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स्वच्छता के मोर्चे पर योगी सरकार को मुंह चिढ़ाने वाला सिर्फ कुंभनगरी का कूड़ा नहीं है

2019 की शुरुआत में इलाहाबाद, जो अब प्रयागराज है, में कुंभ के आयोजन से उत्तर प्रदेश योगी सरकार ने खूब वाहवाही लूटी थी. कुंभ अपनी बेहतरीन साफ़-सफाई के लिए जबरदस्त चर्चा में रहा था. इस दौरान रखी गई स्वच्छता की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘अभूतपूर्व’ कह कर तारीफ़ की थी. लेकिन वही कुंभ अब योगी सरकार के लिए कई सवाल और समस्याएं पैदा करने लगा है. प्रयागराज कुंभ में सफाई के लिए जो निर्माण कार्य किये गए थे उनके कारण अब पर्यावरण पर कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगे हैं. कुंभ के समापन के बाद अब कुंभ के ‘अभूतपूर्व स्वच्छता इंतजामों’ की पोल खुलने लगी है और इनकी असलियत भी सामने आने लगी है. योगी सरकार के लिए मुश्किल यह है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी ने भी इस मामले में बेहद नाराजगी जाहिर की है और कड़ा रुख दिखाया है. एनजीटी की ओर से कुंभ और इसके बाद स्वच्छता की स्थिति का आकलन करने के लिए गठित एक समिति की अंतरिम रिपोर्ट में कई कड़ी टिप्पड़ियां की गई हैं. जस्टिस अरुण टंडन की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अप्रैल में अपनी जो अंतरिम रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी है उसके मुताबिक कुंभ के बाद प्रयागराज में स्वच्छता के मोर्चे पर जो अव्यवस्था फैली है वह किसी आपातस्थिति जैसी है. समिति ने अपनी जांच में पाया कि कुंभ के दौरान 60 हजार टन कूड़ा जमा हुआ था जिसमें से बड़ा हिस्सा अब भी खुले में पड़ा है और उसके सड़ने से महामारी फैलने की भी आशंका है. समिति ने कहा है कि बसवार प्लांट में लगभग दो हजार टन से ज्यादा कचरा बिना छांटे लाया गया था जो अब भी खुले में बिना ढके पड़ा हुआ है, जबकि यह प्लांट सितबर 2015 से ही बंद पड़ा है. समिति ने कचरे को इस तरह खुले में बिना ढंके रखने को ठोस कचरा प्रबंधन अधिनियम 2016 का खुला उल्लंघन माना है. यही नहीं, समिति ने कहा है कि कुंभ मेला क्षेत्र में जो 1,22,500 इको फ्रेंडली शौचालय बनाये गए थे उनका गंदा पानी 36 अस्थाई सोकपिटों में जमा होता था. इन सोकपिटों की निचली सतह में लाइनिंग नहीं की गयी थी. अब यह गन्दा पानी रिसते हुए नदी के पानी में मिल सकता है. अरैल में बने ज्यादातर शौचालयों का सीवेज राजापुर ट्रीटमेंट प्लांट में भेजे जाने की व्यवस्था थी लेकिन इस प्लांट में उसकी क्षमता से दुगुना सीवेज आने के कारण आधी गंदगी बिना शोधित हुए नदी में जा रही थी. इसी तरह सलोरी ट्रीटमेंट प्लांट भी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा था. समिति ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाने का दोषी माना है क्योंकि एनजीटी ने बोर्ड को कुंभ के दौरान श्रद्धालुओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने की जिम्मेदारी दी थी. लेकिन बड़ी राशि खर्च होने के बावजूद बोर्ड लोगों को पूरी तरह जागरूक करने में सफल नहीं हो पाया. समिति ने सीवेज ट्रीटमेंट के लिए प्रयोग में लायी गई जियो ट्यूब तकनीक पर भी सवाल उठाये हैं. उसने मवेया नाले और मनसुठिया नाले में जियो ट्यूब तकनीक के इस्तेमाल के बावजूद गंदा पानी नदी में जाने पर नाराजगी जाहिर की है. एनजीटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में उठाये सवालों पर उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होकर जवाब देने को कहा है. एनजीटी के इस आदेश के बाद राज्य सरकार की परेशानी बढ़ गई है. वह बचाव के बहाने खोजने में भी जुट गयी है. लेकिन प्रयागराज का यह मामला पर्यावरण और प्रदूषण नियंत्रण के मोर्चे पर उत्तर प्रदेश सरकार की असफलता पर सवाल वाला इकलौता मामला नहीं है. पिछले डेढ़ महीने में ही प्रदेश सरकार की अक्षमता पर अदालतें , एनजीटी, उत्तर प्रदेश सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट कमेटी आदि संस्थाएं कई तरह के प्रश्न उठा चुकी हैं. बीते मार्च में ही एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत और गाजियाबाद जिलों में बहने वाली नदियों के पुनर्जीवन में असफल होने के कारण राज्य सरकार पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना ठोका था. एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था, ‘इस मामले पर उत्तर प्रदेश सरकार की अब तक की गंभीर नाकामी और नदियों के प्रदूषण से जनता के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले चिंताजनक प्रभाव को देखते हुए यह जुर्माना लगाना जरुरी है. ‘ एनजीटी ने सरकार को इन नदियों के पुनर्जीवन की कार्ययोजना को छह महीने में पूरा करने का भी निर्देश दिया है ताकि इन नदियों को मैले पानी और औद्योगिक कचरे से पूरी तरह मुक्त किया जा सके. अप्रैल 2019 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लखनऊ शहर में सीवर प्रबंधन और सफाई की बुरी स्थिति पर नाराजगी जताई थी. उसने लखनऊ नगर निगम के आयुक्त को शहर को स्वच्छ बनाने लिए एक ठोस कार्य योजना पेश करने का आदेश दिया था. अब इस आदेश में लखनऊ विकास प्राधिकरण और आवास विकास परिषद को भी शामिल कर दिया गया है.

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