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कुपोषण के खिलाफ प्रभावी हथियार साबित होगा कालानमक

लखनऊ,नवसत्ताः चावल आम भारतीय का सबसे पसंदीदा भोजन है। नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के आंकड़ों के अनुसार देश की करीब 65 फीसद आबादी भोजन में चावल का प्रयोग करती है। चावल की इन्हीं खास प्रजातियों में से एक है, उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में पैदा होने वाला कालानमक। वैसे तो मूल रूप से यह भगवान बुद्ध से जुड़े सिद्धार्थनगर जिले का है, पर समान कृषि जलवायु क्षेत्र (एग्रो क्लाइमेट जोन) वाले पूर्वांचल के 11 जिलों (गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर और गोंडा) के लिए इसे जीआई प्राप्त है। इन जिलों की कृषि जलवायु एक जैसी है। लिहाजा इस पूरे क्षेत्र में पैदा होने वाले कालानमक की खूबियां समान होंगी। इनमें से बहराइच एवं सिद्धार्थनगर नीति आयोग द्वारा विभिन्न मानकों पर चयनित आकांक्षात्मक जिलों की सूची में शामिल हैं।

खूबियों के लिहाज से दुनियां का श्रेठतम चावल है कालानमक                                                                                                खुश्बू, स्वाद एवं पौष्टिकता के लिहाजा से आप कालानमक चावल को दुनिया का श्रेष्ठतम चावल कह सकते हैं। कालानमक की इन खूबियों का लाभ, खाने में जिनको चावल पसंद है उन तक ही सीमित न रहे बल्कि प्रसंस्करण से तैयार उत्पादों के जरिए इनका लाभ बाकी लोगों को भी मिले, कालानमक को एक बड़ा बाजार मिले। बढ़ी मांग के अनुसार किसान इसके अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हों। फसल का वाजिब दाम मिले और किसान खुशहाल हों, इसके लिए अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र (इरी) वाराणसी, अपेडा (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्टस एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी) के सहयोग से काम कर रहा है। इरी के दक्षिण एशिया रीजन के निदेशक डॉक्टर सुधांशु सिंह और वैज्ञानिक डॉक्टर सौरभ भदोनी के मुताबिक कालानमक को पास्ता, बिस्किट, आइसक्रीम, ब्रेड, कुकीज के रूप में प्रसंस्कृत करने पर शोध कार्य चल रहा है। इन उत्पादों को और अधिक पौष्टिक बनाने के लिए आयरन एवं प्रोटीन से भरपूर मणिपुर एवं चंदौली के काला चावल एवं मूसली से भी पोषक तत्व लिए जा रहे हैं।

देश में कुपोषण की स्थिति और कालानमक की उपयोगिता                                                                                             दरअसल, देश की जनसंख्या के बड़े हिस्से में आयरन, फॉलिक एसिड और विटामिन बी12 जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है। आंकड़ों के मुताबिक देश में छह माह से पांच वर्ष तक 59 फीसद बच्चे, 15 से 60 साल की 53 फीसद महिलाएं और इसी आयुवर्ग के 22 फीसद पुरुषों में आयरन एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी है। चावल और इसके प्रसंस्करण से तैयार उत्पादों को जरूरी पोषक तत्वों से फोर्टिफाइड कर कुपोषण की इस समस्या का स्थाई रूप से हल निकाला जा सकता है। इरी यही काम कर रहा है। इसके साथ ही अलग-अलग जगहों पर पैदा होने वाले कालानमक चावल में स्वाद, सुंगध, पोषक तत्वों में कोन सी प्रजाति सबसे बेहतर है, इस पर भी इरी लगातार काम कर रहा है। अब तक करीब दर्जन भर प्रजातियों के नमूने ही अपेक्षा के अनुरूप निकले हैं। खुश्बू के लिहाज से सिद्धार्थनगर का कालानमक सबसे बेहतर है। इससे जो भी प्रसंस्कृत उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं, उनमें सबसे बेहतरीन चावल का ही प्रयोग किया जा रहा है।

कालानमक में मिलने वाले पोषक तत्व                                                                                                                       उल्लेखनीय है कि कालानमक चावल में परंपरागत चावल की किस्मों की तुलना में जिंक एवं आयरन अधिक होता है। जिंक दिमाग के लिए जरूरी है। रही आयरन की बात तो इसकी कमी की वजह से होने वाली एनीमिया (रक्तअल्पता) हिंदुस्तानियों, खासकर किशोरियों एवं महिलाओं में आम है। कालानमक चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी तुलनात्मक रूप से कम होता है। लिहाजा यह शुगर के रोगियों के लिए भी कुछ हद तक मुफीद है।

बुद्ध का प्रसाद माना जाता है कालानमक चावल                                                                                                              कालानमक का इतिहास करीब तीन हजार साल पुराना है। इसे भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है। इसकी तमाम खूबियों के ही नाते योगी सरकार-1 में शुरू की गई फ्लैगशिप योजना में इसे सिद्धार्थनगर का ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) घोषित किया गया। इसके बाद खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसकी ब्रांडिंग में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसी क्रम में कपिलवतु में कालानमक चावल महोत्सव भी आयोजित किया गया है। एक ही छत के नीचे सारी आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराने के लिए वहां कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) का निर्माण कराया गया। अब तक चावल के लिए काला नमक धान की कुटाई परंपरागत पुरानी मशीनों से होता था। अधिक टूट निकलने से दाने एक रूप नहीं होते थे। भंडारण एवं पैकेजिंग एक बड़ी समस्या थी। सीएफसी में हर चीज की अलग व्यवस्था होगी। पहले धान को स्टोनर मशीन से गुजारा जाएगा। इससे इसमें कंकड़-पत्थर अलग हो जाएंगे। धान से भूसी अलग करने और पॉलिशिंग की मशीनें अलग-अलग होंगी। असमान दानों के लिए शॉर्टेक्स मशीन होगी। उत्पादक की मांग के अनुसार पैकिंग की भी व्यवस्था होगी। धान के भंडारण के लिए सामान्य और तैयार चावल को लंबे समय तक इसकी खूबियों को बनाए रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था होगी।

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