Navsatta
राजनीति

इस चुनाव में बदले-बदले नजर आ रहे ‘सरकार’

लखनऊ -2019 का लोकसभा चुनाव यूपी में 2014 के चुनावों से काफी अलग होने वाला है। 2014 के चुनाव में एक दूसरे के धुर विरोधी रहे एसपी और बीएसपी इस बार साथ हैं। इसी तरह कई ऐसे नेता भी हैं, जो कभी विरोधी दलों पर बयानों के तीर चलाते थे लेकिन 2019 में वे उन्हीं दलों के लिए वोट मांगते दिखाई देंगे। आइए जानते हैं यूपी की सियासत में ऐसे कौन-कौन से बड़े नेता हैं, जो 2014 में किसी और दल में थे और 2019 में किसी और दल से सियासी तीर चला रहे हैं। रीता बहुगुणा: अटल के खिलाफ लड़ीं अब बीजेपी के साथ खड़ी हैं 2014 के लोकसभा चुनावों में रीता बहुगुणा जोशी गृहमंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। राजधानी लखनऊ से वह कांग्रेस की उम्मीदवार थीं। हालांकि चुनाव में रीता बहुगुणा जोशी करीब पौने तीन लाख वोटों से हार गईं। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले रीता ने बीजेपी का दामन थाम लिया और विधायक बनीं। मौजूदा समय में वह कैबिनेट मंत्री हैं। 2019 में अब रीता बीजेपी के लिए वोट मांगती नजर आएंगी। नसीमुद्दीन: बहनजी के खास थे, अब कांग्रेस के बीएसपी सुप्रीमो मायावती के करीबी रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी इस चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट मांगते नजर आएंगे। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी के लिए उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। मौजूदा समय में जिस तरह से कांग्रेस और बीएसपी के संबंध हैं, कांग्रेस नसीमुद्दीन को बीएसपी के खिलाफ ट्रंप कार्ड के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। नसीमुद्दीन का बांदा और उसके आसपास के जिलों में अच्छा प्रभाव है। स्वामी प्रसाद मौर्य: कभी जिताते थे, अब बीएसपी को हराएंगे योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य कभी मायावती के करीबियों में से एक थे। 2017 में स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब बीएसपी छोड़ी, तो वह सदन में विरोधी दल के नेता थे। बीएसपी सरकार में भी वह कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। लेकिन 2019 के चुनावों में वह बीजेपी के लिए वोट मांगते नजर आएंगे। स्वामी प्रसाद मौर्य 2009 में कुशीनगर से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। इस चुनाव में वह भले ही हार गए थे लेकिन बीजेपी को तीसरे स्थान पर धकेलने में उनकी अहम भूमिका थी। अब उसी बीजेपी के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य वोट मांगेंगे। बृजेश पाठक: बीएसपी छोड़ बीजेपी के साथ 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले बृजेश पाठक ने बीएसपी का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थामा। 2014 के चुनावों में वह बीएसपी के उन्नाव से उम्मीदवार थे। इससे पहले वो 2004 में उन्नाव से ही बीएसपी के टिकट पर पहली बार सांसद बने थे। अब वह बीजेपी के साथ हैं। उन्नाव और हरदोई लोकसभा सीटों पर उनका खासा प्रभाव है। सावित्री बाई फुले: 2014 में कमल खिलाया, अब ‘हाथ’ के साथ बहराइच से लोकसभा सांसद सावित्री बाई फुले इस बार बीजेपी के खिलाफ वोट मांगती नजर आएंगी। 2014 में बीजेपी के टिकट से बहराइच की सांसद बनीं सावित्री प्रदेश में बड़ा दलित चेहरा हैं। अब वह कांग्रेस के साथ है। कांग्रेस ने उन्हें बहराइच से टिकट दिया है। सावित्री बीजेपी में रहते हुए भी पार्टी को दलित विरोधी बता चुकी हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए 2019 में वह बड़ी चुनौती हो सकती हैं। यशवंत सिंह: समाजवादी थे, अब बीजेपी के लिए मांगेंगे वोट पूर्व मंत्री यशवंत सिंह 2014 में मुलायम सिंह के लिए आजमगढ़ में प्रचार कर रहे थे लेकिन सबको झटका देते हुए यशवंत ने 2017 में सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए एमएलसी की सीट छोड़ दी। बाद में बीजेपी ने उन्हें एमएलसी बना दिया। इस बार यशवंत सिंह बीजेपी के लिए आजमगढ़ में मेहनत कर रहे हैं। इसके साथ ही वे पूर्वांचल के कई जिलों में बीजेपी के लिए वोट मांगेंगे। नरेश अग्रवाल: घाट-घाट का पानी पिया नरेश अग्रवाल 2014 में समाजवादी पार्टी में थे। पूरे दम के साथ एसपी के लिए प्रचार कर रहे थे। इस बार बीजेपी के लिए वोट मांगेंगे। नरेश अग्रवाल के पुत्र नितिन अग्रवाल अभी भी एसपी से विधायक हैं। नरेश ने शायद ही कोई ऐसा दल हो जिसे छोड़ा न हो कांग्रेस, लोकतांत्रिक कांग्रेस, एसपी, बीएसपी, फिर एसपी और अब बीजेपी में हैं। अशोक वाजपेयी: एसपी से किनारा, बीजेपी से गए राज्यसभा अशोक वाजपेयी पुराने समाजवादी रहे हैं। 2014 में लखनऊ से टिकट भी एसपी से फाइनल हो गया था। बाद में उनका टिकट काटकर अभिषेक मिश्र को दे दिया गया था। अशोक वाजपेयी को एसपी ने एसएलसी बनाया था। बाद में वह इस्तीफा देकर बीजेपी में चले गए और बतौर इनाम बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। इस चुनाव में वह बीजेपी के लिए वोट मांग रहे हैं।

संबंधित पोस्ट

मणिपुर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गोविंद दास कोंटौजम भाजपा में शामिल

navsatta

योगी को 50वें जन्मदिन पर पीएम सहित कई नेताओं ने दी बधाई

navsatta

मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण को लेकर मायावती का तंज, चुनावी राजनीतिक स्वार्थ के लिए लिया गया फैसला

navsatta

Leave a Comment