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एक देश एक चुनावः केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता में बनाई कमेटी

नई दिल्ली, नवसत्ताः केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव को लेकर एक कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे। जिसका नोटिफिकेशन आज जारी होने की उम्मीद की जा रही है। आप को बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में कमेटी कानून के सभी पहलुओं पर विचार करेगी और एक देश, एक चुनाव की संभावना का पता लगाएगी। इसके साथ ही कमेटी लोगों की राय भी लेगी। वन नेशन, वन इलेक्शन के विचार का मतलब देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने से है। पैनल में और कौन शामिल होंगे, इस बारे में अभी जानकारी सामने नहीं आई है। सदस्यों के बारे में अधिसूचना बाद में जारी की जाएगी।

2014 के घोषणापत्र में किया गया था वादा
आप को बता दें कि वन नेशन, वन इलेक्शन का मुद्दा बीजेपी के एजेंडे में रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता कई मौकों पर एक देश, एक चुनाव को लेकर बोल चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणापत्र में भी ये शामिल रहा था। घोषणा पत्र में कहा गया था, “बीजेपी अपराधियों को खत्म करने के लिए चुनाव सुधार शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध है। बीजेपी अन्य दलों के साथ परामर्श के माध्यम से विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की पद्धति विकसित करने की कोशिश करेगी।

क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन
वन नेशन-वन इलेक्शन या एक देश-एक चुनाव का मतलब हुआ कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

केंद्र ने बुलाया संसद का विशेष सत्र
केंद्र सरकार ने 18-22 सितंबर को संसद का विशेष सत्र बुलाया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार संसद के विशेष सत्र के दौरान एक देश एक चुनाव को लेकर बिल पेश कर सकती है।

सरकार को पहले भरोसे में लेना चाहिए थाः विपक्ष
शिवसेना (उद्धव गुट) के सांसद संजय राउत ने कहा कि बीजेपी इंडिया से डरी हुई है। वन नेशन, वन इलेक्शन को मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए लाया जा रहा है। सपा नेता राम गोपाल यादव ने कहा कि संसदीय व्यवस्था की सारी मान्यताओं को यह सरकार तोड़ रही है। अगर विशेष सत्र बुलाना था तो सरकार को सभी विपक्षी पार्टियों से कम से कम अनौपचारिक तौर पर बात करनी चाहिए थी। अब किसी को नहीं पता है कि एजेंडा क्या है और सत्र बुला लिया गया है।

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