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डॉक्टर्स डे विशेष:जानिए अपने डॉक्टर के अनसुने किस्से,मिलिए लखनऊ में सीएचसी अर्बन हॉस्पिटल की मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर गरिमा पांडेय से

गरिमा

हॉस्टल के हर सीनियर को अदब के साथ झुककर सलाम बजाना पड़ता था, जिसमें उन्हें फ्लोर का नंबर, रूम का नंबर, वो किस शहर से हैं, शहर का नाम, नाम व सरनेम के आगे “जी” लगाकर उन्हें संबोधित करते हुए सलाम बजाना पड़ता था और इस सब में एक भी गलती होने पर जो सजाएं मुकर्रर की जाती थीं, उनमें से छिपकली बन कर दीवार पर चढ़ना एवं काक्रोच बन कर जमीन पर रेंगना आदि थी….

आगामी डॉक्टर्स डे से पहले हमारी इस विशेष श्रृंखला के तहत आपको मिलवाते हैं लखनऊ के एक सीएचसी अर्बन हॉस्पिटल में चिकित्सा आधिकारिक पद पर कार्यरत डॉ. गरिमा पाण्डेय से।डॉक्टर गरिमा बताती हैं,चिकित्सीय क्षेत्र में आने की प्रेरणा अपने पिता से मिली जो स्वयं चिकित्सक बनना चाहते थे परंतु किसी कारणवश नहीं बन सके। उनकी अधूरी इच्छा मैंने और छोटी बहन ने डॉक्टर बन कर पूरी की।
सन 2001 में सीबीएसई सीपीएमटी की परीक्षा पास कर के डॉ. गरिमा ने कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज(जीएसवीएम) से एमबीबीएस की पढ़ाई की शुरुआत की।
कॉलेज के दिनों को याद करते हुए डॉ. गरिमा ने बताया कि यूं तो कॉलेज के समय की अनेक ऐसी घटनाएं होती हैं, जो भुलाई नहीं जा सकती लेकिन रैगिंग हर विद्यार्थी के जीवन में एक ऐसी प्रक्रिया है, जो उसके व्यक्तित्व विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रैगिंग के दौरान डॉ. गरिमा व अन्य बैच मेट्स को हॉस्टल के हर सीनियर को अदब के साथ झुककर सलाम बजाना पड़ता था, जिसमें उन्हें फ्लोर का नंबर, रूम का नंबर, वो किस शहर से हैं, शहर का नाम, नाम व सरनेम के आगे “जी” लगाकर उन्हें संबोधित करते हुए सलाम बजाना पड़ता था और इस सब में एक भी गलती होने पर जो सजाएं मुकर्रर की जाती थीं, उनमें से छिपकली बन कर दीवार पर चढ़ना एवं काक्रोच बन कर जमीन पर रेंगना आदि थी।
साल 2007 में कॉलेज खत्म करने के बाद एक साल अमेठी के संजय गांधी अस्पताल में आपातकालीन चिकित्साधिकारी के रूप में कार्य करने के बाद लखनऊ के सीएचसी अर्बन सिल्वर जुबली हॉस्पिटल में चिकित्साधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।
एक डॉक्टर के रूप में अपने अभी तक के करियर में डॉ. गरिमा को कोविड 19 की दूसरी लहर का समय सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण लगा।उस दौर को याद करते हुए डॉ. गरिमा ने बताया कि कोविड 19 की दूसरी लहर के शुरुआती दौर का समय अप्रत्याशित रूप से रोज नई चुनौतियों से भरा हुआ था। कोविड हॉस्पिटल्स में बेड भरते जा रहे थे और मरीजों की तादाद दिन प्रतिदिन अनियंत्रित रूप से बढ़ती जा रही थी। हर किसी को हॉस्पिटल में जगह चाहिए थी। इस सब को देखते हुए प्रशासन ने कोविड मरीजों के लिए होम आइसोलेशन को बढ़ावा देने का निर्णय लिया और उनके घर पर ही सभी आवश्यक चिकित्सीय संसाधन और दवाइयों को मुहैया कराना शुरू किया। इसके लिए लखनऊ में जो होम आइसोलेशन टीम गठित हुई मुझे उस टीम का नोडल अधिकारी बनाया गया। बतौर एक नोडल अधिकारी मुझे और मेरी पूरी टीम को लखनऊ के हर होम आइसोलेटेड मरीज के संपर्क में रहना पड़ता था, उनकी गंभीर स्थिति का आंकलन करना पड़ता था, उनके स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े एकत्र करने पड़ते थे, जरूरतमंद मरीजों को समय पड़ने पर ऑक्सीजन, दवाइयां एवं अन्य चिकित्सीय सुविधाएं मुहैया करानी पड़ती थी। हमारी पूरी कोशिश रहती थी, कोई भी मरीज हमारी देखभाल से अछूता न रह जाए। फिर भी यदि किसी कारणवश हमारे संपर्क में रहने वाले किसी मरीज की मृत्यु हो जाती थी तो वास्तव में वह समय हमारे लिए विचलित कर देने वाला होता था।
इस सबके बीच डॉ. गरिमा व उनका परिवार भी कोविड पॉजिटिव हो गया था।
अंत में लोगों से डॉ. गरिमा का कहना है, कि “एक डॉक्टर एवं नोडल अधिकारी के तौर पर मैंने कोविड की दूसरी लहर के प्रकोप का जो आंकलन किया है, मैं आप सबसे यही कहूंगी, कि कोविड महामारी अभी खत्म नहीं हुई है, आज भी हमारे पास 3-4 मरीज रोज आते हैं। आप सब लोग बिलकुल भी लापरवाही न बरतें और कोविड प्रोटोकॉल का पालन अभी भी करें। आपकी जरा सी लापरवाही आपके, आपके परिवार एवं आपके मिलने वालों के लिए प्राणघातक साबित हो सकती है।
इसके साथ ही डॉ. गरिमा ने दो लाइन मोटिवेशन के लिए कही :

“When life gives you a hundred reasons to break down and cry, show life that you have a million reasons to smile and laugh. Stay strong.”

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