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ऑक्सीजन,दवा, इंजेक्शन ही नहीं,दो वक्त की रोटी पर भी मुनाफाखोरों की काली छाया

एस एच अख्तर 

लखनऊ,नवसत्ता: हालात बद से बदतर हैं। कोरोना का कहर चरम पर है। जो इसकी चपेट में हैं उन्हें अस्पताल से लेकर दवा दुकानदार तक लूट रहे हैं। जो बचें हैं वो दो वक्त की रोटी का जतन करने में लुटे जा रहे हैं। आटा,दाल,चावल और मसालों के दाम में आग लगी है।कड़वा तेल 180 से 200 रुपये किलो हो गया है। पिछले हफ्ते तक 22 रुपये किलो वाला आटा यहां के गली मोहल्लों में चोरी चोरी खुल रही दुकानों पर 140 से 150 रुपये की 5 किलो वाली बोरी हो गई है। चावल मोटा से मोटा जो 20 और 22 रुपये किलो था उसके दाम 28 रुपये से 30 रुपये हो गए हैं। ज़्यादातर दुकानदारों ने तेल साबुन मसाला की जमाखोरी शुरू कर दी है। नतीजे के तौर पर एमआरपी से ज़्यादा बेचा जा रहा है।

अलीगंज के रहने वाले सैफ हैदर पूछने पर तकरीबन रुआंसे हो जाते हैं। कहते हैं,अखबार की नौकरी तीन महीने पहले ही चली गई थी। किसी तरह रखा उठाया पैसा था उसी से ज़िंदगी की गाड़ी खींच रहे थे। एक एक दिन करके लॉकडाउन बढ़ता जा रहा है।दुकानदारों ने रोज़मर्रा के समान भी डेढ़ से दो गुना में बेचना शुरू कर दिया है। शिकायत करने पर कहते हैं,भाई साहब माल मिल नहीं रहा है।महंगा लग रहा हो तो कहीं और से ले लें। मैं तो खुद पीछे से ज़्यादा दाम देकर आया हूँ। एमआरपी पर कैसे दूँ।

अमीनाबाद निवासी राकेश भार्गव कहते हैं,लाकडाउन का बहाना करके आटा दाल और चावल तक पर 5 से 10 रुपये और कहीं कहीं उससे भी ज़्यादा दाम बढ़ा दिया गया है।अब आप बताइए कैसे काम चलेगा। वह कहते हैं,चलिए मेरी तो नौकरी है,तनख़्वाह भी आ रही है। उनकी सोंचिये जो रोज़ कमा कर खाते हैं।लॉकडाउन की वजह से खुद का काम तो बंद ही हुआ,दो वक्त की रोटी भी जुगाड़ करना इन ग़रीबों के लिए मुश्किल है।
इस स्टोरी को करते वक्त कई ऐसे लोगों से भी बात हुई जिन्होंने अपना नाम पता गुप्त रखने की शर्त पर कहा,ऐसा लगता है जैसे गवर्नेंस नाम की संस्था ही कोलैप्स कर गई है।कोई सुनने वाला नहीं।आंकड़ों की बाजीगरी हावी है।बिना प्लानिंग के आदेश जमाखोरों के लिए वरदान बन रहे हैं जबकि ग़रीब कोरोना से भले बच जाए लेकिन भुखमरी से मरता नज़र आ रहा है।

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