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जानिए चुनावों के साथ क्यों जुड़ा हुआ है मैसूर पेंट्स का नाम

नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव के लिए एक तरफ राजनीतिक दलों की अपनी तैयारी चल रही है, वहीं निर्वाचन आयोग भी चुनाव को निर्विध्न संपन्न कराने में जुटा हुआ है. हमारे देश में 1952 से हो रहे लोकसभा चुनाव में कई मायनों में आमूलचूल बदलाव आ गया है, लेकिन एक चीज जो अब तक नहीं बदली है वह है नहीं मिटने वाली स्याही. सत्रहवीं लोकसभा के लिए देशभर में 11 अप्रैल से 19 मई के बीच 7 चरणों में होने वाले मतदान के लिए निर्वाचन आयोग ने 33 करोड़ रुपए की लागत से नहीं मिटने वाली स्याही की 26 लाख बोतलों का ऑर्डर दिया है. वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव की तुलना में यह 4.5 लाख बोतल अधिक है. आयोग ने इसका ऑर्डर देश में नहीं मिटने वाली स्याही बनाने वाले कर्नाटक सरकार के उपक्रम मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड को आर्डर दिया है, जो इस तरह की स्याही बनाने वाला इकलौता प्रतिष्ठान है. 30 देशों को किया जाता है निर्यात बताते चलें कि निर्वाचन आयोग ने 1962 में पहली बार विधि मंत्रालय, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल) और राष्‍ट्रीय अनुसंधान विकास निगम के साथ मिलकर मैसूर पेंट्स के साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव में नहीं मिटने वाली स्याही की आपूर्ति के लिए समझौता किया था. इसके बाद से यह प्रतिष्ठान चुनावों के लिए स्याही की आपूर्ति कर रहा है. मैसूर पेंट्स इसकी आपूर्ति केवल भारत में ही नहीं बल्कि सिंगापुर, नाइजीरिया, थाईलैंड, दक्षिण अफ्रीका सहित 30 देशों को करता है. नोटबंदी के दौरान भी हुआ इस्तेमाल राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला के रसायनिक फार्मूले से तैयार इस स्याही को बनाने की प्रक्रिया गोपनीय रहती है. इसकी एक शीशी में 10 सीसी (क्यूबिक सेंटीमीटर) स्याही होती है. जो उंगली में लगाते ही 60 सेकंड के भीतर सूख जाती है. स्याही की इसी विशेषता की वजह से न केवल चुनाव के दौरान बल्कि नोटबंदी के दौरान भी उपयोग में लाया गया था. एक ही व्यक्ति के बार-बार कतार में लगकर नोट बदलने की शिकायत को देखते हुए नहीं मिटने वाली स्याही का इस्तेमाल किया गया था.

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