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क्या कांग्रेस को मजबूत कर पाएंगे राज्यसभा पहुंचे यूपी के तीन नेता?

नीरज श्रीवास्तव
लखनऊ, नवसत्ताः राज्यसभा चुनाव में यूपी के दो प्रतापगढ़ी व एक कानपुरी नेता ने भले ही जीत दर्ज कर ली हो परन्तु क्या वे प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत कर पायेंगे इस पर संशय बना हुआ है‡ पार्टी कार्यकर्ताओं में भी प्रत्याशी चयन को लेकर नाराजगी दिख रही है.

विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बावजूद प्रदेश में कांग्रेस सबक सीखने को तैयार नहीं दिख रही है. पार्टी में जमीनी नेताओं के बजाय मैनेजरों की ही वरीयता दिये जाने पर कार्यकर्ताओं में नाराजगी साफ तौर पर दिखायी दे रही है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तीन दशक से अधिक समय से सत्ता से बाहर है. इस समय संगठन के प्रमुख पदों पर नेताओं के बजाय सेटिंग-गेटिंग करने वाले मैनेजरों का बोलबाला है. इसका असर बीते विधानसभा चुनाव में देखने को मिला जब 403 सदस्यों वाली विधानसभा में केवल दो विधायक ही जीत पाये. पार्टी का वोट प्रतिशत भी घटकर दो फीसद के आसपास पहंुच गया। इसकी सबसे बड़ी वजह प्रदेश में कार्यकर्ताओं की उदासीनता व जनता से जुड़ाव न होना माना जा रहा है.

पार्टी मैनेजरों ने इस चुनाव परिणाम से भी कोई सबक नहीं सीखा और राज्यसभा भेजने के लिए भी जमीनी नेताओं के बजाय सेटिंग-गेटिंग को वरीयता दी गई. राज्यसभा के लिए चुने गये दो नेता प्रमोद तिवारी और इमरान प्रतापगढ़ी तो एक ही जिले प्रतापगढ़ के हैं जबकि पत्रकार से नेता बने राजीव शुक्ल कानपुर के हैं. राजीव शुक्ला छत्तीसगढ़ से, प्रमोद तिवारी को राजस्थान और इमरान प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र से राज्यसभा चुनाव में जीत हासिल कर ली है। अब आइये इन नेताओं की जमीनी हैसियत पर भी चर्चा कर ली जाए.

प्रमोद तिवारी

ब्राहमण नेता के तौर पर कांग्रेस में लम्बे समय से सक्रिय  और ढाई दशकों से अधिक समय तक पार्टी विधानमण्डल दल नेता रहे प्रमोद तिवारी के बारे में एक बात सबसे अधिक चर्चा में रही है कि भले ही उनके कार्यकाल में कांग्रेस लगातार कमजोर हुई हो परन्तु प्रमोद तिवारी की सियासी हैसियत कभी कम नहीं हुई. उनके रिश्ते सपा,बसपा यहां तक कि भाजपा से मधुर रहे हैं. इस विधानसभा चुनाव में पार्टी को जो दो सीट मिली है उसमें एक उनकी रामपुर खास सीट भी है जहां से उनकी बेटी और कांग्रेस विधानमण्डल दल नेता अराधना शुक्ला मोना चुनाव जीती हैं. हालांकि प्रतापगढ़ की अन्य सभी सीटों पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। प्रदेश की अन्य सीटों पर भी प्रमोद तिवारी कोई असर नहीं छोड़ पाये। ऐसे में राज्यसभा पहुंचकर वे पार्टी को मजबूत कर पायेंगे इस पर संशय है.

राजीव शुक्ल


पार्टी ने पत्रकार से नेता बने राजीव शुक्ल को एक बार फिर राज्यसभा जाने का मौका दिया है. कानपुर के रहने वाले राजीव शुक्ल 2000 में पहली बार अखिल भारतीय लोकक्रांति कांग्रेस पार्टी के जरिये महाराष्ट्र से राज्यसभा पहुंचे थे. बाद में पार्टी का विलय कांग्रेस में हो गया और वे कांग्रेस के प्रवक्ता बन गये. राजीव शुक्ल की पहचान जननेता के बजाय सेटिंग-गेटिंग करने वाले मैनेजर के तौर पर रही है। ऐसे में उनके राज्यसभा चुने जाने से यूपी में कांग्रेस को कोई फायदा नहीं होगा.इमरान प्रतापगढ़ी

राज्यसभा भेजे गये तीसरे नेता के नाम पर पार्टी नेता से लेकर कार्यकर्ता तक हैरत में हैं. कभी समाजवादी पार्टी नेता आजम खां के करीबी रहे इमरान प्रतापगढ़ी तुकबंदी वाले शायर के रूप में जाने जाते हैं। उनकी सियासी हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछला लोकसभा चुनाव उन्होंने पचास फीसदी मुस्लिम आबादी वाले मुरादाबाद लोकसभा से चुनाव लड़ा था और अपनी जमानत तक नहीं बचा सके थे. पिछले विधानसभा चुनाव में भी इमरान प्रतापगढ़ी को स्टार प्रचारक बनाया गया था परन्तु वे पार्टी के लिए कुछ नहीं कर सके. ऐसे में इमरान को राज्यसभा भेजने के फैसले से दिग्गज कांग्रेसी ही नहीं बल्कि राजनैतिक विश्लेषक भी हैरान हैं. उनसे यूपी में कांग्रेस का भला करने की उम्मीद भी बेमानी है.

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