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राममंदिर के लिए अटल सरकार से टकरा गए थे महंत रामचंद्र परमहंस

पांच दशकों तक राममंदिर के लिए लड़ते रहे परमहंस

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ, नवसत्ता:- नई पीढ़ी को शायद इस बात का अहसास न हो कि अयोध्या के जिस राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह होने जा रहा है। उसके पीछे रामनगरी अयोध्या न जाने कितनी लम्बी कहानी समेटे हुए है। न्यायालय के आदेश के पहले जहां राम विरोधी राजनीतिक पार्टियोें से साधु संत टकराते रहे। वहीं अपनी ही विचारधारा की पार्टियों से टकराव लेने में साधु संत कभी पीछे नहीं रहे।

अयोध्या के हर आंदोलनों और धर्म रक्षा सम्मेलनों में महंत परमहंस रामचंद्र दास रहा करते थें। उनके सख्त तेवरों से सब घबराते थें चाहे वह कोई अफसर हो अथवा राजनेता हो। कर्नाटक के उडुपी में हुई दूसरी धर्मसंसद में उन्होंने घोषणा की थी कि यदि अगले साल शिवरात्रि तक राम जन्मभूमि का ताला नहीं खोला गया तो वह स्वंय जाकर रामलला का ताला तोड़ देंगे।

इसके बाद तत्कालीन राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया और शिवरात्रि के पहले ही अदालत के आदेश पर एक फरवरी 1986 को रामजन्मभूमि मंदिर का ताला खोल दिया गया।

रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे महंत परमहंस रामचंद्र दास ने 1984 में नई दिल्ली में हुई पहली धर्म संसद से रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन को धार देने की शुरूआत की थी। परमहंस रामचन्द्र दास एक ऐसे संत थें जिन्होंने अटल सरकार तक को हिला दिया था। 1949 से राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले रामचंद्र परमहंस दास राम मंदिर निर्माण के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। यही वजह है कि आज अयोध्या ही नहीं पूरे देश के संत महंत रामचंद्र परमहंस दास को याद करते हैं।

जनवरी 2002 में अयोध्या से नई दिल्ली तक की चेतावनी संत यात्रा का फैसला परमहंस रामचन्द्र दास जी का ही था। 27 जनवरी 2002 को प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी से मिलने गए संतो के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व पूज्य परमहंस रामचन्द्र दास जी ने ही किया। मार्च 2002 के पूर्ण आहुति यज्ञ के समय शिलादान पर अदालत के हस्तक्षेप के बाद परमहंस  रामचन्द्र दास की इस घोषणा ने सारे देश को हिलाकर रख दिया कि अगर मुझे शिलादान नहीं करने दिया गया तो आत्मदाह कर लूंगा। इसके बाद केन्द्र और प्रदेश सरकार के प्रतिनिधियों ने उनको केन्द्र से आई शिलाओं को साैंपकर मनाया।

परमहंस रामचन्द्र दास जी का पूरा नाम चन्द्रेश्वर तिवारी था। 17 वर्ष की आयु में साधु जीवन अंगीकार करने के बाद उनका नाम रामचंद्र दास हो गया। बिहार के छपरा जिले के सिंहनीपुर गांव में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम भाग्यरन तिवारी और माता का नाम सोना देवी था।

परमहंस रामचंद्र दास ने ही रामजन्मभूमि का मामला कोर्ट में दाखिल किया था। नब्बे के दशक में अयोध्या मामले के दो प्रसिद्ध पक्षकार परमहंस और हाशिम अंसारी एक साथ ही रिक्शे से अदालत आया-जाया करते थे। बता दें कि 2003 में परमहंस और 2016 में हाशिम अंसारी का निधन हो गया था। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतहासिक फैसला सुनाया।

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