांग्रेस के नेता थे और उनके भाई बृजेश सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष थे उसके पहले भी बृजेश सिंह की पत्नी सुमन सिंह अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान थी लेकिन इस बार शायद दिनेश सिंह की राह आसान ना होगी क्योंकि सुमन सिंह चुनाव हार चुकी हैं ।
अब सबकी निगाह सिर्फ कांग्रेस के प्रत्याशी मनीष सिंह की पत्नी आरती सिंह पर है।
क्या आरती सिंह कांग्रेस की ओर से जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए दावेदार होंगी 8700 वोट से चुनाव जीतने वाली आरती सिंह को कांग्रेसी अपना प्रत्याशी बना सकती है रायबरेली की जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट लगातार इसके पहले कांग्रेस के पास थी अगर मनीष सिंह की पत्नी आरती सिंह पर कांग्रेस दाव लगाती है तो हो सकता है इस बार की भी सीट कांग्रेस के पास ही जाए।
कांग्रेसी जड़े रायबरेली जिले में कमजोर होती नजर आ रही है क्योंकि कांग्रेस की सांसद को छोड़कर कोई अन्य सीट बड़ी नहीं है इसलिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व गांधी परिवार अपनी पूरी ताकत लगाएगा की जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट उसी के पास जाए। हालांकि अगर हम समाजवादी पार्टी को देखें तो सपा के जीते हुए 12 प्रत्याशी हैं जबकि अगर हम सपा समर्थकों की बात करें तो प्रत्याशियों की संख्या ज्यादा है अगर खेल ना हुआ तो सपा समर्थित भी जिला पंचायत अध्यक्ष बन सकता है।
धनबल और बाहुबल के इस चुनाव में अब आगे क्या तस्वीर निकल कर आती है यह तो अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही समझ में आएगा फिलहाल राह आसान किसी के लिए नहीं है बाहुबली अपनी अपनी साख बचाने के लिए लगेंगे।

त्रिस्तरीय चुनाव जीतने का दम भरने वाली भाजपा का नहीं चला ग्लैमर

त्रिस्तरीय चुनाव में सभी पार्टियों ने अपने समर्थित प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था बहुजन समाज पार्टी भले ही चुनाव से दूर रही लेकिन सपा कांग्रेस और बीजेपी यह तीनों ही पार्टियां अपने द्वारा समर्थित प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतार कर अपनी ताकत को आजमाने का प्रयास जरूर किया है इसमें सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन 25% भी नहीं रहा ऐसे में हम कह सकते हैं कि सत्ताधारी दल का प्रभाव जनता में कम होता नजर आ रहा है।
रायबरेली में 52 जिला पंचायत सदस्य की सीटें हैं। जिले में जिस सत्ताधारी दल के विधायक, एमएलसी और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष  हैं उस पार्टी का ग्रामीण क्षेत्र में प्रभाव जीरो साबित हुआ है जीरो हम इसलिए कहेंगे क्योंकि ज्यादा सीटें भाजपा नहीं निकाल पाई।
बछरावां के राजा राम भारती जैसे भाजपा के बड़े नाम विक्रांत अकेला जैसे नौजवान से चुनाव हार गए। जबकि डीह क्षेत्र से बृज लाल पासी चुनाव तो जीत गए लेकिन कोरोना से जिंदगी की जंग हार गए ।
कांग्रेस का दावा है कि 10 जिला पंचायत सदस्य उनके जीते हैं साथ ही कुछ ऐसे क्षेत्र थे जहां पर कांग्रेस पार्टी के ही 2 कार्यकर्ता चुनाव लड़ रहे थे उनमें से चार अन्य को भी कॉन्ग्रेस अपना मानती है जबकि कांग्रेस ने 33 सीटों पर जिला पंचायत सदस्य के लिए प्रत्याशी खड़े किए थे।
 दूसरी ओर अगर हम सपा की बात करें तो सपा का दावा है कि उसके 12 कैंडिडेट जीते हैं जबकि अन्य जो कुछ सपा से जुड़े नेता चुनाव लड़के जीते हैं उन्हें भी सपा अपना मानती है सबसे खराब प्रदर्शन अगर देखा जाए तो भाजपा रहा। भाजपा ने पूरी सीटों पर चुनाव लड़वाया लेकिन उसके 9 कैंडिडेट ही चुनाव जीत पाए हैं।
सत्ता में होने के बाद भी भाजपा का इस तरह का प्रदर्शन रहा उसका एक कारण नहीं है अधिकारियों की मनमानी और उनके द्वारा सत्ता से जुड़े होने के बाद भी कार्यकर्ताओं का शोषण ग्रामीण अंचल में अगर भाजपा की बात करने पर लोग नाराज हो जाते हैं क्योंकि वहां पर चाहे फसल की खरीद हो या फिर आवारा जानवरों की समस्या इन सभी से ग्रामीण भाजपा के लोगों से नाराज रहते हैं । कई ऐसे समझदार प्रत्याशी थे जिनको टिकट मिलने की संभावना थी लेकिन उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा।
 कोरोना महामारी में अव्यवस्थाओं का जो जंजाल फैला वो भाजपा के लिए घातक साबित हुआ साथ ही भाजपा कार्यकर्ताओं का अधिकारियों के द्वारा उत्पीड़न भी एक कारण रहा।
इस बीच देखा गया कि कई मामलों को लेकर भाजपा के कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन किया यह पहली बार हो रहा है कि सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता अधिकारियों के खिलाफ असंतोष जाहिर करते हुए धरना दे रहे हो इन सब का भी असर इस चुनाव पर देखने को मिला है।

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