बालासोर छात्रा आत्मदाह मामला बना राज्य की सियासत का सबसे बड़ा मुद्दा
ओडिशा, नवसत्ता: ओडिशा के बालासोर जिले में बीएड सेकंड ईयर की छात्रा द्वारा यौन उत्पीड़न से परेशान होकर आत्मदाह करने और फिर उसकी मौत के विरोध में गुरुवार को कांग्रेस समेत आठ विपक्षी दलों ने राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया। इस दौरान राज्य के कई हिस्सों में सड़क और रेल यातायात बाधित रहा।
🚫 भुवनेश्वर से भद्रक तक प्रदर्शन का असर
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भद्रक में प्रदर्शनकारियों ने ट्रेन रोक दी
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भुवनेश्वर में सड़कों पर लगे जाम से जनजीवन अस्त-व्यस्त
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चेन्नई-कोलकाता हाईवे पर टायर जलाकर किया गया रास्ता जाम
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मयूरभंज में भी लोगों ने सड़कों पर उतरकर किया विरोध प्रदर्शन
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बस सेवाएं ठप, यात्रियों को पैदल लौटना पड़ा
🤝 कौन-कौन दल हुए शामिल?
इस विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस, CPI(M), SUCI, और BJD समेत आठ प्रमुख विपक्षी दलों के नेता व कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे।
छात्र संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी बंद को समर्थन दिया।
🧕 क्या है पूरा मामला?
12 जुलाई को फकीर मोहन ऑटोनॉमस कॉलेज, बालासोर की एक छात्रा ने कैंपस में ही खुद पर केरोसिन छिड़ककर आग लगा ली थी।
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छात्रा ने आरोप लगाया था कि उसके विभागाध्यक्ष समीर कुमार साहू उसे बार-बार यौन उत्पीड़न का शिकार बना रहे थे।
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छात्रा ने कॉलेज प्रिंसिपल से शिकायत की थी, लेकिन उसे शिकायत वापस लेने को कहा गया।
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पीड़िता की हालत बिगड़ने पर उसे AIIMS भुवनेश्वर रेफर किया गया, जहां 14 जुलाई को उसकी मौत हो गई।
🛃 सरकार और प्रशासन की कार्रवाई
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पुलिस ने HoD समीर कुमार साहू को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया।
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प्रिंसिपल दिलीप घोष को पहले सस्पेंड किया गया, लेकिन विरोध बढ़ने पर 14 जुलाई को उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया।
🗣️ विपक्ष का आरोप और मांगें
विपक्षी दलों का आरोप है कि छात्रा की शिकायत को नजरअंदाज किया गया और यदि कॉलेज प्रशासन समय पर कार्रवाई करता, तो उसकी जान बच सकती थी।
प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि:
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इस मामले की फास्ट-ट्रैक कोर्ट में सुनवाई हो
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राज्य सरकार पीड़िता के परिवार को मुआवज़ा दे
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कॉलेज में महिला सुरक्षा तंत्र को मजबूत किया जाए
📸 प्रदर्शन की तस्वीरें और दृश्य
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मयूरभंज में हाईवे पर जलते टायर
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पुरी रेलवे स्टेशन पर बैठकर नारेबाज़ी
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महिला संगठनों का मशाल मार्च
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बंद दुकानों और खाली बाज़ारों की तस्वीरें
🔚 निष्कर्ष:
बालासोर की छात्रा की मौत से उपजा यह जनआक्रोश अब सरकार के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। विपक्ष इस मुद्दे को 2029 चुनावों तक लेकर जाने के मूड में है। सवाल अब सिर्फ इंसाफ का नहीं, बल्कि व्यवस्था की संवेदनशीलता और जवाबदेही का भी है।