सुनो दौपद्री शस्त्र उठा लो अब गोविंद न आयेंगे….
राजनीति में हिंसा को खत्म करने के लिये महिलाओं की मजबूती जरूरी
चित्रकूट, नवसत्ता: प्रदेश में खोई सियासी जमीन को फिर से तैयार करने के लिए कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी बुधवार की दोपहर श्रीराम की तोपस्थली रहे चित्रकूट पहुंच गईं. तुलसीदास की जन्मस्थली राजापुर में कांग्रेसियों ने उनका स्वागत किया और अब मंदाकिनी तट पर नाव पर बैठकर महिलाओं से संवाद की शुरुआत की और कांग्रेस की नीतियों और उपलब्धियां बताईं. इसके साथ महिलाओं से परिवार की कुशलता समेत अन्य समस्याएं भी पूछीं. सुरक्षा के मद्देनजर पूरा फोर्स तैनात कर दिया गया है, कांग्रेस नेताओं के साथ संवाद करने वाली महिलाएं भी पहुंच गई हैं.
यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पुरानी सियासी विरासत दिलाने के लिए उतरीं राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा ने इन दिनों महिलाओं से संवाद का अभियान शुरू किया है. इसी कड़ी में पूर्व प्रस्तावित कार्यक्रम के तहत वह हवाई जहाज से सुबह 11 बजे दिल्ली से प्रयागराज हवाई अड्डे पर उतरीं और फिर कार से चित्रकूट पहुंचीं. नगर की सीमा पर तुलीसदासजी की जन्मस्थली राजापुर में कांग्रेसियों ने उनका स्वागत किया.
उनके साथ प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी रहे. वहीं मंदाकिनी नदी के रामघाट पर संवाद कार्यक्रम के लिए सुबह से महिलाओं का पहुंचना शुरू हो गया था. उनके पहुंचने के बाद कांग्रेसियों ने उनका स्वागत किया, यहां पर उन्होंने महिलाओं से बातचीत शुरू की. इससे पहले उन्होंने चित्रकूट के राजाधिराज स्वामी मत्तगजेंद्रनाथ के दरबार में पहुंच कर पूजा अर्चना की और फिर संवादस्थल पहुंची. उनके आने से पहले रामघाट पर भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी.
रामघाट पर मंदाकिनी नदी में वह नाव पर सवार होकर पार पहुंची. यहां सीढिय़ों पर मौजूद महिलाओं ने उनका स्वागत किया तो उन्होंने भी हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन किया. इसके बाद नाव पर सवार रहते हुए नदी तट की सीढिय़ों पर बैठीं महिलाओं से संवाद शुरू किया. उन्होंने कांग्रेस सरकार के काम बताए और महिलाओं से समस्याएं भी पूछीं. यहां रामघाट पर महिलाओं के प्रवेश के लिए नए फुट ओवर ब्रिज और नयागांव रपटा पुल में गेट बनाए गए हैं.
रामघाट में आयोजित महिला संवाद कार्यक्रम में प्रियंका ने बुधवार को कहा कि महिला का संघर्ष उसका अपना होता है. उसके लिये संघर्ष कोई नहीं करेगा. उसे अपनी शक्ति पहचाननी होगी. 40 फीसदी महिलाओं को राजनीति में आना होगा. जब तक महिलाये आगे नहीं बढेंगी. तब तक उनके लिये नीतियां कैसे बनेगी. एक महिला ही महिला के लिये नीतियां बना सकती है. महिलाओं की राजनीति में आधी भागीदारी होनी चाहिये. 40 फीसदी सिर्फ शुरूआत है. जब तक खुद समाज को बदलने को नहीं ठानेंगे. इस समाज में महिलाओं का शोषण होता रहेगा.
लखनऊ में आशाओ की पुलिस पिटाई का उल्लेख करते हुये उन्होने कहा “ जो तुम्हारा शोषण कर रहे है, उनसे रक्षा की उम्मीद कैसे करोगी. आशा बहुओं को लखनऊ में पुलिस ने इतनी बुरी तरह पीटा कि उसका हाथ टूट गया. चेहरे में सूजन आ गयी. उसका कसूर सिर्फ इतना था कि वह मुख्यमंत्री की सभा में अपनी मांगों को रखना चाह रही थी. पुलिस के रोकने पर उसने सिर्फ इतना पूछा कि मुझे क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है.”
एक कवि की रचना “सुनो दौपद्री शस्त्र उठा लो अब गोविंद न आयेंगे. कब तक आस लगाओंगी तुम बिके हुये अखबारों से. कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से.” का जिक्र करते हुये उन्होने कहा कि इस सरकार में महिलाओं का शोषण किया जा रहा है, उससे रक्षा की उम्मीद नहीं की जानी चाहिये. पीटे जाने वालों से हक नहीं मिल सकता. अपने हक के लिये महिलाओं को खुद लड़ना होगा. अपना मन बनाना होगा कि वे आधी आबादी हैं तो राजनीति में अपना हक क्यों न मांगे. महिला को आंख बूंद कर वोट करो. कांग्रेस की पहल का अंत नहीं हो सकता. हो सकता है कि कुछ महिलाये सक्षम हो और जीत जाये मगर कुछ को हार भी मिले मगी जब वे अगली बार लडेगी तो ज्यादा सक्षम होकर लडेगी. कोई राजनीतिक दल उन्हे रोक नहीं पायेगा.