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सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की 20% इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल नीति को चुनौती, उपभोक्ता अधिकारों पर उठे सवाल

संवाददाता
नई दिल्ली,नवसत्ताः सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें केंद्र सरकार की इथेनॉल मिश्रण नीति को चुनौती दी गई है। इस नीति के तहत देशभर में 20 प्रतिशत इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल (E20) की बिक्री को अनिवार्य किया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि उपभोक्ताओं को इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल (E0) का विकल्प दिए बिना E20 की अनिवार्य बिक्री उन करोड़ों वाहन मालिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिनके वाहन इस उच्च इथेनॉल मिश्रण के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

 

याचिका की मुख्य दलीलें
याचिका अधिवक्ता अक्षय मल्होत्रा द्वारा दायर की गई है। उनका कहना है कि बिना किसी सार्वजनिक जागरूकता अभियान के E20 नीति लागू करना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ताओं के सूचित विकल्प (इंफॉर्म्ड चॉइस) के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में उल्लेख किया गया है कि देश के लाखों वाहन मालिकों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि उनके द्वारा उपयोग किया जा रहा पेट्रोल शुद्ध नहीं है, बल्कि उसमें 20% इथेनॉल मिश्रित है। इस महत्वपूर्ण जानकारी को छुपाना उपभोक्ताओं की सूचित पसंद को नष्ट करता है, जो उपभोक्ता संरक्षण कानून का स्पष्ट उल्लंघन है।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि E20 पेट्रोल का उपयोग वाहनों की ईंधन दक्षता (माइलेज) को कम करता है और इंजन के विभिन्न हिस्सों, जैसे रबर और प्लास्टिक के पुर्जों, में जंग (कोरोजन) का कारण बनता है। इससे वाहन मालिकों को अतिरिक्त रखरखाव लागत और सुरक्षा संबंधी जोखिमों का सामना करना पड़ता है। याचिका में कहा गया है कि अप्रैल 2023 से पहले निर्मित वाहन और यहां तक कि कुछ नए बीएस-6 मानक वाले वाहन भी E20 के लिए पूरी तरह अनुकूल नहीं हैं। ये वाहन अधिकतम 10% इथेनॉल मिश्रण (E10) के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
उपभोक्ताओं पर प्रभाव और नीति की कमियांयाचिका में यह भी बताया गया है कि E20 के उपयोग से वाहनों में माइलेज में 1-6% की कमी आ सकती है, जैसा कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG) ने स्वीकार किया है। इसके अलावा, पुराने वाहनों में इथेनॉल के कारण इंजन और ईंधन प्रणाली में क्षति होने की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप मरम्मत का खर्च बढ़ता है और कई मामलों में बीमा दावे खारिज हो रहे हैं। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि इथेनॉल मिश्रण से तेल कंपनियों को लागत में कमी आती है, लेकिन इसका लाभ उपभोक्ताओं को कम कीमतों के रूप में नहीं मिल रहा है।
अधिवक्ता मल्होत्रा ने तर्क दिया है कि सरकार ने वाहन निर्माताओं को E20 के अनुकूल वाहन डिज़ाइन करने और बाजार में उतारने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया। यह नीति को “अनुचित और मनमाना” बनाता है। उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों में इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल उपलब्ध है और वहां पेट्रोल पंपों पर इथेनॉल सामग्री की स्पष्ट लेबलिंग की जाती है, जिससे उपभोक्ता सूचित निर्णय ले सकते हैं। भारत में, हालांकि, उपभोक्ताओं को इस तरह की जानकारी या विकल्प नहीं दिए जा रहे हैं।
याचिका में मांगी गई राहतयाचिका में सुप्रीम कोर्ट से निम्नलिखित मांगें की गई हैं:
  1. इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल की उपलब्धता: पेट्रोलियम कंपनियों को E0 पेट्रोल की आपूर्ति जारी रखने का निर्देश दिया जाए।
  2. स्पष्ट लेबलिंग: सभी पेट्रोल पंपों पर ईंधन डिस्पेंसर पर E20 पेट्रोल होने की स्पष्ट जानकारी देना अनिवार्य किया जाए।
  3. उपभोक्ता जागरूकता: रिफ्यूलिंग के समय उपभोक्ताओं को उनके वाहनों की E20 के साथ अनुकूलता के बारे में सूचित किया जाए।
  4. उपभोक्ता संरक्षण नियमों का पालन: उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को इथेनॉल-मिश्रित ईंधन के लिए उपभोक्ता संरक्षण मानकों को लागू करने और उचित सलाह जारी करने का निर्देश दिया जाए।
  5. राष्ट्रीय अध्ययन: E20 के गैर-अनुकूल वाहनों पर दीर्घकालिक प्रभावों, जैसे ईंधन दक्षता और टूट-फूट, पर एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन कराया जाए।
सरकार का पक्ष और उपलब्धियां
केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय ने E20 नीति का बचाव करते हुए इसे पर्यावरणीय और आर्थिक लाभों के लिए महत्वपूर्ण बताया है। भारतीय चीनी और जैव-ऊर्जा निर्माता संघ (ISMA) के अनुसार, भारत ने 2030 की समयसीमा से पांच साल पहले ही 20% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य हासिल कर लिया है। इस कार्यक्रम ने 2014 में 1.5% से बढ़कर 2025 में 20% तक मिश्रण हासिल किया, जिसके परिणामस्वरूप 698 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी, 1.36 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत, और किसानों को 1.18 लाख करोड़ रुपये का भुगतान हुआ।
सरकार का कहना है कि E20 ईंधन पर्यावरण के लिए बेहतर है और कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करता है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने E20 से वाहनों को होने वाले नुकसान के दावों को खारिज करते हुए इसे “पेट्रोलियम लॉबी” द्वारा फैलाई गई भ्रामक जानकारी करार दिया।
यह जनहित याचिका भारत की हरित ऊर्जा नीति और उपभोक्ता अधिकारों के बीच एक महत्वपूर्ण टकराव को दर्शाती है। जहां सरकार E20 नीति को पर्यावरण और किसानों के हित में एक बड़ी उपलब्धि मानती है, वहीं याचिका उपभोक्ताओं के सामने आने वाली व्यावहारिक समस्याओं, जैसे वाहन क्षति और जानकारी की कमी, को उजागर करती है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई भारतीय लोकतंत्र में नीति निर्माण और उपभोक्ता अधिकारों के बीच संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दे सकती है।

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