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अगर ये पांच गलतियां न हुई होतीं तो कोरोना संकट का प्रबंधन थोड़ा बेहतर हो सकता था

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या में अब अपेक्षाकृत तेज वृद्धि होने लगी है. भारत में इस संकट के गहराने की कई वजहें बतायी जा रही हैं. इनमें कुछ ऐसी गलतिया भी शामिल हैं जो नहीं की जातीं तो कोरोना संकट का प्रबंधन थोड़ा बेहतर हो सकता था. 1- विदेशों से आने वाले यात्रियों के मामले में कुप्रबंधन 26 मार्च, 2020 को कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने सभी राज्यों के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने बताया कि 18 जनवरी, 2020 से हवाई अड्डे पर यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू हुई थी और तब से लेकर 23 मार्च, 2020 तक कुल 15 लाख लोग भारत आए हैं. उन्होंने यह भी लिखा कि इन यात्रियों से संबंधित जानकारियां राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा की गई थीं और यह निर्देश दिया गया था कि इनकी निगरानी की जाए लेकिन यह काम ठीक से नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि इस वजह से कोविड-19 संक्रमण रोकने की हमारी कोशिशों को तगड़ा झटका लग सकता है. उन्होंने राज्यों को निर्देश दिया कि इन लोगों की सही ढंग से निगरानी सुनिश्चित की जाए. इससे पता चलता है कि भारत के बाहर जब कोविड-19 का प्रकोप बढ़ रहा था तो उन देशों से जो लोग भारत आए, उन लोगों की निगरानी में किस तरह की लापरवाही बरती गई. भारत सरकार को लगा कि सिर्फ एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग कर देने भर से भारत में कोविड-19 नहीं फैलेगा. जबकि तब तक दुनिया भर से यह जानकारी आने लगी थी कि जिन्हें इसका संक्रमण होता है, उनमें इसके लक्षण दिखने में कई दिन लग जाते हैं. फिर भी भारत में एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग करके कर्तव्यों की इतिश्री कर ली गई. इसमें एक और लापरवाही यह हुई कि चीन से भारत आने वाली उड़ानों को तो 4 फरवरी, 2020 को प्रतिबंधित कर दिया गया लेकिन दूसरे प्रभावित देशों से लोग आते रहे. अगर बाहर से आने वाली उड़ानों के मामले में पहले से कड़ाई बरती गई होती और जो लोग आ रहे थे, उनका सही बंदोबस्त उसी समय युद्ध स्तर पर किया गया होता तो अभी भारत के लिए कोरोना संकट का प्रबंधन करना थोड़ा आसान होता. 2- चीन की दुर्दशा से सबक नहीं चीन के वुहान से कोविड-19 का संक्रमण शुरू हुआ. चीन में अब तक कुल 81,554 लोग इस संक्रमण के शिकार हो चुके हैं जिनमें से 3,312 लोगों की मौत हो गई है. चीन के बाद यह ईरान, इटली और दूसरे यूरोपीय देशों में फैलने लगा. जैसे-जैसे यह फैला, दुनिया भर में इससे जुड़ी हुई बहुत सारी जानकारियां आने लगीं. लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे भारत सरकार में बैठे हुए विशेषज्ञों को इससे कोई खास लेना-देना नहीं था. जबकि भारत से कहीं अधिक विकसित और साधन संपन्न देश कोविड-19 के सामने बेहद लाचार दिख रहे थे. उनकी हालत देखते हुए भारत को कोरोना वायरस से निपटने की तैयारी बहुत पहले से करनी चाहिए थी. भारत में कोविड-19 के पहले मामले की पुष्टि 29 जनवरी को हुई. अगर भारत इस मामले में सावधान होती तो उसी समय तुरंत हरकत में आकर उस तरह के कठोर कदम उठाती, तो समय रहते हमने कोविड-19 के बारे में जरूरी जानकारी नहीं जुटाई या फिर जान-बूझकर इस मामले में लापरवाही बरती. 3- मास्क और वेंटिलेटर का निर्यात कोविड-19 का संक्रमण चीन में सबसे पहले फैला. दुनिया के कई देशों से अब यह जानकारी आ रही है कि चीन की हालत को देखते हुए कई देशों ने अपने यहां मास्क और वेंटिलेटर आदि का भंडार बनाना शुरू कर दिया. अपने अस्पतालों को इस संकट से निपटने की स्थिति के लिए तैयार करना शुरू कर दिया. लेकिन भारत में सरकार के स्तर पर कुछ बैठकों और हवाईअड्डे पर स्क्रीनिंग के अलावा कुछ खास होता नहीं दिखा. जहां एक तरफ भारत से कहीं अधिक विकसित माने जाने वाले देश कोविड-19 के भय से अपने यहां मास्क, सैनिटाइजर और वेंटिलेटर जुटाने में लगे थे, वहीं भारत इनका निर्यात कर रहा था. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कहा था कि कोविड-19 से निपटने के लिए मास्क, हजमत सूट, सैनिटाइजर और वेंटिलेटर का भंडार किया जाना चाहिए. हमारे यहां केंद्र सरकार ने 19 मार्च को कुछ किस्म के मास्क, कुछ किस्म के वेंटिलेटर और मास्क बनाने में इस्तेमाल होने वाले कपड़े के निर्यात को प्रतिबंधित किया. इसके बाद भी सैनिटाइजर का निर्यात जारी था. जब कांग्रेस की ओर से यह मामला उठाया गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर 22 मार्च को लगे जनता कर्फ्यू के दो दिन बाद यानी 24 मार्च को सैनिटाइजर, हर तरह के मास्क और वेंटिलेटर का निर्यात प्रतिबंधित किया गया. भारत में अब जब कोविड-19 संक्रमण तेजी से फैलने लगा है तो देश में चारों तरफ से इन चीजों की कमी की खबरें आ रही हैं. इस वजह से डाॅक्टर भी संक्रमण के शिकार हो रहे हैं और कई जगह तो वे और अन्य स्वास्थ्यकर्मी अस्पताल आने से डर रहे हैं. 4- बगैर योजना के लाॅकडाउन भारत में कोविड-19 का संक्रमण फैलते देखकर लाॅकडाउन की पहल पहले

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