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पत्रकार अपहरण मामला : आनन-फानन दाखिल की चार्जशीट, जांच के आदेश

सूबे की कानून व्यवस्था नियंत्रित करते हुए नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने की ज़िम्मेदारी पुलिस के कंधों पर होती है। सुरक्षा व्यवस्था के मद में सरकार पुलिस विभाग के ऊपर हज़ारों करोड़ का बजट खर्च करती है। पिछले दिनों वर्दी धुलाई भत्ता, साइकिल भत्ता इत्यादि में बढ़ोत्तरी हुई है। लेकिंन अगर बात करें पुलिसिया कार्यशैली की तो यह आज भी उसी पुराने ढर्रे पर चल रही है। रस्सी को साँप और साँप को रस्सी बनाना पुलिस के बाएं हाथ का खेल है। पुलिसिया कलाबाज़ी का एक और नमूना सामने आया है जहां वादी का बयान लिये बगैर विवेचक ने संगीन मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी है।

आखिर कौन है विवेचक : एक प्रश्न और विचारणीय है, विवेचक है कौन? पीड़ित के मोबाइल पर पुलिस विभाग से जो मैसेज में आ रहे हैं उनमें अशोक कुमार सिंह को विवेचक बताया गया है। पीड़ित को दी गयी एफआईआर की कॉपी में बतौर विवेचक संजय कुमार सिंह का नाम दर्ज है। संजय कुमार सिंह खुद घटनास्थल जाते नहीं। नक्शा नजरी बनाने किसी दूसरे दरोगा को भेज देते हैं और दूसरा दरोगा, पत्रकार की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किसी तीसरे के हाथ सौंप कर भाग जाता है। यह क्या तमाशा है, इस तरीके की धींगा मस्ती चल रही है।

आखिर विवेचक है कौन? विवेचक ने पीड़ित द्वारा दिए तथ्यों को दरकिनार कर एकतरफा निष्कर्ष निकालते हुए आरोपितों का साथ दिया : निष्पक्ष न्याय हासिल करने के लिए पीड़ित ने शपथ पत्र की प्रतिलिपि व आवश्यक दस्तावेज मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी, सीएमओ, पुलिस अधीक्षक को पंजीकृत डाक से भेजा था जिसकी जांच कानून की परिधि में चल रही है। उच्चाधिकारियों के समुचित निर्देश की प्रतीक्षा किये बगैर जल्दबाज़ी में आरोपपत्र दाखिल करने से विवेचक की कार्यशैली व निष्ठा पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग गया है। पीड़ित ने 5 पृष्ठीय शपथ पत्र विवेचक के साथ ही कोतवाल और आला अधिकारियों को दिए थे उनकी कार्यप्रणाली अभी विधिवत नियम के दायरे में चल रही है। लेकिन विवेचक ने आनन-फानन में अपनी रिपोर्ट लगा दी है।

शपथ पत्र में पीड़ित ने अपने साथ हुई घटना का बिंदुवार वर्णन करते हुए आरोपितों का लाई डिटेक्टर टेस्ट कराने की मांग उठाई थी। इसके साथ ही लूटा गया सामान, असलहा लगाकर ज़बरदस्ती लिखाई गयी तहरीर, अपहरण में प्रयुक्त कार की बरामदगी की कोई कोशिश विवेचक ने नहीं की। इससे विवेचक की आरोपितों से मिलीभगत साफ साबित हो जाती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार निवेशक अशोक कुमार सिंह ने वादी के बयान ही नहीं लिए नाहीं हस्ताक्षर कराए, बल्कि आनन-फानन चार्ज शीट लगाकर धाराओं को छुपा दिया है। मात्र एक सप्ताह में आरोप पत्र दाखिल करके विवेचक ने हल्की धाराएं लगाई हैं। वहीं लूटे गए सामानों की बरामदगी ना करवा करके आनन-फानन में चार्ज शीट तैयार कर दिया। आनन फानन चार्जशीट दाखिल करके आरोपितों को पहुंचाया अनुचित लाभ : सामान्य मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने के बाद दो-तीन महीने तक विवेचक चार्जशीट दाखिल नहीं करता और विवेचना एक इंच आगे नहीं सरकती है। लेकिन मामला स्वहित का हो तो विवेचक की बांछें खिल जाती है और वह सारे नियम कानून ताक पर रख देता है। नवसत्ता के विधि सलाहकार का कहना है कि अगर यह सारे लोग एकमत होकर निष्पक्ष न्यायत नहीं करते हैं तो अदालत के जरिए वह सब धाराएं और सामान की बरामदगी कराई जाएगी। विधि सलाहकार ने आगे कहा कि जो जांचें हैं, विधि प्रक्रियाएं हैं उनमें 90 दिनों का समय दिया जाता है ताकि कोई त्रुटि ना हो। 1 सप्ताह में चार्जशीट लगा दी गयी और वादी का कोई बयान नहीं लिया नाहीं दस्तखत लिया है। तमाम खामियां हैं जो नियम के दायरे में आती नहीं हैं।

एक तरफ उचित न्याय प्राप्ति के लिए उच्चाधिकारियों को शपथ पत्र दिया गया है, जांच प्रक्रिया के पत्र अभी निर्गत भी नहीं किए गए हैं, इसका एक्नॉलेजमेंट प्रार्थी को अभी प्राप्त नहीं हुआ है वहीं दूसरी तरफ चार्जशीट दाखिल कर दी गयी। एक सप्ताह में विवेचक ने इस मामले में चार्जशीट लगाई, क्या थाने में इससे अहम मुद्दा दूसरा कोई नहीं था? कई ऐसे मामले होंगे जिनकी विवेचना चार- चार महीने से चल रही होगी और इस मामले की जांच 1 सप्ताह में पूरी कर दी। घायल पत्रकार को एफआईआर दर्ज कराने के लिए घंटों कराया इंतज़ार, पुलिस अधीक्षक के हस्तक्षेप से दर्ज हुई: सरकार लाख दावा करे कि थाने पहुंचने वाले प्रत्येक पीड़ित की एफआईआर दर्ज होती है लेकिन यह सच्चाई से परे है।

एफआईआर न दर्ज करना पड़े इसके लिए पुलिस हर संभव कोशिश करती है। ज़रूरत पड़ने पर पीड़ितों को धमकाने और क्रास एफआईआर का भय तक दिखाया जाता है।अब पुलिस का कमाल देखिये। पीड़ित अपने साथ हुई घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने कोतवाली पहुंचा तो उसे एफआईआर दर्ज करने व मेडिकल व प्राथमिक उपचार कराने की बजाय घंटों क

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