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जीव और ब्रह्म का मिलन ही महारास है: आचार्य साईं शंकर

विभिन्न कथाओं का दिया गया उद्धरण

चाँदा, सुल्तानपुर, (नवसत्ता ) :- स्थानीय प्रतापपुर कमैचा में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के छठे दिन व्यास पीठ पर विराजमान  भागवताचार्य डॉ साईं शंकर मृदुल जी महाराज  ने रास पंच अध्याय का वर्णन किया।उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाये जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं। जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है।  कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, ऊद्धव गोपी संवाद, ऊद्धव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुक्मिणी विवाह के प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया।  कथा के दौरान आचार्य ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला के द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का ही मिलन हुआ।

जीव और ब्रह्म के मिलने को ही महारास कहते है। रास का तात्पर्य परमानंद की प्राप्ति है जिसमें दुःख, शोक आदि से सदैव के लिए निवृत्ति मिलती है। भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों को रास के माध्यम से सदैव के लिए परमानंद की अनुभूति करवायी। व्यास डॉ साईं शंकर महाराज ने कहा कि आस्था और विश्वास के साथ ही भगवत प्राप्ति संभव है।भगवत प्राप्ति के लिए निश्चय और परिश्रम भी जरूरी है।

विराजमान  कथावाचक डॉ मिश्र ने कृष्ण-रुक्मणि विवाह प्रसंग पर बोलते हुए कहा कि भगवान कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह कर उनके साथ सुखमय जीवन बिताया। कथा के दौरान भक्तिमय संगीत ने श्रोताओं को आनंद से परिपूर्ण किया। इसके पूर्व राकेश मिश्र ने व्यासपीठ का पूजन किया जहां इंद्रजीत मिश्र , राजेन्द्र, अनुराग ठाकुर, विमल तिवारी, कन्हैया लाल की उपस्थिति उल्लेखनीय रही ।

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