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खास खबरचर्चा मेंव्यापार

भूखे मरे व्यापारी सुने न कोई अधिकारी

राय अभिषेक

 

सरकार ने योजना बनाते समय कोई सुझाव नहीं 

हम सबको 4 से 5 घंटे की छूट चाहिए

छूट दो शिफ्टो में भी दे सकते है  

बिजली बिल, टैक्स और ईएमआई में मिले राहत

रायबरेली, नवसत्ता: कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए की गयी बंदी में हमारे समाज का सबसे बड़ा कार्मिक वर्ग जिसे व्यापारी वर्ग कहते है की आजीविका को लगभग बंद कर दिया गया है| न तो दुकाने खुलेगी और न ही लोग सड़क पर खरीदारी करने आएंगे और न ही संक्रमण तेज़ रफ़्तार से फैलेगा के सिद्धांत ने एक बहुत बड़े वर्ग को भुखमरी के कगार पर खड़ा कर दिया है| निवासियों की सुविधा के लिए अतिअवाश्यक वस्तुओ की एक सूची तैयार की गई और उस पैमाने में आने वाली वस्तुओ की दुकानों को सशर्त खुले की इजाज़त दी गयी| परन्तु क्या वास्तव में वही राशन, गल्ला, फल सभी और किसानी के सामान ही अति आवश्यक वर्ग में आते है तो फिर बाकी दुकानों, गुमटियों रेहड़ियों आदि की क्या जरूरत क्यूंकि एक आम इंसान को अपने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में सिर्फ खाने के सामान की ही जरूरत नहीं होती इसके इलावा और भी वस्तुए है जिसकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में जरूरते है| व्यापारी इस समय दर दर भटक रहा और रोज़ एक ही आस में उठता है कि शायद उसकी बात सरकार के कान तक पहुच जाये और उन्हें भी अपने प्रतिष्ठान को खोलने की सशर्त इजाज़त मिल जाये जिससे की उनकी भी दैनिक जिम्मेदारियों का निर्वहन हो सके पर सरकार है की बिना कान में नगाड़े बजाये जागने को तैयार नहीं है|

व्यापारियों की स्थिति समझने के लिए नवसत्ता ने आज जिले के व्यापर मंडल के अध्यक्षों और व्यापारियों से बात की तो उनका दर्द उनकी बातों में झलक पड़ा| यह पूछने पर कि अति आवश्यक वस्तुओ के वर्गीकरण में क्या शासन और प्रशासन ने किसी भी व्यापर मंडल की सलाह ली थी? और क्या समस्याए है?

क्या कहना है व्यापारी नेताओं का:

अतुल गुप्ता ने नवसत्ता को बताया कि दैनिक जीवन में काफी वस्तुए आवश्यक वस्तुओ की श्रेणी में आती है तो उनको भी शामिल करनी चाहिए| प्रशासन ने अपने आप ही सूची बना ली| गर्मी का मौसम है जिसमे बिजली के सामान की जरूरत नहीं है क्या या ख़राब होने पर वो बनवाने की जरूरत नहीं है क्या? इलेक्ट्रीशियन, प्लम्बर आदि के बिना घर में काम नहीं चलता| अभी उप मुख्यमंत्री को हमने ज्ञापन भी दिया की बाकि बहुत सी जरूरी चीज़े है, काम है, जिनको हफ्ते में कम से कम 3-3 दिन 3-4 घंटे काम करने की इजाज़त मिले जिससे की काम करने वालो और घरो दोनों को सुविधा हो| सरकार को हमने ये भी कहा था की आप सभी व्यापर मंडल के साथ बैठ कर वस्तुओ की सूची तैयार करे और सशर्त व्यापर करने की इजाज़त दे लेकिन सरकार कभी हम लोगो की बाते नहीं सुनती जोकि जमीन पर काम करते है। बस एक हाल में कुछ लोग बैठ कर योजना बनाते है और हम पर लागू कर देते है जिससे दिक्कत सभी को होती है| किसी भी श्रेणी का व्यवसायी हो पर उसे अपने मासिक खर्चे जैसे किराया, टैक्स, ईएमआई, बच्चों की फीस आदि तो वहां करने ही होंगे| आमदनी है नहीं और व्यवसायी रो रहा है कि कैसे खर्चे उठाये| कर्जे के बोझ के तले हम व्यवसायी दबते जा रहे है, हमें किसी भी प्रकार की राहत नहीं है न ही कोई मदद|

पंकज मुरारका ने कहा कि सरकार ने आवश्यक वस्तुओ के वर्गीकरण में निर्णय ऊपर से शासन ने ही लिया है, हमसे किसी भी प्रकार का कोई भी सुझाव नहीं लिया गया है|मेरे व्यापारी साथियों को बहुत ज्यादा समस्याए हो रही है अब मान लीजिये एक मोची है या पंचर जोड़ने वाला है, आखिर है तो वो व्यापारी ही, रोज़ कमा रहा है रोज़ खा रहा है, ऐसे लोगो की तो कहीं सुनवाई है ही नहीं| ऐसे व्यवसाइयो के लिए जो रोज़ कमा खा रहे है, के लिए सरकार को कुछ राहत पैकेज देना चाहिए| जिनको जरूरत है उन तक न तो सरकार पहुच पा रही न ही उसकी व्यवस्थाये| सरकार को चाहिए की व्यवसाइयो का पंजीकरण होना चाहिए चाहे वो बड़ा व्यवसायी हो चाहे सड़क के किनारे बैठ कर अपनी रोज़ी रोटी कमाने वाला छोटा व्यवसायी और आपदा के समय जब कभी भी बंदी हो तो हम व्यापारियों के लिए भी राहत पैकेज होना चाहिए जैसे श्रम विभाग में पंजीकृत लोगो के लिए होता है या किसानो के लिए है| सरकार को चाहिए कि सब संगठनो के साथ विचार विमर्श करके एक कायदे की गाइडलाइन हमारे लिए भी बनानी चाहिए और हमरे बारे में भी सोचना चाहिए की हमारा भी घर का खर्चा चल सके और हम भूखे न मरे|

बसंत सिंह बग्गा ने नवसत्ता के साथ अपनी बात साझा करते हुए कहा कि आवश्यक वस्तुओ के मानक तय करने का काम प्रशासन ने ही किया था| पिछले साल के लॉकडाउन के समय जब दुकाने नहीं खुलती थी तो सामान गाडियों में लाद कर मोहल्ले में जा कर बेचा जाता था| इस बार आवश्यक वस्तुओ की सूची तैयार कर दी गई| क्या कोरोना इस आवश्यक वस्तुओ के इलावा बाकी सभी वस्तुओ के बिक्री और खरीद से ही फ़ैल रहा है क्या? अगर अभी किसी गाडी का टायर पंचर हो जाए तो आदमी कहाँ जायेगा या ये आवश्यक नहीं है| व्यापारी इस समय भुखमरी की कगार पर है और वास्तव में आत्मदाह करने को तैयार है| हम 30 मई के इंतज़ार में है किसरकार लॉकडाउन को लेकर क्या निर्णय लेती है| व्यापारी मजबूर है और अपनी मजबूरी किसी को नहीं बता सकता और किसी के सामने रो नहीं सकते है| हमने मुख्यमत्री से मांग की थी की हमें 5 घंटे की छूट दी जाये| व्यापारी बैंक और महाजन के कर्जे के तले दबा रहता है, व्यापर चलता रहता है तो हर तरफ से पैसा और सामान घूमता रहता है| अगर हमें छूट नहीं मिलती है तो हम सड़कों पर उतरने को तैयार है चाहे हमें जेल में ठूस दिया जाये या फिर आत्मदाह ही करनी पड़े| हमें भी जीने का हक है और अगर हम व्यापार नहीं करेंगे तो हम कमाएंगे क्या और अपने व्यावसायिक और घरेलू खर्चे कैसे चलाएंगे|

क्या कहते है जिले के व्यवसायी

रायबरेली के इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटर सम्बंधित सामान के व्यापारी अनूप श्रीवास्तव का कहना है की सरकार ने लॉक डाउन लगा कर बुद्धिमानी का परिचय दिया है जिसकी वजह से संक्रमण की रफ़्तार में कमी तो आई है| एक महीने की बंदी में मेरी जो महीने की कमाई थी सिर्फ उस पर फर्क पड़ा है लेकिन अगर ये समय और बढ़ता है तो समस्याएं शुरू होंगी| इसका ये मतलब बिलकुल नहीं की मेरे घर या व्यापर पर फर्क नहीं पडा है| मेरे पास घर में जो भी सामान है वो यदि किसी मित्र या जानकार को चाहिए होता है तो मैं उसे दे देता हूँ जिससे कि कुछ आमदनी होती है लेकिन बाकी खर्चे जस के तस खड़े है जैसे मेरी दुकान का किराया, लड़को की तनख्वाह, लोन की ईएमआई आदि तो समय पर देने ही है जोकि थोड़ी बहुत बचत के पैसे से वहां किये जा रहे है| मेरे इलेक्ट्रॉनिक सामान जो खुली अवस्था में दुकान में पड़े है उसके खराब होने का तनाव बना रहता है| दूसरी तरफ सही मायने में घर के खर्च बढ़ गए है क्यूँकि इस तालाबंदी में जो भी सामन बाज़ार में उपलब्ध है उसके दाम बढ़ गए है जिस पर प्रशासन नियंत्रण नहीं कर पा रहा है| यदि हमको 4-5 घंटे की दुकानदारी का समय मिल जाए तो हमारी भी आर्थिक रूप से सहायता होगी|

रेडीमेड कपड़ो के विक्रेता प्रकाश हसानी का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से बहुत ज्यादा समस्याए हो गयी है| एक तो आमदनी बिलकुल भी बंद हो गयी पर सभी तरह के व्यावसायिक और पारिवारिक खर्चे वैसे ही बने हुए है जिसको किसी भी तरह से झेलना हमारी मजबूरी है| बिजली का बिल, दुकान में काम करने वालो की तनख्वाह, लोन की ईएमआई, बच्चो की फीस आदि सब तो समय से देने ही है क्यूंकि हमें भी बाज़ार में रहना है और घर के खर्चो को रोक नहीं सकते| जो सामान मिल रहा है उसके दामो पर कोई नियंत्रण नहीं है| दुकान गोदाम में रखे कपड़ो के खराब होने की आशंका हमेशा बनी रहती| यदि प्रशासन की तरफ से हमें कम से कम 5 घंटे की भी छूट मिल जाती है तो हम लोगो को भी थोड़ी राहत मिलेगी|

बेकरी के व्यवसायी परेश कृपलानी ने बोला कि एक बात हम व्यापारियों को माननी पड़ेगी कि इस परिस्थिति में हमने भी ज्यादा धंधा करने के चक्कर में प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है और अपने ग्राहकों को भी बिना मास्क आदि के सामान दिया है जबकि निर्णय ये हुआ था की मास्क नहीं तो सामान नहीं| दूसरी तरफ ग्राहक भी सावधानी नहीं बरत रहे है जबकि जिम्मेदारी दोनों पक्षों की है| अगर हम सड़क पर देखे तो पहली लहर की तरह सख्ती बिलकुल भी नहीं है लोग घूम रहे है जिससे संक्रमण कम नहीं हो रहा है| व्यापर बंद होने की वजह से टैक्स, लोन की ईएमआई बिजली का बिल आदि खर्चो को तो हमें उठाना ही पड़ रहा है| दो घंटे की दुकानदारी में हम कितना उत्पादन करे कितनी बिक्री करे ये समझ ही नहीं आता है| दिल रखने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है वाली लाइन सही है कि हम अपने दिल को संतुष्टि दिए हुए कि हमें दो घंटे दुकान खोलना है जबकि वास्तविकता ये है की उससे कुछ भी नहीं हो रहा यहाँ तक की रोज़ के खर्चे नहीं निकल पा रहे| अगर थोड़ी सी भी देरी हुई तो प्रशासन आकर चालान करने में संकोच नहीं करता| मेरा कहना ये है कि जिला प्रशासन हमें 2-3 घंटे सुबह और फिर 2-3 घंटे शाम को दुकानदारी करने की छूट दे जिससे कि हमारे खर्चे भर की किसी हद तक कमाई हो सके और इस तरीके से भीड़ पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा, लोग अपने सुविधानुसार सुबह या शाम को जरूरी सामान की खरीदारी करने के लिए निकल सकेंगे| बाकी थोड़ी सख्ती प्रशासन और करे और थोड़ी जिम्मेदारी हम दुकानदारो और ग्राहकों को भी समझनी पड़ेगी की ज्यादा सामान बेचने और खरीदने के चक्कर में ज़िन्दगी से खिलवाड़ न करे|

संजय त्रिपाठी जिनका फोटोकॉपी, स्टाम्प और कपड़ो का व्यवसाय है, का कहना है कि हम खर्चे कैसे चलाये ये समझ नहीं आ रहा है और व्यापर बंद होने की वजह से मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है क्यूंकि हम पहले सारा दिन अपने व्यावसायिक कार्यो में लगे रहते थे और अब हम घर में बंद है| आर्थिक स्तर पर किसी भी प्रकार के खर्चे में कोई भी कमी नहीं है फिर चाहे वो ईएमआई हो, बिजली का बिल, नगरपालिका की दुकानकान का किराया, टैक्स आदि हो या निजी घरेलू खर्चे हो| आप ये समझ लीजिये की यदि हम एक महीने का किराया नहीं दे पाते है तो अगले महीने हमें पिछले महीने के किराये के साथ नगरपालिका को 10% का ब्याज भी देना पड़ता है| लॉकडाउन कितने दिन रहेगा ये पता नहीं। हम जो भी खा पी रहे है वो सिर्फ और सिर्फ बचत के पैसे से खा रहे है जोकि ख़त्म होने की कगार पर है| हर चीज़ का दाम बढ़ गया है जोकि हमें वहन करना ही पड़ रहा है| सरकार को चाहिए कि पूरे लॉकडाउन के समय के सभी तरह के बिल टैक्स आदि माफ़ करे, नगरपालिका को किराया माफ़ करना चाहिए| प्रशासन को चाहिए की हमें कुछ समय दे कि हमें भी दुकान खोलने की इजाज़त दे ताकि हमारी भी आजीविका चलाने भर की कमाई हो सके|

व्यावसायिक गैस के सप्लायर जय शंकर प्रसाद का कहना है कि इस समय गैस की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो गई है| हमारा व्यवसाय तो होटल ढाबों आदि पर निर्भर करता है जब उनका व्यापर नहीं होगा तो वो हमसे गैस क्यों लेंगे| लॉकडाउन की वजह से सिर्फ एक दुकान या व्यवसाय पर फर्क नहीं पडा बल्कि पूरी श्रंखला पर पड़ा है| मेरी आमदनी शून्य हो गई है, खेती है इसलिए खाने की समस्या नहीं है परन्तु ऑफिस गोदाम का खर्चा, गाडी की ईएमआई, बिजली का बिल आदि तो वैसे ही सहने होंगे| मेरे लिए सबसे बड़ी समस्या है मेरे साथ काम करने वाले सहयोगी| आप विश्वास नहीं करेंगे कि मेरे व्यवसाय में जो लोग डिलीवरी करते थे गाड़ी चलाते थे, वो आज मंनरेगा में फावड़ा चला रहे है| उनकी आर्थिक तंगी में मुझसे जो बन पड़ता है सहयोग करता हूँ पर बचत कब तक चलेगी, व्यवसायी पैसा घर में नहीं रखता है उसका ज्यादातर पैसा बाज़ार में फंसा हुआ है रोज़ की वसूली से ही सारे खर्चे और धंधे चलते रहते है| यदि होटल ढाबों को खुलने की इजाज़त मिलती है तो हम भी कमा खा लेंगे और हमारे स्टाफ को भी दर दर नहीं भटकना पड़ेगा|

ऊंचाहार के जनरल मर्चेंट के व्यवसायी अरविन्द कुमार गुप्ता ने बताया की हमारी दुकान सुबह से ११ बजे तक खुलती है जिसमे बहुत कम मात्रा में बिक्री हो पाती है| न चाहते हुए भी दुकान में काम करने वाले दो लडको को हमने घर बिठा दिया है क्यूंकि अपने ही खर्चे नहीं निकल रहे है तो उन्हें तनख्वाह कहाँ से देंगे| जब कभी भी स्थितियां सामान्य होंगी तो उन्हें वापस बुलाया जायेगा| रही बात घर के खर्चो की तो वो तो कम होंगे नहीं, वो तो बढ़ेंगे ही और हमें किसी न किसी तरह से घर खर्च के लिए इंतज़ाम करना ही पड़ेगा| मैं कुछ दिन पहले बीमार हो गया था उसका इलाज़ अभी भी चल रहा है तो वो एक अलग खर्चा लगा रहता है उसे भी कही न कही से इंतज़ाम करके वहां करना पड़ता है| अगर दुकान दिन भर खुले तो धीरे धीरे ही सही सब कुछ सामान्य हो जायेगा|

 

रायबरेली में ब्यूटी पार्लर चलाने वाली गृहणी दीपिका श्रीवास्तव का कहना है की पहली लहर के समय पार्लर बंद होने के बावजूद हम घर पर भी काम कर लेते थे क्यूंकि उस समय इतना ख़तरा नहीं था और जो भी आमदनी होती थी उससे घर खर्च चलाने में हम भी मदद कर पाते थे| परन्तु इस बार खतरे को देखते हुए हमारा घर से भी चलने वाला काम बंद हो गया है बस जान पहचान के 2-4 ग्राहक कभी कभी आ जाते है| बाकि सभी ग्राहकों को घर पर आने की मनाही हो गई है| स्थिति ये है कि हमारी जो भी आमदनी होती थी वो बिलकुल भी बंद है जिसका सीधा असर हमारे घर के खर्चे पर पडा है| बाज़ार में सामान महंगा है लेकिन जरूरत भर का तो सामान खरीदना ही पड़ेगा, बच्चों की फीस भरनी ही पड़ेगी| बचत से ही किसी तरह से हमारा खर्चा चल रहा है जोकि धीरे धीरे ख़त्म हो रहा है| हमारे पास जो भी सामान है उसके ख़राब होने का डर तो नहीं है पर सहालक को देखते हुए हमने काफी सामान मंगवा लिया था, यदि ढील मिली होती तो हम उसे इस्तेमाल भी कर लेते और आमदनी भी होती रहती| मैं यही मनाती हूँ की ये समय जल्द खत्म हो या थोड़ी सी काम करने के लिए हमें भी छूट मिले जिससे कि हमारा भी काम बना रहे|

 

 

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