रमाकांत बरनवाल
सुल्तानपुर , नवसत्ता :- सावन माह को सबसे पवित्र महीना मानने के साथ इसका पौराणिक महत्व भी है क्योंकि श्रावण मास में भगवान शिव भोलेनाथ की पूजा-आराधना का विशेष माहात्म्य है।श्रावण मास के इस माहात्म्य पर क्षेत्र के डा आशीष उर्वर ने नवसत्ता संवाददाता को अपना विचार साझा किया ……….
श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को व्रत रखा जाता है व शिव भोलेनाथ की आराधना की जाती है। इस पवित्र महीने में भक्तों द्वारा दो प्रकार के व्रत रखे जाते हैं 1- सावन सोमवार व्रत जो श्रावण मास में मात्र सोमवार को रखा जाने वाला व्रत है जिसे सावन सोमवार व्रत कहते हैं और यह दिन भगवान शिव भोलेनाथ को समर्पित होता है।
2- सोलह सोमवार व्रत जो सावन के पवित्र महीने में ही शुरुआत होता है और इसे बहुत ही अच्छा समय माना जाता है। सावन मास का सोलह सोमवार प्रथम सोमवार से प्रारंभ करते हुए लगातार सोलह सोमवारों को यह व्रत जारी रखते हैं। इस प्रक्रिया को सोलह सोमवार उपवास के नाम से जाना जाता है।
उपरोक्त कारणों से सावन सोमवार का व्रत सर्वाधिक महत्वपूर्ण है जो भगवान भोलेनाथ को सबसे प्रिय है। इस महीने में सोमवार का व्रत और सावन स्नान करने की परंपरा है। श्रावण के महीने में बेल पत्र से भगवान भोलेनाथ की पूजा करना और उन्हें जल अर्पित करना बहुत फलदायी माना जाता है।जब भक्त सोमवार को उपवास करते हैं, तो भगवान शिव उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं। सावन के महीने के दौरान, ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु हरिद्वार, देवघर, उज्जैन, नासिक सहित भारत के कई धार्मिक स्थलों पर जाते हैं।सावन के महीने में बारिश के मौसम के साथ, पूरी पृथ्वी हरियाली से ढंक जाती है। महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात में श्रावण महीने के अंतिम दिन उत्सव को नारेली पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
उन्होंने श्रावण मास व्रत और पूजा विधि के सम्बन्ध में बताया कि सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करने के साथ पूजा स्थल पर वेदी रखें व शिवलिंग पर दूध का अभिषेक करने के लिए शिव मंदिर जाएं तथा पूरी श्रद्धा के साथ महादेव के व्रत का संकल्प लें व सुबह शाम भगवान शिव से प्रार्थना करें। उन्होंने पूजा की विधि में बताया कि तिल के तेल का दीपक जलाने के साथ भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें।भगवान शिव को सुपारी, पंच अमृत, नारियल और बेल के पत्ते अर्पित करें व व्रत के दौरान सावन व्रत की कथा व स्तुति करें शाम को पूजा पूरी होने के बाद ही व्रत खोलें व सात्विक भोजन करें।बताया कि कोई भक्त सच्चे मन और पूर्ण भक्ति के साथ जब महादेव के नाम पर उपवास रखता है, वह निश्चित रूप से शिव का आशीर्वाद प्राप्त करता है।विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने और अविवाहित महिलाएं अच्छे वर के लिए सावन में शिव का व्रत भी रखती हैं।
कांवड़ यात्रा के सम्बन्ध में बताया कि इस पवित्र महीने में शिव भक्तों द्वारा कांवड़ यात्रा किया जाता है। देवभूमि उत्तराखंड में स्थित शिवनगरी हरिद्वार और गंगोत्री धाम तथा वैद्यनाथ देवघर में सैकड़ों शिव भक्त आते हैं। वे इन तीर्थ स्थानों से गंगा जल से भरी कांवड़ को अपने कंधों पर लाते हैं और बाद में वह गंगा जल भोलेनाथ को चढ़ाते है। इस यात्रा में भाग लेने वाले भक्तो को कांवरिया अथवा कांवड़िया कहा जाता है।कांवड़ पौराणिक कथा पौराणिक मान्यता के अनुसार यह कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले उन चौदह रत्नों में से एक विष भी था, जिससे ब्रह्मांड नष्ट होने का भय था। तब ब्रह्मांड की रक्षा के लिए, भगवान भोलेनाथ ने उस विष को पी लिया और उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव से भोलेनाथ का कंठ नीला पड़ गया और इसलिए उनका नाम नीलकंठ भी पड़ा।ऐसा कहा जाता है कि रावण ने कांवर में गंगाजल लेकर आया और उसने उसी गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक किया और फिर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली।
सावन माह में ओम् नमः शिवाय का जप अत्यंत कल्याणकारी बताया व प्रचलित सावन व्रत की कथा की चर्चा करते हुए कहा कि प्राचीन समय में एक अमीर आदमी था, लेकिन दुर्भाग्य से, उस व्यक्ति की कोई संतान न थी। इस बात का दुःख उन्हें हमेशा सताता था, लेकिन दोनों पति-पत्नी शिव भक्त थे। दोनों ही भगवान शिव की आराधना में सोमवार को व्रत रखने लगे। दोनों की सच्ची भक्ति को देखकर, माता पार्वती ने शिव भगवान से दोनों नि:संतान दंपति की सूनी गोद को भरने का आग्रह किया।भोलेनाथ ने इसे स्वीकार कर लिया और भोलेनाथ के आशीर्वाद से उनके घर में पुत्र का जन्म हुआ, लेकिन इस बालक के 12 वर्ष तक की अल्पायु होने की एक आकाशवाणी हुई और इस आकाशवाणी के साथ उस व्यक्ति ने अल्पायु बालक का नाम अमर रखा। उस धनी व्यक्ति ने अपने पुत्र अमर को शिक्षा के लिए काशी भेजना चाहा इसलिए उन्होंने अपने बेटे अमर के साथ अपने साले को काशी भेजने का निश्चय किया। काशी की ओर जाने वाले रास्ते में जहां भी वे विश्राम करते, ब्राह्मणों को दानस्वरूप कुछ दक्षिणा देते थे शहर की ओर पहुंचे जहां एक राजकुमारी की शादी हो रही थी।
उस राजकुमारी का दूल्हा एक आंख से वंचित था, यह बात दूल्हे के परिवार वालों ने राजा के परिवार से छिपाकर रखी थी क्योंकि उन्हें डर था कि अगर यह बात राजा को पता चला तो यह शादी नहीं हो सकेगी। इस बात से बचने के लिए दूल्हे के घर वालों ने अमर से झूठमूठ का दूल्हा बनने का आग्रह किया और वह उनके आग्रह को मना न कर सका। इस तरह, अमर ने उस राजकुमारी से शादी की थी,लेकिन अमर उस राजकुमारी को धोखे में नहीं रखना चाहता था इसलिए उसने राजकुमारी की चुनरी में सारी बाते पूरी सच्चाई से लिख दी। जब राजकुमारी ने अमर का संदेश पढ़ा, तो उसने अमर को अपना पति माना और काशी से लौटने तक प्रतीक्षा की। अमर और उसके मामा वहाँ से काशी की ओर चल दिए। दूसरी ओर अमर हमेशा धार्मिक कार्यों में लगा रहता था व जब अमर ठीक 12 साल का हुआ तब वह शिव मंदिर में भोले नाथ को बेल के पत्ते चढ़ा रहा था।उसी समय वहां यमराज उसके प्राण लेने पधार गए पर इससे पहले ही भगवान शिव ने अमर की भक्ति से प्रसन्न हो दीर्घायु होने का वरदान दिया था परिणामत: यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा और बाद में अमर काशी से शिक्षा प्राप्त कर अपनी पत्नी राजकुमारी के ही साथ घर वापस लौटा। कथा तो कथा कहानी होती है पर शिवजी के माहात्म्य को नकारा भी नहीं जा सकता और भक्तगण स्रावण महीने को परम पवित्र महीने में अपने संकल्पों की पूर्ति करते हैं।