Navsatta
ऑफ बीटखास खबर

बताता है बंगाल कभी भी वैचारिक सीमाओं में नहीं बंधा !

अशोक भाटिया

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की अगुवाई में तृणमूल कांग्रेस  लगातार भारतीय जनता पार्टी  को झटके पर झटका दे रही है. शन‍िवार को कालियागंज से भाजपा विधायक सौमेन रॉय कोलकाता में राज्य मंत्री और पार्टी नेता पार्थ चटर्जी की मौजूदगी में टीएमसी में शामिल हो गए.

इससे पहले बीते मंगलवार को बागदा से भाजपा  विधायक विश्वजीत दास तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे जबकि विधायक तन्मय घोष ने सोमवार को तृणमूल कांग्रेस की सदस्‍यता ग्रहण की थी. उधर, भाजपा  ने दल बदलने वाले विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की भले ही  धमकी दी है पर दलबदल का खेला जारी है . दरअसल पश्चिम बंगाल में व‍िधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने टीएमसी ने बड़ी सेंधमारी की थी. चुनाव से पहले टीएमसी के कई नेता भाजपा  में शाम‍िल हुए थे. अब राज्‍य में ठीक उसके उलट हो रहा है.

आलम यह है क‍ि भाजपा  के कई व‍िधायक और नेता टीएमसी से गलबह‍िया करने को बेताब हैं. शन‍िवार को टीएमसी में शामिल हुए सौमेन रॉय ने कहा, ‘कुछ परिस्थितियों के कारण मुझे कालियागंज से भाजपा  के टिकट पर चुनाव लड़ना पड़ा. लेकिन मेरी आत्मा और दिल टीएमसी के हैं.’ सौमेन रॉय से पहले बागदा से भाजपा  विधायक विश्वजीत दास बीते मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे. उनसे एक द‍िन पहले सोमवार को एक अन्य भाजपा  विधायक तन्मय घोष तृणमूल में लौट गए थे. उससे पहले जून में भाजपा  विधायक और पार्टी उपाध्यक्ष मुकुल रॉय तृणमूल में लौट आए थे. उन्होंने चार साल पहले ममता बनर्जी की अगुवाई वाली पार्टी छोड़कर भाजपा  का दामन थामा था.

प. बंगाल में विगत मई में हुए चुनावों के बाद भाजपा से सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने वाले पांचवें नेता बाबुल सुप्रियो ने जिस प्रकार यह कहा है कि वह ममता दी की पार्टी में शामिल होने को एक अवसर समझते हैं उससे इतना तो स्पष्ट होता ही है कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस का फिलहाल कोई विकल्प नहीं है.  उनसे पूर्व जब स्व. राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के सुपुत्र अभिजीत मुखर्जी और महिला कांग्रेस की नेता सुष्मिता देव कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुई थीं तो राज्य में ममता दी के वजन का एहसास सभी राजनैतिक प्रेक्षकों ने किया था. इससे यही निष्कर्ष निकलता था कि प. बंगाल वैचारिक स्तर पर गोलबन्द हो रहा है. राज्य में एक जमाने में सत्तारूढ़ रही पार्टी कांग्रेस पूरी तरह हाशिये पर खिसक चुकी है और दूसरी लगातार 34 साल तक शासन में रहने वाली मार्क्सवादी पार्टी भी अपने विपक्षी पार्टी तक होने का रुतबा खो चुकी है.

राज्य में इस समय भाजपा प्रमुख विपक्षी पार्टी है. यह स्थिति इसने मई चुनावों के बाद ही अर्जित की है. इससे साफ जाहिर होता है कि विधानसभा चुनावों में ममता दी की तृणमूल कांग्रेस ने जो राजनैतिक विमर्श खड़ा किया था उसके मुकाबले में केवल भाजपा ही टिक सकी. बेशक भाजपा के पास कुल 77 में से अधिसंख्य विधायक ऐसे माने जाते हैं जिनकी पृष्ठभूमि तृणमूल कांग्रेस समेत अन्य दलों की रही है परन्तु विगत चुनावों में राज्य की नन्दीग्राम सीट से स्वयं ममता बनर्जी का भाजपा प्रत्याशी सुवेन्दु अधिकारी से हारना यह बताता था कि भाजपा ने जमीन पर अपने राजनैतिक विमर्श को फैलाने में आंशिक सफलता तो अर्जित की है. मगर चुनावों के बाद जिस तरह भाजपा से ममता दी की पार्टी में नेता जा रहे हैं वह केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए जरूर चिन्ता का कारण हो सकता है. इसकी असली वजह यह मानी जा रही है कि बंगाल की संस्कृति वृहद राष्ट्रवाद की रही है जिसमे क्रान्तिकारी विचारों का समावेश प्रमुख रूप से रहा है.

यह राज्य साम्यवादी विचारधारा से लेकर समाजवादी और गांधीवादी विचारों की प्रयोगशाला के रूप में जाना जाता रहा है. इतना ही नहीं राज्य के विद्वान राजनैतिक विचारकों में विशिष्ट स्थान रखने वाले स्व. एम.एन. राय बंगाल के ऐसे सपूत रहे जिन्होंने केवल भारत में ही कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना में प्रमुख भूमिका नहीं निभाई बल्कि मैक्सिको की कम्युनिस्ट पार्टी की भी स्थापना की. वहीं दूसरी तरफ इसके ठीक विपरीत विचार रखने वाले एक समय तक हिन्दू महासभा के नेता रहे डा. श्यामप्रसाद मुखर्जी ने आजाद भारत में 1951 में घनघोर राष्ट्रवादी संगठन जनसंघ की स्थापना की. यह बंगाल की धरती वैचारिक रूप से भी उतनी हरी-भरी रही जितनी कि भौतिक रूप से. इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इस राज्य के लोगों को मानसिक रूप से राजनैतिक स्तर क्या हो सकता है?

इसके साथ ही राज्य ने नेता जी सुभाषचन्द्र बोस जैसा क्रान्तिकारी स्वतन्त्रता सेनानी भी दिया जिनके विचार से भारत को अंग्रेजों से आजादी केवल सैनिक क्रान्ति करके ही मिल सकती थी. इसके बावजूद अहिंसा के परम पुजारी महात्मा गांधी को उन्होंने ही सबसे पहले राष्ट्रपिता की उपाधि से विभूषित किया. अतः पं. बंगाल को सीमित राष्ट्रवाद के दायरे में बांधने की अभी तक हर कोशिश इसीलिए नाकाम होती रही क्योंकि यहां के विचारक मनीषियों ने प्रारम्भ से ही सैद्धान्तिक फलक को बहुत विशाल बनाये रखा जिनमें गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का नाम भी विशेष उल्लेखनीय हैं. उनसे पहले शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय ने साहित्य के माध्यम से राजनैतिक ऊर्जा को प्रत्येक बंगाली में भरने का पुरजोर प्रयास किया था और 1906 के लगभग ब्रिटिश भारत मे पहले बंग भंग के दौरान मातृभूमि के गौरव में ‘वन्दे मातरम्’ गीत लिखा था जो आजादी मिलने पर स्वतन्त्र भारत का राष्ट्रीय गीत बना. इसी प्रकार नेता जी ने जब विदेशों में अपनी ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन किया  तो अपने वीर सैनिकों के लिए ‘कदम- कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा -ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पर लुटाये जा’ फौजी गान दिया, जो आज स्वतन्त्र सेना का निशान गीत बना हुआ है.

कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि बंगाल कभी भी वैचारिक सीमाओं मे नहीं बन्धा और इसके समाज ने  विश्व बन्धुत्व की भावना को आत्मसात करने का हमेशा ही प्रयास किया जिसकी वजह से सीमित राष्ट्रवाद की इस राज्य में शुरू से ही सीमाएं रहीं. इसका प्रमाण यह है कि जब साठ-सत्तर के दशक में अमेरिका द्वारा थोपा हुआ वियतनाम युद्ध चल रहा था तो यहां की सड़कों पर यह नारा अक्सर गूंजा करता था कि ‘आमरो नाम-तोमरो नाम भुलबे ना वियतनाम’. अतः कारण समझा जा सकता है कि क्यों इस राज्य में सीधे कांग्रेस के बाद कम्युनिस्ट विचाधारा को आम जनता का समर्थन मिला. वर्तमान में ममता दी मध्यमार्गी विचारधारा लेकर चल रही हैं लोकतन्त्र के उन तत्वों का राजनीति में उपयोग कर रही हैं जिनसे लोगों का सीधा वास्ता होता है. इसकी काट राज्य में कोई राजनैतिक दल नहीं निकाल पाया है जिसकी वजह से 2011 से वह शासन में बनी हुई हैं. 2021 के चुनावों में भाजपा ने इस विमर्श के विरोध में जो अपना राष्ट्रवादी विमर्श खड़ा करने की कोशिश की उसे भी आंशिक सफलता ही मिली क्योंकि राज्य विधानसभा में भाजपा विधायकों की संख्या तीन से बढ़ कर 77 हो गई परन्तु इसके बाद भाजपा नेताओं का पार्टी छोड़ कर तृणमूल में शामिल होना बता रहा है कि उन्हें लोगों की राजनैतिक मानसिकता में परिवर्तन की उम्मीद नहीं है.

बाबुल सुप्रियो हालांकि जमीन से जुड़े कोई कद्दावर नेता नहीं हैं क्योंकि सांसद होने के बावजूद वह पिछला विधानसभा चुनाव तक हार गये मगर इतना जरूर है कि वह बंगाल में बहती हवा के साथ चलना चाहते हैं. उनके दल-बदल की कैफियत बस इतनी सी है. वैसे नए चलन पर भाजपा  का आरोप है कि चुनाव बाद जो हिंसा हुई है, उससे डरकर बाध्य होकर भाजपा कार्यकर्ता टीएमसी में शामिल हो रहे हैं . भाजपा  सांसद अर्जुन सिंह के अनुसार  भाजपा कार्यकर्ताओं के पास कोई उपाय अब नहीं रह गया है क्योंकि जिस तरह की हिंसा हो रही है वह अभूतपूर्व है और उससे डर कर लोग टीएमसी  के पाले में जा रहे है .

संबंधित पोस्ट

आर्यन ड्रग्स केस: नए अधिकारी को जांच का जिम्मा सौंप सकती है एनसीबी, शीर्ष अधिकारी बदलाव पर कर रहे हैं विचार

navsatta

दिल्ली: उपराज्यपाल सक्सेना का बड़ा एक्शन, आबकारी विभाग के 11 अधिकारियों को किया सस्पेंड

navsatta

उमेश पाल हत्याकांडः अतिन ने निकाले थे असद के खाते से पैसे!

navsatta

Leave a Comment