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बेबस मजदूर धूल फांकने को मजबूर

लखनऊ-सड़कों पर हज़ारों किलोमीटर धूल फांकता पैदल जाता मज़दूर बेबस है।उसके लिए आई हज़ार बसें आखिरकार वापस चली गईं।चार दिन से ठिठका मज़दूर शायद आज रात से ही फिर चल पड़े।इस बस की लड़ाई में मज़दूर की भले हार हुई हो लेकिन सियासतदानों को एक बार फिर शानदार जीत हासिल हुई है।मज़दूरों के लिए आई बसें सियासतदानों को राजनीति की शाही सवारी कराने के बाद लौट गई हैं।बस की सियासी लड़ाई में प्रियंका को मजबूत विपक्षी,यूपी सरकार को नियम कायदे का पक्का और मायावती को खुद के वजूद में होने का फायदा देकर ग़रीबों को मुँह चिढ़ाती यह बसें वापस चली गईं।यानि मज़दूर जब बसें नहीं आई थीं तब भी बेबस था और जब चली गईं तब भी बेबस है। आइये आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं इस राजनीतिक बस की पूरी कहानी, इसकी शुरुआत होती है औरैया में दुर्घटनाग्रस्त होकर 28 मज़दूरों की मौत से,उसी दिन 16 मई को प्रियंका ने ट्विटर पर एक खत शेयर करते हुए लिखा, आज यूपी सरकार को खत लिखकर कांग्रेस की तरफ से 1000 बसें चलाने की अनुमति मांगी है। रोज होती दुर्घटनाएं, असहनीय पीड़ा, अमानवीय हालात। हमारे कामगार भाई-बहन और उनके बच्चे संकट के दौर से गुजर रहे हैं। मैंने सरकार से पहले भी अपील की है कि कृपया बसें चलाकर पैदल चल रहे मजदूरों को घर पहुंचाएं। इसके अगले ही दिन यानी 18 मई को यूपी सरकार ने प्रियंका की मांग मान ली। अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने प्रियंका के निजी सचिव संदीप सिंह को जवाब देते हुए लिखा, ‘प्रवासी मजदूरों के संदर्भ में आपके प्रस्ताव को स्वीकार किया जाता है। अविलंब एक हजार बसों की सूची और ड्रावर-कंडक्टर का नाम सहित बाकी डीटेल उपलब्ध कराने का कष्ट करें।’प्रियंका ने इसके जवाब में लिखा, ‘हमें यूपी में पैदल चलते हुए हजारों भाई-बहनों की मदद करने के लिए, कांग्रेस के खर्चे पर 1000 बसों को चलवाने की इजाजत देने के लिए आपको धन्यवाद। आपको यूपी कांग्रेस की तरफ से मैं आश्वस्त करती हूं कि हम सकारात्मक भाव से महामारी और उसके चलते लॉकडाउन की वजह से पीड़ित यूपी के अपने भाई-बहनों के साथ इस संकट का सामना करने के लिए खड़े रहेंगे। धन्यवाद ज्ञापन में सियासी जुमले थे लेहाज़ा यूपी सरकार का माथा ठनका और उसने अपनी मंजूरी को अमली जामा पहनाने से पहले काग़ज़ी खेल की बिसात बीच गई।यूपी के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने 18 मई को ही देर रात प्रियंका गांधी के निजी सचिव को खत लिखा। इस खत में उन्होंने प्रियंका के निजी सचिव से 1000 बसें लखनऊ भेजने को कहा। इसके जवाब में प्रियंका के निजी सचिव संदीप सिंह ने लिखा, ‘गाजीपुर बॉर्डर गाजियाबाद से 500 बसें और नोएडा बॉर्डर से 500 बसें चलाने की इजाजत मांगी गई थी। आपने 1000 बसों की लिस्ट मांगी, जो उपलब्ध करा दी गई। देर रात 11 बजकर 40 मिनट पर आपका एक खत मिला, जिसमें लखनऊ में बसें हैंडओवर करने को कहा गया है। 1 हजार बसों को लखनऊ भेजना न सिर्फ समय और संसाधनों की बर्बादी है बल्कि हद दर्जे की अमानवीयता है। माफ कीजिएगा मगर आपकी सरकार की यह मांग पूरी तरह राजनीति से प्रेरित लगती है। ऐसा लगता नहीं कि आपकी सरकार विपदा के मारे यूपी के मजदूर भाई-बहनों की मदद करना चाहती है। इसी बीच सियासी आंच में हाथ सेकने मायावती भी कूद पड़ीं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट किया, ‘बीएसपी का यह कहना है कि यदि कांग्रेस पार्टी के पास वास्तव में 1,000 बसें हैं तो उन्हें लखनऊ भेजने में कतई भी देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यहां भी प्रवासी लोग भारी संख्या में अपने घर जाने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उधर मज़दूर वैसे ही अवाक था जैसे मोहल्लों में बच्चों के बीच कंचे खेलने की लड़ाई बड़ों तक पहुंच कर उनके अहँकार के टकराव में बदल जाती है।19 मई को मायावती के इस ट्वीट ने आग में घी का काम किया और 20 मई को बसों की उपलब्ध कराई गई सूची में गड़बड़ी के नाम पर मुकदमों की शुरुआत और काँग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की गिरफ्तारी के बीच शाम होते होते कांग्रेस की तरफ से राजस्थान बॉर्डर पर खड़ी बसें वापस हो गई।मज़दूर फिर आवाक उसी बच्चे की तरह जो कंचों की लड़ाई में बड़ों के जेल चले जाने के बाद इसलिए रोता है कि कल से कंचे खरीदने को पैसे कौन देगा।

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