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ममता सरकार को सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत, डीजीपी की नियुक्ति में ‘स्वायत्ता’ की मांग लेकर थी याचिका

कोलकाता,नवसत्ता: सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से दायर याचिका पर नाराजगी जताते हुए कोई भी आदेश जारी करने से इंकार कर दिया। वहीं, पश्चिम बंगाल की ओर से पेश सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि हम सिर्फ अपने राज्य में डीजीपी की नियुक्ति चाहते हैं।

वहीं कोर्ट ने कहा है कि, इस तरह से आवेदन न करें। दरअसल इस याचिका में सरकार ने कहा था कि यूपीएससी के पास न तो अधिकार क्षेत्र है और न ही उसमें किसी राज्य के डीजीपी पर विचार करने और नियुक्त करने की विशेषज्ञता है। पश्चिम बंगाल में 1986-बैच के एक आईपीएस अधिकारी को राज्य के कार्यवाहक डीजीपी के रूप में नामित किया गया है। नए डीजीपी के चयन को लेकर राज्य और यूपीएससी के बीच खींचतान चल रही है। ऐसे में कार्यवाहक डीजीपी नामित होने के एक दिन बाद ममता सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है।
इस मामले में राज्य सरकार की ओर से पेश वकील सिद्धार्थ लूथरा ने सीजेआई एनवी रमन्ना से जल्द सुनवाई की मांग की है। लूथरा ने पीठ को बताया कि राज्य में एक नियमित डीजीपी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने एक कार्यवाहक पुलिस प्रमुख की नियुक्ति पर रोक लगाई है।

वहीं ममता सरकार का कहना था कि यूपीएससी ने पद के लिए सुझाए गए नामों की बंगाल सरकार की सूची में कई खामियां निकाल दी हैं। यह भारतीय संघीय शासन प्रणाली के अनुरूप नहीं है। सरकार ने कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें एक अच्छी तरह से परिभाषित क्षेत्र में समन्वय से काम करती हैं लेकिन, उसी समय वो एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं।

पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हरीश साल्वे द्वारा दायर एक याचिका को अंतिम रूप देने के लिए अनुरोध किया। इस याचिका में पुलिस सुधारों पर 1996 के प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को दूर करने के लिए राज्यों द्वारा पारित कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2006 में दिए फैसले में डीजीपी के चयन और न्यूनतम कार्यकाल से संबंधित विशिष्ट निर्देश जारी किए थे। इसके मुताबिक, राज्य के डीजीपी का चयन राज्य यूपीएससी उस रैंक पर पदोन्नति के लिए सूचीबद्ध विभाग के तीन वरिष्ठतम अधिकारियों में से करेगा।

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