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आजमगढ़ सीट पर अब दिलचस्प हुआ मुकाबला

सपा से धर्मेंद्र, भाजपा से निरहुआ व बसपा से शाह आलम मैदान में

इस सीट से 12 बार यादव, तीन बार मुस्लिम सांसद बने

केवल एक बार सवर्ण प्रत्याशी को मिली जीत

राजकुमार सिंह

लखनऊ,नवसत्ता: लोकसभा उपचुनाव के लिए सपा ने भी सोमवार को अपने पत्ते खोल दिए. रामपुर से आसिम रजा  और आजमगढ़ संसदीय सीट से पूर्व सांसद धर्मेन्द्र यादव को प्रत्याशी बनाया गया है. समाजवादी पार्टी  की तरफ से  उम्मीदवारों की घोषणा किये जाने से आजमगढ़ सीट पर मुकाबला अब काफी दिलचस्प माना जा रहा है.

सूत्रों के मुताबिक पहले इस सीट पर सपा सुप्रीमो दलित समाज के नेता पर दांव लगाना चाहते थे. बड़े दलित नेता रहे  बलिहारी बाबू के बेटे सुशील आनंद का नाम भी तय हो गया था. लेकिन पार्टी के तमाम नेता इससे सहमत नही थे. जिससे उनको अपना निर्णय बदलना पड़ा.

भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने तो पहले  ही अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी थी. बसपा ने शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली पर दांव लगाया है. भाजपा ने भोजपुरी सिनेमा के स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को दोबारा मैदान में उतारा है. निरहुआ 2019 में हुए लोकसभा के आम चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी थे. इनको पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दो लाख से अधिक मतों से हराया था. अखिलेश ने लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया तो इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है.

नामांकन करने पहुंचे दिनेश लाल यादव निरहुआ

इस बार निरहुआ के सामने हैं सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेन्द्र यादव और बसपा के गुड्डू जमाली. सोमवार को उम्मीदवारी की घोषणा होते ही धर्मेन्द्र दल बल के साथ आजमगढ़ पहुंचे और कलक्ट्रेट जाकर नामांकन भी कर दिया. उनको प्रत्याशी बनाये जाने से सपा कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह भी दिखा.

धर्मेन्द्र बदायूं लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में हार गए. उनको  सपा के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी भाजपा प्रत्याशी संघमित्रा मौर्या ने हराया था.

निरहुआ दो साल बाद ही फिर उसी क्षेत्र से ताल ठोक रहे हैं. भोजपुरी स्टार होने से लोगों में उनका क्रेज भी है. पिछली बार मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री व सपा के मुखिया से था. इस बार थोड़ा आसान है. निरहुआ का कहना है कि इस बार तो जीत तय है. क्योंकि आजमगढ़ के लोगों को अपनी भूल का एहसास हो गया है. निरहुआ का आरोप है जीतने के बाद अखिलेश कभी जनता का हालचाल लेने नहीं आये. इसलिये सपा से नाराज है.

दूसरी तरफ सपा नेता दानबहादुर मधुर कहते हैं कि आजमगढ़ 2014 से सपा का गढ़ बन चुका है. 2014 में लोकसभा के आमचुनाव में सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने भाजपा के रमाकांत यादव को हराया था. जबकि इस सीट से रमाकांत तीन बार सांसद रह चुके हैं। 2019 में उनके पुत्र अखिलेश को आजमगढ़ की जनता ने लोकसभा में भेजा था. इस बार नेताजी मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेन्द्र मैदान में है. यहां की जनता इस बार उनके भतीजे को भी संसद भेजेगी.

वैसे बसपा के उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भी कमतर नहीं है. उनका भी जनाधार है. दलित व मुस्लिम वोटरों पर उनकी पकड़ है. इसलिये बसपा के लोग भी जीत को लेकर आश्वस्त हैं.

बसपा प्रत्याशी शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली ने किया नामांकन

वैसे इस सीट पर हर चुनाव में दलित, यादव और मुसलमान  ही हार जीत का फैसला करते रहे हैं. इनमें से जो भी प्रत्याशी दो जातियों का साध ले उसकी जीत तय मानी जाती रही. आजमगढ़ लोकसभा सीट के पिछड़े आंकड़ों पर नजर डाले तो 1962 से अब तक 14 आम चुनाव व दो उप चुनाव हुए हैं. इनमे से 12 बार यादव विरादरी के लोग ही यहां से संसद में पहुंचे हैं. कई बार तो यादव ने ही यादव को हराया.  इस सीट से तीन बार मुस्लिम भी सांसद बने. केवल एक बार अगड़ी जाति से  कांग्रेस पार्टी के संतोष सिंह ही इस सीट से सांसद बने है. इस संसदीय सीट पर लहर का भी कभी कोई असर नही रहा.

इस बार भी मुकाबला तीन प्रमुख दलों के दो यादव तथा एक मुस्लिम के बीच है. इसलिये यह कहना मुश्किल है कि ऊंट किस करवट बैठेगा. यह तो मतगणना के दिन 26 जून को पता चलेगा. इसका कुछ अनुमान मतदान के दिन 23 जून को लग जाएगा.

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