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अक्षय तृतीया: आज ही दिन हुआ था त्रेता युग आरंभ

सीवान, नवसत्ता: ग्राम भादा खुर्द पोस्ट मोहोदिन पुर थाना सीवान जिला सीवान से आचार्य सुरेन्द्र पाण्डेय जी ने बताया कि वैसाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया अर्थात एक तिजीया कहतें हैं जो कि दिन शुक्रवार को पड़ रहा है एवं इसी दिन भगवान परशुराम जी का जन्म जयन्ती भी मनाया जाता है यह सनातन धर्म प्रेमियों का प्रधान त्यौहार है हमारे धर्म ग्रंथों में कहाँ गया है कि इस दिन दियें हुए दान और किये हुए स्नान व होम जप आदि सभी कर्मों का फल अनन्त होता है क्यों कि यह सभी कर्म अक्षय हो जाते हैं इसी से इसका नाम अक्षया हुआ व हमारे भविष्य पुराण में कहाँ भी गया है कि यत्किंचिद दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु तत् सर्वमक्षयं यस्मात् तेनेयमक्षया स्मृता उसके बाद आचार्य जी ने परशुराम जन्म जयन्ती पर प्रकाश डालते हुए बोले की इसी तिथि को नर नारायण भगवान परशुराम और हयग्रीव अवतार लियें थें इसी लिए इस दिन उनकी जन्म जयन्ती मनाया जाता है तथा इसी दिन त्रेतायुग भी आरम्भ हुआ था

अतएव इसे मध्याह्न व्यापिनी ग्रहण करना चाहिए परन्तु भगवान परशुराम जी प्रदोष काल में प्रकट हुए थें इस लियें यदि द्वितीय को मध्याह्न से पहले तृतीय तिथि आ जाय तों उस दिन अक्षय तृतीया,नर नारायण जयन्ती,परशुराम जन्म जयन्ती और हयग्रीव जयन्ती सब सम्पन्न कि जा सकता है और यदि द्वितीय अधिक हो तो परशुराम जन्म जयन्ती दूसरे दिन होती हैं फिर उन्होंने अक्षय तृतीया व्रतियो को व्रत के बारे में बताते हुए बोले की इस दिन व्रतियो को चाहिए कि वह प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त हो कर ‘ममाखिलपापक्षय पूर्वकसकल शुभफलप्राप्तये भगवत्प्रीति कामनया देवत्रय पूजन महं करिष्ये’ येसा संकल्प कर के भगवान का यथाविधि पंचोपचार व षोडशोपचार से पूजन करें

उन्हें पंचामृत से स्नान करावे सुगन्धित पुष्पमाला पहनावे और नैवेद्यय में नर-नारायण के निमित्त सेंके हुए जौ या गेहूँ का सतू व परशुराम जी के निमित्त कोमल ककड़ी और हयग्रीव के निमित्त भीगी हुई चने की दाल अर्पण करें बन सकें तो उपवास तथा समुन्द्र स्नान गंगा स्नान आदि करें क्यों की हमारे सौर धर्म ग्रंथ मे कहाँ गया है कि युगादौ तु नरः स्नात्वा विधिवल्लवणोदधौ गोसहस्त्रप्रदानस्य फलं प्राप्नोति मानवः व जौ गेहूँ चने का सतू दही चावल ईख के रस और दुग्ध के बने हुए खाद्य पदार्थ खाँड मावा मिठाई आदि तथा सुवर्ण एवं जलपूर्ण कलश धर्म घट अन्न व सब प्रकार के रस और ग्रीष्म-ॠतु के उपयोगी वस्तुओं का दान करें तथा पितृ श्राद्ध करें और ब्राह्मण भोजन भी करावे यह सब यथाशक्ति करने से अनन्त फल होता है…

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