संवाददाता
नई दिल्ली,नवसत्ताः कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने दिल्ली हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश के आवास से भारी मात्रा में नकदी पाए जाने का मामला आज राज्यसभा में उठाया। उन्होंने न्यायिक जवाबदेही पर जोर देते हुए सभापति जगदीप धनखड़ से इस विषय पर टिप्पणी करने का अनुरोध किया। रमेश ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग से जुड़े नोटिस की भी याद दिलाई।
सभापति जगदीप धनखड़ ने इस मामले पर गंभीरता से प्रतिक्रिया देते हुए कहा,यदि यह किसी राजनेता, नौकरशाह या उद्योगपति के साथ होता, तो वह तुरंत निशाने पर आ जाता। इसलिए, एक पारदर्शी, जवाबदेह और प्रभावी प्रणालीगत प्रतिक्रिया आवश्यक है। मुझे विश्वास है कि इस दिशा में कदम उठाए जाएंगे।
धनखड़ ने आगे कहा,यदि इस समस्या का समाधान पहले कर लिया गया होता, तो शायद हमें इस प्रकार के मुद्दों का सामना नहीं करना पड़ता। सदन के नेता और विपक्ष के नेता से संपर्क करके मैं इस विषय पर एक संरचित चर्चा के लिए तंत्र खोजूंगा।
सभापति ने एक ऐतिहासिक विधेयक का जिक्र करते हुए कहा, उस कानून को भारतीय संसद ने अभूतपूर्व सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसे 16 राज्यों की विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किया गया और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित किया गया। यदि उस समस्या का समाधान पहले कर लिया गया होता, तो शायद हमें इस प्रकार के मुद्दों का सामना नहीं करना पड़ता।
धनखड़ ने कहा कि राज्यसभा इस मामले में विशेष रूप से सक्षम है। उन्होंने कहा, सदन के नेता सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष हैं और विपक्ष के नेता मुख्य विपक्षी दल के अध्यक्ष हैं। इन दोनों की सलाह और अन्य सदस्यों की राय उपयोगी होगी। हमें एक संरचित चर्चा करनी होगी, जो अब तक नहीं हुई है।
गौरतलब है कि दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर में आज पा्रतः आग लगने के बाद एक कमरे से करोड़ों रुपये के नकदी का अंबार मिला था। यह रकम बेनामी लग रही थी, जिसके बाद पुलिस ने इसकी सूचना उच्च अधिकारियों को दी। मामला इतना गंभीर था कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने तुरंत कॉलेजियम की बैठक बुलाई।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जस्टिस यशवंत वर्मा का तुरंत तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया। जस्टिस वर्मा अक्टूबर 2021 में इलाहाबाद हाई कोर्ट से दिल्ली हाई कोर्ट आए थे। कॉलेजियम के कुछ सदस्यों ने इस मामले में और सख्त कार्रवाई की मांग की। उनका कहना था कि सिर्फ तबादले से काम नहीं चलेगा और जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा जाना चाहिए।
न्यायपालिका की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में भ्रष्टाचार, कदाचार या जजों के खिलाफ अनियमितता के आरोपों से निपटने के लिए एक आंतरिक प्रक्रिया तैयार की थी। इसके तहत, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शिकायत मिलने पर जज से जवाब मांगते हैं। यदि जज के जवाब से संतुष्ट नहीं होते हैं, तो वे एक आंतरिक जांच समिति का गठन कर सकते हैं। इस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट जज और दो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल होते हैं।
जस्टिस यशवंत वर्मा का करियर
जस्टिस यशवंत वर्मा इलाहाबाद हाई कोर्ट से दिल्ली हाई कोर्ट आए थे और उन्हें न्यायिक गलियारों में एक प्रतिष्ठित जज के रूप में जाना जाता था। हालांकि, इस घटना ने उनकी छवि को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
न्यायपालिका की छवि पर प्रभाव
यह मामला न्यायपालिका की छवि को धूमिल करने वाला साबित हो सकता है। कई लोगों का मानना है कि ऐसे मामलों में पारदर्शिता और कड़ी कार्रवाई आवश्यक है ताकि लोगों का न्यायपालिका में विश्वास बना रहे।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब यह देखना होगा कि इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होती है और क्या जस्टिस वर्मा इस्तीफा देते हैं या आंतरिक जांच का सामना करते हैं।